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________________ 578 हैहेप्रयोगे (कम असहत कृपास) हावाप्रप ...त्विा :-IIL.ii.126 . हेतु... - III. III. 156 हेतुहेतुमतो:- III. iii. 156 देखें- हेतुहेतुमतोः II. III. 156 हेतु और हेतुमत् अर्थ में वर्तमान (धातु से लिङ् प्रत्यय हेतु... -IN. Ill. 81 . विकल्प से होता है)। देखें-हेतुमनुव्येभ्यः IV. 1. 81 . हेतौ-II. iii. 23 हेतु-I. iv.55 फलसाधनयोग्य पदार्थ = हेतु में (तृतीया विभक्ति . (उस स्वतन्त्र कर्ता का जो प्रयोजन कारक,उसकी) हेतु होती है)। संज्ञा (तथा कर्तृसंज्ञा) होती है। हेतौ-v.ii. 26 'हेतु' अर्थ में वर्तमान (तथा प्रकारवान्' अर्थ में वर्तमान हेतुताच्छील्यानुलोम्येषु-III. ii. 20 किम् प्रातिपदिक से धा प्रत्यय होता है, वेदविषय में)। (कर्म उपपद रहते कृञ् धातु से) हेतु, ताच्छील्य = तत्स्वभावता और आनुलोम्य = अनुकूलता गम्यमान हो . देखें- लक्षणहेत्वोः III. 1. 126 तो (ट प्रत्यय होता है)। ...हेप्रयोगे-VIII. 1. 85 ... हेतुप्रयोगे-II. ill. 26 देखें-हैहेप्रयोगे VIII. 1.85 हेमन्त...-II. Iv.28 हेतु शब्द के प्रयोग करने पर (हेतु द्योत्य हो तो षष्ठी देखें-हेमन्तशिशिरौ II.iv28 - विभक्ति होती है)। हेमन्तशिशिरी-II. iv. 28 हेतुभये-I. ill. 68 हेमन्त व शिशिर (के द्वन्द्व-समासान्त का पूर्ववत् लिङ्ग (लकारवाच्य) कर्ता से भय होने पर (ण्यन्त भी तथा स्मि होता है, वेदविषय में)। धातुओं से आत्मनेपद होता है)। हेमन्तात्-IV. . 21 हेतुपये-VI. 1. 35 (कालवाची) हेमन्त शब्द से (भी वेदविषय में ढञ् प्रत्यय हेतु जहाँ भय का कारण हो,उस अर्थ में वर्तमान बिभी होता है)। धातु के एच् के स्थान में णिच् प्रत्यय परे रहते विकल्प है...-VIII. II. 85 से आत्व हो जाता है)। देखें-हैहेप्रयोगे VIII. 1.85 हेतुभये- VII. iii. 40 है... - VIII. 1.85 (जिभी भये' अङ्गको) हेतुभय अर्थ में (णि परे रहते देखें- हैहयो: VIII. II. 85 हैयङ्गवीनम्-v.ii. 23 क् आगम होता है)। हैयङ्गवीन शब्द का निपातन किया जाता है, (सज्जाहेतुमति-III. I. 26 विषय में)। हेतुमत् अभिधेय होने पर(भी धातु से णिच् प्रत्यय होता ...हैलिहिल... -VI. I. 38 देखें-बीहापराहण-VI. II. 38 स्वतन्त्र कर्ता का प्रयोजक हेतु' होता है। उस हेतु का हैहयो:- VIII. II. 85 व्यापार हेतुमत् । (है. तथा हे के प्रयोग होने पर जो दूर से बुलाने में हेतुमतो:- Im. II. 156 प्रयुक्त वाक्य, उसमें) है तथा हे को (ही प्लुत उदात्त होता देखें-हेतुहेतुमतोः III. I. 156 हैहेप्रयोगे -VIII. 1.85 हेतुमनुष्येभ्यः- IV. iii. 81 . है तथा हे के प्रयोग होने पर (जो दूर से बुलाने में (पञ्चमीसमर्थ) हेतु तथा मनुष्यवाची प्रातिपदिकों से प्रयुक्त वाक्य, उसमें है तथा हे को ही प्लुत उदात्त होता (आगत' अर्थ मे विकल्प से रूप्य प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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