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________________ अन्यतरस्याम् अन्याभ्याम् अन्यतरस्याम् -VII. iii. 39 (ली तथा ला अङ्गको स्नेह = घृतादि पदार्थ के पिघलना अर्थ में णि परे रहते) विकल्प से (क्रमशः नुक् तथा लुक् आगम होता है)। अन्यतस्स्याम् - VII. iii. 43 (रुह् अङ्ग को)विकल्प से (णि परे रहते पकारादेश होता अन्यत्र -III. iv.75 (उणादि प्रत्यय) सम्प्रदान तथा अपादान कारकों से अन्यत्र (कर्मादि कारकों में भी होते है)। अन्यत्र-III. iv.96 (लेट् सम्बन्धी जो एकार, उसके स्थान में ऐकारादेश विकल्प से होता है), आतऐं' सत्र के विषय को छोड़कर। अन्यथा... -III. iv. 27 देखें- अन्यथैवं III. iv. 27 अन्यथैवंकथमित्वंस-III. iv. 27 __ अन्यथा, एवं, कथं तथा इत्थम् शब्दों के उपपद रहते (कृञ् धातु से णमुल प्रत्यय होता है,यदि कृञ् का अप्रयोग सिद्ध हो)। अन्यतरस्याम् - VII. iv.3 (प्राज,भास, भाष, दीप,जीव,मील,पीड - इन अङ्गो की उपधा को चङ्परक णि परे रहते) विकल्प से (हस्व होता है। अन्यतरस्याम् -VII. iv. 15 (आबन्त अङ्ग को) विकल्प से (हस्व नहीं होता है,कप् प्रत्यय परे रहते)। अन्यतरस्याम् - VII. iv. 41 (शो तथा छो अडको) विकल्प करके (इकारादेश होता है, तकारादि कित् प्रत्यय परे रहते )। अन्यतरस्याम् - VIII. 1. 13 (प्रिय तथा सुख शब्दों को कष्ट न होना' अर्थ द्योत्य हो तो) विकल्प करके (द्वित्व होता है एवं उस को कर्मधा- रयवत् कार्य होता है)। अन्यतरस्याम् - VIII. ii. 54 (प्रपूर्वक स्त्यै धातु से उत्तर निष्ठा के तकारको) विकल्प से (मकारादेश होता है)। अन्यतरस्याम् -VIII. ii. 56 .(नुद, विद, उन्दी,त्रैङ्, घा, ही- इन धातुओं से उत्तर) विकल्प से निष्ठा के तकार को नकारादेश होता है)। अन्यतरस्याम् - VIII. iii. 42 तिरस के विसर्जनीय को) विकल्प करके (सकारादेश होता है, कवर्ग पवर्ग परे रहते)। अन्यतरस्याम् - VIII. iii. 85 (मातुर तथा पितुर् शब्द से उत्तर स्वस के सकार को समास में) विकल्प करके (मर्धन्य आदेश होता है)। अन्यतरस्याम् -VIII. iv. 61 (झय प्रत्याहार से उत्तर हकार को) विकल्प से (पूर्वसवर्ण आदेश होता है)। ...अन्यतरेधुस् - V. iii. 22 देखें- सद्य:परुत् V. iii. 22 अन्यपद के अर्थ के गम्यमान होने पर (भी सुबन्त का नदीवाचियों के साथ विकल्प से अव्ययीभाव समास होता है.संज्ञा अभिधेय होने पर)। ' अन्यपदार्थे -II. ii. 24 (समस्यमान पदों से) भिन्न अर्थ में वर्तमान (अनेक सुबन्त परस्पर समास को प्राप्त होते हैं और वह समास बहुव्रीहि-संज्ञक होता है)। अन्यप्रमाणत्वात् -I. ii. 56 (प्रधानार्थवचन और प्रत्ययार्थवचन अशिष्य होते है, अर्थ के) अन्य = लोक के अधीन होने से। अन्यस्मिन् - IV. 1. 165 भाई से अन्य (सात पीढ़ियों में से कोई,पद तथा आयु दोनों से वृद्ध व्यक्ति जीवित हो तो पौत्रप्रभृति का जो अपत्य,उसके जीवित रहते विकल्प से युवा संज्ञा होती है, पक्ष में गोत्रसंज्ञा)। अन्यस्य-VI. iii. 98 (आशिस, आशा, आस्था, आस्थित, उत्सुक, अति, कारक,राग,छ- इनके परे रहते अषष्ठीस्थित तथा अतृतीयास्थित) अन्य शब्द को (दुक आगम होता है)। अन्यस्य-VI. iv.68 (षु,मा, स्था, गा, पा, हा तथा सा से) अन्य जो (संयोग आदि वाला आकारान्त) अङ्ग, उसको (कित, डित् आर्धधातुक परे रहते विकल्प से एकारादेश होता है)। ...अन्याभ्याम् - VIII. 1. 65 देखें- एकान्याभ्याम् VIII. 1.65 ।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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