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________________ अपपरी अपाच अपपरी-I.1.86 (छोड़ना अर्थ घोतित हो रहा हो तो) अप तथा परि शब्द (कर्मप्रवचनीय और निपातसंज्ञक होते हैं)। अपमित्य... - IV. iv. 21 . देखें- अपमित्ययाचिताभ्याम् IV. iv. 21 अपमित्ययाचिताभ्याम् - V.iv. 21 . (तृतीयासमर्थ) अपमित्य और याचित प्रातिपदिकों से (निर्वृत्त अर्थ में यथासंख्य करके कक और कन प्रत्यय होते है। ...अपर.. -I. 1. 33 देखें-पूर्वपरावरदक्षिणोत्तरापराधराणि I. 1. 33 ...अपर... -II.1.57 देखें- पूर्वापरप्रथम II. 1.57 ...अपर... -II. 1.1. देखें-पूर्वापराबरो० II. 1.1 ...अपर..-IV.1.30 देखें-केवलमामक V.1.30 अपरस्परा:-VI. I. 139 (क्रिया का निरन्तरहोना गम्यमान हो तो) अपरस्पराःशब्द में सुट् आगम निपातन किया जाता है। ...अपराहण..-IV. 1. 28 देखें-पूर्वाहणापराहणाo IV. 1. 28 ...अपराहण... -VI. ii. 38 देखें-बीहापराहण. VI. ii. 38 ...अपराहणाभ्याम् - IV. 1. 24 देखें- पूर्वाणापरा० V. lil. 24 अपरिग्रहे-I. iv.64 अपरिग्रह स्वीकार न करने अर्थ में वर्तमान (अन्तर शब्द क्रियायोग में गति और निपात संज्ञक होता है)। अपरिमाण.. - IV.1.22 देखें-अपरिमाणविस्ताचित IV.1.22 अपरिमाणविस्ताचितकम्बल्येभ्यः - IV. 1. 22 (अदन्त) अपरिमाण, बिस्त, आचित और कम्बल्य अन्तवाले (द्विगुसंज्ञक) प्रातिपदिकों से (तद्धित के लुक् हो जाने पर स्त्रीलिङ्ग में डीप प्रत्यय नहीं होता)। अपरितः -VII. 1. 32 (वेद-विषय में) अपरिताः शब्द (भी) बहुवचनान्त निपातन किया जाता है। अपरे - VII. iv. 80 अवर्णपरक (पवर्ग,यण तथा जकार पर वाले उवर्णान्त अभ्यास को इकारादेश होता है,सन् परे रहते)। ...अपरेधुस... - V. iii. 22 . देखें - सद्य:परुत v. iii. 22 अपरोक्षे-III. 1. 119 अपरोक्ष अर्थात् परोक्षभिन्न (अनद्यतन भूतकाल) में (भी .. वर्तमान धातु से स्म उपपद रहते लट् प्रत्यय होता है)। अपर्श-VI. ii. 177 (बहुव्रीहि समास में उपसर्ग से उत्तर) पशुवर्जित (ध्रुव स्वाङ्ग को अन्तोदात्त होता है)। अपवर्ग-II. iii.6 अपवर्ग = फल प्राप्त होने पर क्रिया की समाप्ति अर्थ में (काल और अध्ववाचियों के अत्यन्तसंयोग में तृतीया विभक्ति होती है)। अपवर्ग-III. iv.60 (तिर्यक् शब्द उपपद रहते ) अपवर्ग गम्यमान होने पर (कृञ् धातु से क्त्वा, णमुल् प्रत्यय होते हैं )। अपस्करः - VI.i. 149 अपस्कर शब्द सुट सहित निपातन किया जाता है. (यदि उससे रथ का अवयव कहा जा रहा हो तो)। अपस्पृधेथाम् -VI..35 (वेद विषय में) अपस्पृधेथाम् शब्द का निपातन किया. जाता है। ...अपहते -v.ii. 70 (पञ्चमीसमर्थ तन्त्र प्रातिपदिक से), 'कुछ समय पहले ही लिया' अर्थ में (कन् प्रत्यय होता है)। अपहवे-I. iii. 44 अपह्नव= मिथ्याभाषण अर्थ में वर्तमान (ज्ञा धातु से आत्मनेपद होता है)। ...अपा: - VI. ii. 33 देखें- परिप्रत्युपापा: VI. ii. 33 अपाड्परिभिः -II. iii. 10 (कर्मप्रवचनीयसंज्ञक) अप, आङ और परि के योग में (पञ्चमी विभक्ति होती है)। ....अपाच्... - IV. ii. 100 देखें-घुप्रागपागु० IV. 1. 100
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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