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________________ सुप् , 552 सुपिसूतिसमाः aa सुप्-II.1.2 (आमन्त्रितसञक पद के परे रहते पूर्व के) सुबन्त पद को (पर के अङ्ग के समान कार्य होता है,स्वरविषय में)। सुप् -II.i.9 सबन्त पद (मात्रा अर्थ में वर्तमान प्रति के साथ अव्य- यीभाव समास को प्राप्त होता है)। सुप्... -III.1.4 देखें - सुष्पितौ III. 1.4 ...सुप्-IV.1.2 देखें- स्वौजस्मौट IV.i.2 सुप्... - VIII. 1.2 देखें-सुपवर VIII. ii.2 सुपः-I.iv. 102 सपों के (तीन-तीन की एक-एक करके एकवचन,द्विव- चन और बहुवचन संज्ञा हो जाती है)। सुप -II. iv.71 (धातु और प्रातिपदिक के अवयव) सुप् का (लुक् हो जाता है)। ...सुप-II. iv.82 देखें- आप्सुफः II. iv. 82. सुपः-III.1.8 . (इच्छा करने वाले के आत्मसम्बन्धी इच्छा के) सुबन्त (कम) से (इच्छा अर्थ में विकल्प से क्यच प्रत्यय होता सुपि-III.i. 106 सुबन्त उपपद रहते (उपसर्गरहित क्यप् प्रत्यय होता है, चकार से यत् प्रत्यय भी होता है)। सुपि-III. ii.4 सबन्त उपपद रहते (स्था धात से 'क' प्रत्यय होता है। सुपि-III. ii. 68 (अजातिवाची) सुबन्त उपपद हो, तो (ताच्छील्य = . 'ऐसा उसका स्वभाव है',गम्यमान होने पर सब धातुओं . से णिनि प्रत्यय होता है)। सुपि- VI. i. 89 सुबन्त अवयव वाले (ऋकारादि धात) के परे रहते (अवर्णान्त उपसर्ग से उत्तर पूर्व-पर के स्थान में संहिता के विषय में आपिशलि आचार्य के मत में विकल्प से वद्धि एकादेश होता है)। . सुपि - VI. 1. 185 सुप् परे रहते (सर्व शब्द के आदि को उदात्त होता है)। सुपि-VI. iv. 83. (धातु का अवयव संयोग पूर्व नहीं है जिस उवर्ण के, तदन्त अनेकाच् अङ्ग को अजादि) सुप परे रहते (यणादेश होता है)। सुपि-VII. iii. 101 (अकारान्त अङ्ग को यादि) सुप् परे रहते (भी दीर्घ होता है)। सुपि-VIII. I. 69 (गोत्रादि-गण-पठित शब्दों को छोड़कर निन्दावाची) सुबन्त शब्दों के परे रहते (भी गति संज्ञासहित एवं गति संज्ञारहित दोनों तिङन्तों को अनुदात्त होता है)। सुपि - VIII. iii. 16 (रु के रेफ को) सुप् परे रहते विसर्जनीय आदेश होता सुप-V.li.68 (किञ्चित् न्यून' अर्थ में वर्तमान) सुबन्त से (विकल्प से बहुच् प्रत्यय होता है और वह सुबन्त से पूर्व में ही होता ...सुपरि... - V. 1. 84 देखें-शेवलसुपरिo v. iii. 84 सुपा-II.1.4 सुबन्त के साथ (समर्थ सुबन्त का समास होता है) यह अधिकार है। सुपाम्- VII. 1. 39 सुपों के स्थान में (स.लक.पूर्वसवर्ण आ.आत.शे.या. डा,ड्या, याच, आल् आदेश होते हैं, वेदविषय में)। सुपि... - VIII. iii. 88 देखें - सुपिसूतिसमा: VIII. iii. 88 सुपिसूतिसमा - VIII. ii. 88 (सु, वि, निर् तथा दुर से उत्तर) सुपि, सूति तथा सम के (सकार को मूर्धन्यादेश होता है)। .
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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