SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 557
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ...सर्व... ... सर्व ... - III. 1. 48 देखें- अन्तात्त्यन्तo III. ii. 48 सर्व.... देखें - सर्वदेवात् IV. iv. 142 . - IV. iv. 142 सर्व... - V. 1. 10 देखें - सर्वपुरुवाभ्याम् V. 1. 10 सर्व... - V. iii. 15 देखें- सर्वेकान्यo V. iii. 15 सर्व... - V. iv. 87 देखें - सर्वैकदेशo Viv. 87 ... सर्व... - VII. iii. 12 देखें - सुसर्वार्थात् िVII. iii. 12 सर्वकूलाप्रकरीषेषु - III. ii. 42 सर्व, कूल, अभ्र, करीष—इन (कर्मों) के उपपद रहते (कष् धातु से खच् प्रत्यय होता है) । सर्वचर्मण:- Vali. 5 (तृतीयासमर्थ) सर्वचर्मन् प्रातिपदिक से (किया हुआ' अर्थ में ख तथा खञ् प्रत्यय होते हैं) । सर्वत्र - IV. 1. 18 (अनुपर्सजन यञन्त लोहित से लेकर कत पर्यन्त प्रातिपदिकों से स्त्रीलिङ्ग - विषय में ष्फ प्रत्यय होता है) सब आचार्यों के मत में (और वह तद्धितसंज्ञक होता है) । सर्वत्र - IV iii. 22 539 (हेमन्त प्रातिपदिक से) वैदिक तथा लौकिक प्रयोग में (अण् तथा ठञ् प्रत्यय होते है तथा उस अण् के परे रहने पर हेमन्त शब्द के तकार का लोप भी होता है) । सर्वत्र - VI. 1. 118 सर्वत्र छन्द तथा भाषाविषय दोनों में (गो शब्द के पदान्त एङ्को विकल्प से अकार परे रहते प्रकृतिभाव होता है)। सर्वत्र = - VIII. iv. 50 . (शाकल्य आचार्य के मत में) सर्वत्र अर्थात् त्रिप्रभृति अथवा अत्रिप्रभृति सर्वत्र (द्वित्व नहीं होता) । सर्वदेवात् - IV. Iv. 142 सर्व और देव प्रातिपदिकों से (वेदविषय में स्वार्थ में तातिल् प्रत्यय होता है)। सर्वनाम्नः सर्वधुरात् IV. iv. 78 (द्वितीयासमर्थ) सर्वधुर प्रातिपदिक से (ढोता है' अर्थ में ख प्रत्यय होता है)। ...सर्वनाम... - .-V. iii. 2 देखें- किंसर्वनामo V. iii. 2 सर्वनामस्थानम् - I. 1. 42 (शि' की) सर्वनामस्थान संज्ञा होती है। ...सर्वनामस्थानयो: - VII. iii. 110 देखें - डिसर्वनामस्थानयो: VII. iii. 110 सर्वनामस्थाने - VI. 1. 193 = नपुं (पथिन् तथा मथिन् शब्द को) सर्वनामस्थान सकलिंगभिन्न सुट् [ सु, औ, जस्, अम्, ट्] परे रहते (आदि उदात्त होता है)। सर्वनामस्थाने - VI. iv. 8 (सम्बुद्धिभिन्न) सर्वनामस्थान विभक्ति परे रहते (भी नकारान्त अङ्ग की उपधा को दीर्घ हो जाता है) । सर्वनामस्थाने - VII. 1. 70 (धातुवर्जित उक् इत्सञ्ज्ञक है जिनका ऐसे अङ्ग को तथा अनु धातु को) सर्वनामस्थान परे रहते (नुम् आगम होता है)। सर्वनामस्थाने - VII. 1. 86 (पथिन्, मथिन् तथा ऋभुक्षिन् अङ्गों के इक् के स्थान में अकारादेश होता है) सर्वनामस्थान परे रहते । सर्वनामानि - I. 1. 26 (सर्वादिगणपठित शब्दों की) सर्वनाम संज्ञा होती है। सर्वनाम्नः - II. III. 27 (हेतु शब्द के प्रयोग में तथा हेतु के विशेषणवाची) सर्वनामसञ्ज्ञक शब्द के (प्रयोग में हेतु द्योतित होने पर तृतीया और षष्ठी विभक्ति होती है)। सर्वनाम्नः - VI. iii. 10 सर्वनामसञ्ज्ञक शब्दों को (आकारादेश होता है; दृक् दृश, तथा वतुप् परे रहते) । सर्वनाम्नः - VII. 1. 14 (अकारान्त) सर्वनाम अङ्ग से उत्तर ('ङे' के स्थान में स्मै आदेश होता है) 1
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy