SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 569
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुखादिन्य 551 ...सुट..- VIII. 1.70 देखें-सेवसित VIII. 1.70 सुटि-VIII. ill.s • (सम् को रु होता है) सुट् परे रहते (संहिता-विषय में)। ...सुतङ्गम...- IV. 1.79 देखें-अरीहणकशाश्क IV. 1.79 सुतिसि-VI.1.66 - (हलन्त,ङ्यन्त तथा आबन्त दीर्घ से उत्तर) सु,ति तथा सि (का जो अपृक्त हल.उसका लोप होता है)। ...सुदिव..-V.iv. 120 देखें- सुप्रातसुखसुदिक V. iv. 120 सुदुर्ध्याम्- VII. 1.68 किवल) सु तथा दुर् उपसर्गों से उत्तर (लभ् धातु को खल् तथा घञ् प्रत्यय परे रहते नुम् आगम नहीं होता सुखादिष्य - V. 1. 131 सुखादि प्रातिपदिकों से (भी 'मत्वर्थ' में इनि प्रत्यय होता है)। ...सुखादिश्य-VI. 1. 170 देखें-जातिकाल.VI. 1. 170 -सुखार्थ...- II. ii. 73 देखें- आयुष्यमद्रम II. III. 73 सुच-v..18 (क्रिया के बार-बार गणन' अर्थ में वर्तमान सङ्ख्यावाची द्वि, त्रि तथा चतुर प्रातिपदिकों से) सुच प्रत्यय होता है। ...सुचतुर..-V.v.77 -देखें- अचुतर0 V. iv.77 सुर-III. II. 80 . पुज् धातु से (सोम' कर्म उपपद रहते 'क्विप्' प्रत्यय होता है, भूतकाल में)। सुष-III. 1. 132 (यज्ञ से संयुक्त अभिषव में वर्तमान) पुज् धातु से (वर्तमान काल में शत प्रत्यय होता है)। सुष- VIII. III. 107 . (पूर्वपद में स्थित निमित्त से उत्तर) सु निपात के (सकार . को वेदविषय में मूर्धन्य आदेश होता है)। सुषि-VI. II. 133 (गन्त शब्द को) सुब् परे रहते (ऋचा-विषय में दीर्घ हो जाता है, संहिता में)। सुर-1.1.42 (नपुंसकलिङ्ग से भिन्न जो सुट प्रत्याहार-स.औ.जस. - अम, औट् -(उसकी सर्वनाम स्थान संज्ञा होती है)। सुद-III. iv. 107 लिक्सम्बन्धी तकार और थकार को) सुट् का आगम होता है। सुर-VL.I. 131 (ककार से पूर्व) सुट् का आगम होता है, यह अधिकार आदेश होता है)। सुधातः - IV.1.97 सुधात शब्द से (तस्यापत्यम्' अर्थ में इञ् प्रत्यय होता है तथा सुधात शब्द को (अका आदेश भी होता है)। सुधित- VII. iv. 45 सुधित शब्द वेदविषय में निपातन किया जाता है। ...सुधियोः - VI. iv.82 देखें-भूसुधियोः VI. iv.a2 सुनोति... - VIII. II. 65 देखें-सुनोतिसुवति VIII. 1.65 सुनोतिसुवतिस्यतिस्तौतिस्तोपतिस्थासेनवसेवासियसलास्वाम् -VIII..ll1.65. (उपसर्गस्थ निमित्त से उत्तर) सुनोति, सुवति, स्यति, स्तौति,स्तोभति, स्था, सेनय,सेध, सिच, सज, स्वइनके (सकार को मूर्धन्यादेश होता है, अट् के व्यवधान में भी तथा स्थादियों के अभ्यास के व्यवधान में एवम् अभ्यास को भी)। सुनोते.-VIII. 1. 117 (स्य तथा सन् परे रहते) पुज् धातु के (सकार को मूर्धन्य आदेश नहीं होता)। सुप.. -I.iv. 14 देखें-सुप्तिान्तम् .. 14 सुद-VII.1.52 (अवर्णान्त सर्वनाम से उत्तर आम को सट का आगम होता है।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy