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________________ अशनायोदन्यधनायाः अच अशनायोदन्यधनायाः -VII. iv. 34 अशिति -VI. I. 44 अशनाय, उदन्य, धनाय - ये शब्द (क्रमशः बुभुक्षा, (उपदेश अवस्था में जो एजन्त धातु,उसको आकारादेश पिपासा,गर्घ अर्थात् लोभ- इन अर्थों में निपातन किये हो जाता है).शित प्रत्ययों से भिन्न प्रत्ययों के विषय में। जाते है)। अशिश्वी-IV.1.62 अशप्... - VII. 1.63 (सखी तथा) अशिश्वी शब्द (स्त्रीलिंग में डीप प्रत्ययान्त देखें-अशब्लिटो: VII..63 निपातन किये जाते है,भाषा विषय हो तो)। अशपथे-v. iv. 66 अशिष्यम् -I. 1.53 . (सत्य प्रातिपदिक से) सौगन्ध वाच्य न हो तो (कृञ् के (उस उपर्यक्त यक्तवद भाव को) पर्णतया शासित नहीं योग में डाच् प्रत्यय होता है)। किया जा सकता, (उसके लौकिक व्यवहार के अधीन अशब्दसज्ञा -I.i.67 होने से)। (व्याकरणशास्त्र में ) शब्दसंज्ञा को छोड़कर (शब्दों के ...अशीति... -V.i.58 अपने स्वरूप का ग्रहण होता है,उनके अर्थ अथवा पर्यायवाची शब्दों का नहीं)। देखें-पंक्तिविंशतिov.i. 58 अशब्दसजायाम् - VII. iii. 67 ...अशीत्योः - VI. iii. 46 शब्द की सजा न हो तो (वच अङ्गको ण्य परे रहते देखें- अबहुव्रीहाशीत्योः VI. iii. 46 कवर्गादेश नहीं होता। . अशूद्रे-VIII. ii. 83 अशब्दे-III. iii. 33 . शद्र से अन्य विषय में (प्रत्यभिवाद वाक्य के पद की (विपूर्वक स्तृञ् धातु से) शब्दविषयभिन्न विस्तार) को टि को प्लत होता है और वह प्लुत उदात्त होता है)। कहना हो तो (कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घब् अश्नोते: - VII. iv.72 प्रत्यय होता है)। 'अशूङ् व्याप्तौ' अङ्ग के (दीर्घ किये हुये अभ्यास से अशब्दे-IV. iii.64 उत्तर भी नुट् आगम होता है)। (सप्तमीसमर्थ वर्गान्त प्रातिपदिक से) शब्दभिन्न प्रत्य- . ...अश्म... - IV.ii.79 यार्थ अभिधेय होने पर(भव अर्थ में विकल्प से यत् तथा 'देखें - अरीहणकशाश्व IV. 1.79 ख प्रत्यय होते है)। अशब्लिटो: - VII.1.63 ...अश्म... - V. iv.94 देखें - अनोश्मायov.iv.94 शप् तथा लिड्वर्जित (अजादि) प्रत्ययों के परे रहते (रम राभस्ये' अङ्ग को नुम् आगम होता है)। ...अश्म... -VI. 1. 91 अशरीरे-I. ill. 36 देखें- भूताधिक. VI. ii. 91 (कर्ता में स्थित) शरीरभिन्न (कर्म के होने पर(भीणीज ...अश्मकात् -IV.I. 171 धातु से आत्मनेपद होता है)। देखें-साल्यावयवप्रत्यग्रथ० IV.I. 171 अश्लील...-VI. I. 42 ...अशाम् -VII. ii.74 देखें-स्मिपूड VII. ii. 74 देखें- अश्लीलदृढरूपा VI. ii. 42 अश्लीलदृढरूया -VI. ii. 42 अशाला - II. iv. 24 'अश्लीलदृढरूपा' इस समास किये हये शब्द के (पूर्वशाला अर्थ से भिन्न (जो सभा,तदन्त नकर्मधारयभिन्न तत्पुरुष भी नपुंसकलिंग में होता है)। पद को प्रकृतिस्वर होता है)। शाला. अर्थात् घर या भवन। अश्व..-II. iv.27 देखें-अश्ववडवी II. iv.27 अशि-VIII. iii. 17 .. (भो.भगो अघो तथा अवर्ण पर्व में है जिसके उसके ....अश्य.. -VII.91 पूर्व को यकार आदेश होता है).अश परे रहते। देखें-क्सोक्षा० V. 1. 91
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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