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________________ अन्नम् अन्यतरस्याम् अन्नम् -V.ii. 82 अन्यतरस्याम् -II. 1.3 (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से सप्तम्यर्थ में कन् प्रत्यय (द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ तथा तुर्य सुबन्त एकाधिकरणहोता है. यदि वह प्रथमासमर्थ बहुल करके.सज्ञाविषय वाची एकदेशी सुबन्त के साथ) विकल्प से (समास को में) अन्नविषयक हो तो । प्राप्त होता है और वह तत्पुरुष समास होता है)। अन्नात् - IV. iv. 85 अन्यतरस्याम् -II. ii. 21 (द्वितीयासमर्थ) अन्न प्रातिपदिक से (प्राप्त करने वाला (उपदंशस्तृतीयायाम् III. iv.47 से लेकर अन्वच्याकहना हो तो ण प्रत्यय होता है)। नुलोम्ये III. iv. 64 तक जितने उपपद है, वे अमन्त अन्नेन-II.1.33 अव्यय के साथ ही) विकल्प से (तत्पुरुष समास को प्राप्त अन्नवाची (समर्थ सुबन्त) के साथ (तृतीयान्त व्यञ्जन होते है)। वाची सुबन्त विकल्प से समास को प्राप्त होता है और वह __ अन्यतरस्याम् -II. iii. 22 तत्पुरुष समासे होता है)। (सम् पूर्वक ज्ञा धातु के अनभिहित कर्मकारक में) अन्य.. - II. iii. 29 विकल्प से (तृतीया विभक्ति होती है)। देखें- अन्यारादितरतेंदिक्छब्दा II. iii. 29 अन्यतरस्याम् -II. ill. 32 ...अन्य.. -v.ii. 15 (पृथक्, विना, नाना- इन शब्दों के योग में) विकल्प देखें-सर्वैकान्य V. iii. 15 से (ततीया विभक्ति होती है,पक्ष में पञ्चमी भी होती है)। अन्यतः - IV.I. 40 तकारोषध वर्णवाची प्रातिपदिकों से अन्य जो (वर्णवाची अन्यतरस्याम् -II. III. 34 अदन्त अनुदात्तान्त) प्रातिपदिक, उनसे (स्त्रीलिंग में ङीष (दूरार्थक और अन्तिकार्थक शब्दों के योग में) विकल्प प्रत्यय होता है)। से (षष्ठी विभक्ति होती है,पक्ष में पञ्चमी भी)। . अन्यतरस्याम् -I. ii. 21 अन्यतरस्याम् -II. III. 72 (उकार उपधा वाली धातु से परे भाववाच्य एवं आदि- (तला और उपमा-वर्जित तुल्यार्थक शब्दों के योग में) कर्म में वर्तमान सेट् निष्ठा प्रत्यय) विकल्प करके (कित् विकल्प से (ततीया विभक्ति होती है,पक्ष में षष्ठी भी)। नहीं होता है)। अन्यतरस्याम् -II. iv. 40 अन्यतरस्याम् -I.ii. 58 (अद् को घस्ल आदेश) विकल्प से (होता है, लिट् परे (जाति को कहने में एकत्व को) विकल्प से (बहुत्व हो रहते)। जाता है)। अन्यतरस्याम् -II. iv.44 अन्यतरस्याम् - I. 1.69 . (नपुंसकलिंग शब्द नपुंसकलिंग-भिन्न शब्दों के साथ, ' (आत्मनेपद में हन् के स्थान में) विकल्प से (ही वधादेश अर्थात् पुंल्लिंग शब्दों के साथ शेष रह जाता है, तथा होता है, लुङ् लकार में)। स्त्रीलिंग पुंल्लिग शब्द हट जाते हैं,एवं उस नपंसकलिंग अन्यतरस्याम् -II. iv.69 शब्द को एकवत् कार्य भी) विकल्प करके हो जाता है, (उपकादि शब्दों से परे गोत्र में विहित जो तत्कृत बहु(यदि उन शब्दों में नपुंसक गुण एवं अनपुंसक गुण का वचन प्रत्यय,उसका लुक) विकल्प से होता है.द्वन्दू और ही वैशिष्ट्य हो, शेष प्रकृति आदि समान ही हो)। अद्वन्द्व समास में)। अन्यतरस्याम् - III. 1. 39 अन्यतरस्याम् -I. iv. 44 (उष, विद तथा जाग धातुओं से) विकल्प से (अमन्त्र (परिक्रयण में जो साधकतम कारक,उसकी) विकल्प से विषय में लिट् परे रहते आम् प्रत्यय होता है)। (सम्पदान संज्ञा होती है)। अन्यतरस्याम् -III. I. 41 अन्यतरस्याम् -I.iv.53 (हज् तथा कृञ् धातु का अण्यन्तावस्था का जो कर्ता (विदाकुर्वन्तु- यह रूपलोट् के प्रथम पुरुष बहवचन वह ण्यन्तावस्था में) विकल्प से (कर्मसंज्ञक होता है। में) विकल्प से (निपातन किया जाता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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