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________________ अन्यतरस्याम् अन्यतरस्याम् अन्यतरस्याम् -VI.i. 171 अन्यतरस्याम् -VI. iii. 58 (मतुप प्रत्यय के परे रहते हस्वान्त अन्तोदात्त शब्द से (जिसको पूरा किया जाना चाहिए, तद्वाची एक= असउत्तर नाम् को) विकल्प से (उदात्त होता है)। हाय हल है आदि में जिसके.ऐसे शब्द के उत्तरपद रहते) विकल्प करके (उदक शब्द को उद आदेश होता है)। अन्यतरस्याम् - VI. 1. 178 अन्यतरस्याम् - VI. iii.76 (न से परे भी झलादि विभक्ति) विकल्प से (उदात्त नहीं (प्राणिभिन्न अर्थ में वर्तमान नग शब्द के नत्र को प्रकहोती)। तिभाव) विकल्प करके (होता है)। अन्यतरस्याम् -VI.i. 181 अन्यतरस्याम् - VI. iii. 109 (सिच अन्तवाला शब्दो विकल्प से (आधदात्त होता है)। (संख्या,वि तथा साय पूर्व वाले अह्न शब्द को) विकल्प अन्यतरस्याम् - VI. 1. 188 करके (अहन् आदेश होता है, ङि परे रहते)। (णमुल परे रहते पूर्व धातु को) विकल्प से (आधुदात्त अन्यतरस्याम् - VI. iv.45 होता है)। (क्तिच् प्रत्यय परेरहते सन् अङ्गको आकारादेश हो जाता है तथा) विकल्प से (इसका लोप भी होता है)।. . अन्यतरस्याम् -VI. I. 212 अन्यतरस्याम् -VI. iv.47 (चङन्त शब्द के उत्तरपद को) विकल्प करके (उदात्त (प्रस्ज् धातु के रेफ तथा उपधा के स्थान में) विकल्प से होता है। (रम् आगम होता है,आर्धधातुक परे रहने पर)। . अन्यतरस्याम् -VI. ii. 28 अन्यतरस्याम् -VI. iv.70 (पूगवाची शब्द उत्तरपद रहते कर्मधारय समास में कुमार (मेङ प्रणिदाने' अङ्गको) विकल्प से (इकारादेश होता शब्द को) विकल्प से (आधुदात्त होता है)। है.ल्यप परे रहते)। अन्यतरस्याम् - VI. ii. 29 अन्यतरस्याम् - VI. iv.93 . (द्विगु समास में इगन्त,कालवाची.कपाल,भगाल तथा मित् अङ्ग की उपधा को चिण्परक तथा णमुल्परक णि शराव शब्दों के उत्तरपद रहते पूर्वपद को) विकल्प से परे रहते) विकल्प से (दीर्घ होता है)। ,. (प्रकृतिस्वर हो जाता है)। . अन्यतरस्याम् - VI. ii. 54 अन्यतरस्याम् -VI. iv. 107 (पूर्वपद ईषत् शब्द को) विकल्प से (प्रकृतिस्वर होता । (असंयोग पूर्व जो उकार, तदन्त प्रत्यय का) विकल्प से (लोप भी होता है,मकारादि तथा वकारादि प्रत्ययों के परे रहते)। अन्यतरस्याम् - VI. ii. 110 (बहुव्रीहि समास में उपसर्ग पूर्व वाले निष्ठान्त पूर्वपद अन्यतरस्याम् -VI. iv. 115 को) विकल्प से (अन्तोदात्त होता है)। (भी' अङ्गको)विकल्प करके (इकारादेश होता है.हलादि कित्,डित् सार्वधातुक परे रहते)। अन्यतरस्याम् - VI. ii. 169 (बहुव्रीहि समास में निष्ठान्त तथा उपमानवाची से उत्तर अन्यतरस्याम् - VII. 1. 35 (आशीर्वाद विषय में तु और हि के स्थान में ) विकल्प स्वाहमुख शब्द उत्तरपद को) विकल्प से (अन्तोदात्त होता करके (तातङ् आदेश होता है)। अन्यतरस्याम् -VI. iii. 21 अन्यतरस्याम् -VII. ii. 101 (पुत्र शब्द उत्तरपद रहते आक्रोश गम्यमान होने पर) (जरा शब्द को अजादि विभक्तियों के परे रहते) विकल्प से (जरस् आदेश होता है)। विकल्प करके (षष्ठी का अलुक् होता है)। अन्यतरस्याम् - VII. iii.9 अन्यतरस्याम् - VI. iii. 43 (पद शब्द अन्त में है जिसके,ऐसे श्वन आदि वाले अङ्ग (पूर्वसूत्रों से शेष, नदीसञक शब्दों को) विकल्प करके । को जो ऐच आगम एवं वृद्धिप्रतिषेध कहा है,वह) विकल्प (हस्व हो जाता है;घ,रूपप,कल्पप, चेलट्,बुव, गोत्र,मत से (नहीं होता)। तथा हत शब्दों के परे रहते)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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