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________________ अपपरिबहिस्चवः अप:-VI. iii.96 अपत्ये -VI. iv. 170 (द्वि,अन्तर तथा उपसर्ग से उत्तर) अपशब्द को (ईका- सन्तानार्थक (अण) के परे रहते (वर्मन शब्द के अन् को रादेश हो जाता है)। छोड़कर जो मकार पूर्ववाला अन.उसको प्रकृतिभाव नहीं अप: - VII. iv. 48 होता)। अप अङ्गको (भकारादि प्रत्यय परे रहते तकारादेश होता ...अपत्रप... -III. ii. 136 देखें - अलंकृञ् III. ii. 136 ...अपकराभ्याम् - IV. iii. 32 ...अपत्रस्तैः -II.i.37. देखें-सिन्ध्वपकराभ्याम् IV. iii. 32 देखें - अपेतापोढमुक्त II.i. 37 अपगुरः - VI.i. 53 अपथम् - II. iv. 30 अप पूर्वक 'गुरी उद्यमने' धातु के (एच के स्थान में . अपथ शब्द (नपुंसकलिंग में होता है)। णमुल् प्रत्यय के परे रहते विकल्प से आत्व हो जाता है)। अपदातौ - IV.ii. 134 अपघनः -III. iii. 81 (साल्व शब्द से) अपदाति अर्थात् पैरों से निरन्तरन चलने अपपूर्वक हन् धातु से (शरीर का अवयव अभिधेय हो वाला मनुष्य (तथा मनुष्यस्थ कर्म) अभिधेय हो,तो (शैषिक तो) अप् प्रत्यय तथा हन् को घन आदेश करके अपघन । वुञ् प्रत्यय होता है)। शब्द निपातन किया जाता है, (कर्तभिन्न कारक संज्ञा में)। अपदादौ - VIII. iii. 38 पदादिभिन्न (कवर्ग तथा पवर्ग) परे रहते विसर्जनीयको ...अपचर... -III. ii. 142 सकारादेश होता है)। देखें-सम्पृचानुरुधा III. ii. 142 अपदान्तस्य-VIII. iii. 24 अपचितः -VII. ii. 30 पद के अन्त में न होने वाले (नकार) को (तथा चकार अपचित शब्द (भी विकल्प से) निपातन किया जाता से मकार को भी झल् परे रहते अनुस्वार आदेश होता है)। अपदान्तस्य - VIII. iii. 55 अपञ्चम्या: -II. iv.83 .. अपदान्त को (मूर्धन्य आदेश होता है,ऐसा अधिकारपाद (अदन्त अव्ययीभाव समास से उत्तर सुप का लुक नहीं । की समाप्तिपर्यन्त जाने)। होता,अपितु उस सुप् को अम् आदेश हो जाता है),पञ्चमी अपदान्तात् -VI. 1. 93 विभक्ति को छोड़कर। अपदान्त (अवर्ण) से उत्तर (उस् परे रहते पूर्व पर के अपञ्चम्या -V.iii. 35 स्थान में पररूप एकादेश होता है,संहिता के विषय में)। (दिशा, देश और काल अर्थों में वर्तमान) पञ्चम्यन्त- अपदेशे - VI. ii.7 वर्जित अर्थात् सप्तमीप्रथमान्त (दिशावाची उत्तर, अधर बहाना अर्थ अभिधेय हो तो (तत्पुरुष समास में पद और दक्षिण) प्रातिपदिकों से विकल्प से एनप प्रत्यय होता शब्द उत्तरपद रहते पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है)। है, निकटता' गम्यमान हो तो)। अपनयने -v. iv. 49 : अपण्ये - V. iii. 99 चिकित्सा गम्यमान हो तो (रोगवाची शब्द से परे भी (जीविकोपार्जन के लिये) जो न बेचने योग्य (मनुष्य की जो षष्ठी विभक्ति,तदन्त प्रातिपदिक से विकल्प से तसि प्रतिक्ति), उसके अभिधेय होने पर (कन् प्रत्यय का लुप् प्रत्यय होता है। होता है)। ...अपनुदोः - III. ii. 5 अपत्यम् - IV.i.92 देखें-परिमृजापनुदोः III. ii. 5 (षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिकों से) अपत्य = सन्तान अर्थ को कहना हो तो (यथाविहित प्रत्यय होता है)। अपपरिबहिस्चक -II. i. 11 अपत्यम् -IV.I. 162 अप,परि, बहिस् तथा अझु ये (सुबन्त) शब्द (पञ्चम्यन्त (पौत्र और उसके आगे की) सन्तान की (गोत्र संज्ञा होती समर्थ सुबन्त शब्द के साथ विकल्प से समास को प्राप्त होते हैं, और वह अव्ययीभाव समास होता है)। है।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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