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________________ 538 .. . ...सम्भ्यः -III. II. 180 ...सरजस...- V. iv.77 देखें-विप्रसम्य:III. II. 180 देखें- अचतुर0 V. iv.77 ....सम्भ्याम्-V.iv. 129 ...सरसाम्- V. iv.94 देखें-प्रसम्भ्याम् V. iv. 129 देखें- अनोश्मायःo V. iv.94 ..सम्मति...- VIII.1.8 सरीसृपतम्-VII. iv.65 देखें-असूयासम्मति VIII.1.8 सरीसृपतम् शब्द वेदविषय में निपातन किया जाता है। ...सम्मति...-VIII. 1. 103 देखें- असूयासम्मतिः VIII. ii. 103 सरूपाणाम्-I. 1.63 ...सम्मदौ-III. III.68 समान रूप वाले शब्दों में से (एक शेष रह जाता है, देखें-प्रमदसम्मदौ III. Iii. 68 . अन्य हट जाते हैं, एक विभक्ति के परे रहते)। सम्मानन...-1.1.36 सख्ये-II. 1. 27 देखें-सम्माननोत्सझनाचार्य 1. 11. 36 समान रूप वाले से (सप्तम्यन्त तथा तृतीयान्त सुबन्त सम्मानन..-1.11.70 . 'इदम्' = यह, इस अर्थ में समास को प्राप्त होते हैं और देखें-सम्माननशालीनीकरणयोः I. 11.70 वह समास बहुव्रीहिसजक होता है)। सम्माननशालीनीकरणयो:-1.11.70 ....सर्ग...-I. 11. 38 सम्मानन = पूजन, शालीनीकरण = दबाना (तथा देखें-वत्तिसर्गतायनेषु I. iii. 38 प्रलम्भन = ठगना) अर्थ में (ण्यन्त ली धातु से आत्मनेपद सर्ति..-III.i.56 होता है)। देखें- सतिशास्त्यः II. 1. 56 सम्माननोत्सझनाचार्यकरणज्ञानभृतिविगणनव्ययेषु-I. ...सति..- VII. iii. 78 iil.36 देखें- पाघ्राध्या. VII. iii. 78 सम्मानन = पूजा,उत्सजन = उछालना, आचार्यकरण ...सतिभ्यः-III. ii. 163 = आचार्यक्रिया, ज्ञान = तत्त्वनिश्चय, भूति = वेतन, देखें-इनश III. il. 163 विगणन = अणादि का चुकाना,व्यय = धर्मादि कार्या सर्तिशास्त्यतिथ्य-III.1.56 में व्यय करना-न अर्थों में वर्तमान (णी धातु से स = गत्यर्थक,शासु तथा ऋ धातु से उत्तर (भी चिल आत्मनेपद होता है)। को अङ् आदेश होता है, कर्तृवाची लुङ्, परस्मैपद परे ...सम्मितेषु- IV. iv.91 रहते)। देखें- तार्यतुल्य Viv.91 सर्ते:-III. 1. 18 सम्मिती-V.iv. 135 सृ धातु से (पुरस्, अग्रतस् और अग्र उपपद रहते 'ट' (ततीयासमर्थ सहन प्रातिपदिक से) तुल्य अभिधेय हो । प्रत्यय होता है)। तो (ष प्रत्यय होता है)। सतें:-III. lil.71 ...सम्मुखस्य-v.1.6 देखें- यथामुखसम्मुखस्य V. 1.6 (प्रजन अर्थ में वर्तमान) स धातु से (अप् प्रत्यय होता ...सयूथ...-IV. iv. 114 है, कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में)। देखें- सगर्भसयूथ IV. iv. 114 ...सर्व...-II. 1. 48 ...सयो:-VII. 1.45 देखें- पूर्वकालैकसर्वजरत्o II. 1. 48 देखें-यासयो: VII. 11.45 - सर्व... -III. . 42 ...सर...- VII. II.9 देखें-तितु VII. 1.9 देखें- सर्वकूलाHo III. ii. 42
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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