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________________ 576 हिते-VI. 1. 15 हितवाची (तत्पुरुष समास) में (सुख तथा प्रिय शब्द उत्तरपद रहते पूर्वपद को प्रकृतिस्वर हो जाता है)। ...हिते-III.73 . देखें- आयुष्यमद्रभा II. Iii. 73 हिनु...-VIII. iv. 15 देखें-हिनुमीना VIII. iv. 15 हिनुमीना-VIII. iv. 15 (उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर) हिनु तथा मीना के (नकार को णकार आदेश होता है)। ...हिम..-IV.i. 48. देखें-इन्द्रवरुणभक IV. 1.48 . हिम...-VI. ii. 53 देखें-हिमकाषिहतिष VI. . 53 हिमकाविहतिषु- VI. ii. 53 हिम,कापिन,हति-इनके उत्तरपद रहते (भी पाद शब्द को पद् आदेश होता है)। हति = हत्या,प्रहार, त्रुटि,गुणा। ...हिमवद्भ्याम्-IV.iv. 112 देखें-वेशन्तहिमवद्भ्याम् M.v. 112 ...हिमश्रथा-VI. 1.29. देखें-अवोधोयVI. iv. 29 . ...हिरण्मयानि-VI. iv. 174 ... देखें-दाण्डिनायन VI. iv. 174 हिरण्य.. -VI.ii. 55 देखें-हिरण्यपरिमाणम् VI. ii. 55 हिरण्यपरिमाणम्-VI.H.55 हिरण्य और परिमाण दोनों अर्थों को कहने वाले पूर्वपद को (धन शब्द उत्तरपद रहते विकल्प से प्रकृतिस्वर होता .... हिंस... -III. ii. 146 देखें-निन्दहिंस. II. I. 146 ....हिंस.. -III. 1. 167 . देखें-नमिकम्पि III. 1. 167 - - ...हिंसाम्-VI.i. 182 देखें-स्वपादिहिंसाम् VI.i. 182 हिंसायाम्-II. iii. 56 हिंसा अर्थ में विद्यमान (जस.नि प्र पूर्वक हन. ण्यन्त नट एवं क्रथ तथा पिष् -इन धातुओं के कर्म में शेष । विवक्षित होने पर षष्ठी विभक्ति होती है)। .. हिंसायाम्-VI. 1. 137 (उप तथा प्रति उपसर्ग से उत्तर कृ विक्षेपे धातुं के परे ... । के विषय में (ककार से पूर्व सुट् आगम होता है,संहिता के विषय में)। हिंसायाम्-VI. iv. 123 हिंसा अर्थ में वर्तमान (राध अङ्ग के अवर्ण के स्थान में : एकारादेश तथा अभ्यासलोप होता है; कित, ङित् लिट् तथा सेट् थल परे रहते)। हिसार्थानाम्-III. iv. 48 (अनुप्रयुक्त धातु के साथ समान कर्मवाली) हिंसार्थक धातुओं से (भी तृतीयान्त उपपद रहते णमुल् प्रत्यय होता ....हिंसाधेश्य-I. 1. 15 देखें- गतिहिंसार्थेभ्यः I. iii. 15 हीने-I. iv.85 न्यून की प्रतीति होने पर (अनु कर्मप्रवचनीय और निपातसज्ञक तसंज्ञक होता है)। हीयमान... -V.iv.47 देखें-हीयमानपापयोगात् V.iv.47 हीयमानपापयोगात्-v.iv. 47 . हीयमान तथा पाप शब्द के साथ सम्बन्ध है जिन शब्दों का, तदन्त शब्दों से परे (भी जो तृतीया विभक्ति, तदन्त से तसि प्रत्यय विकल्प से होता है, यदि वह तृतीया कर्ता में न हई हो तो)। ....... -III. iv. 16 देखें-स्थेण्कर III. iv. 16 ...हिरण्यात्-v.1.65 देखें-बनहिरण्यात् V.1.65 हिस्वी-III. iv.2 . (क्रिया का पौनमुन्य गम्यमान हो तो धात्वर्थ-सम्बन्ध होने पर धातु से सब कालों में लोट् प्रत्यय हो जाता है और उस लोट् के स्थान में) हि और स्व आदेश (नित्य होते हैं तथा त, ध्वम्-भावी लोट् के स्थान में विकल्प से) हि,स्व आदेश होते हैं।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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