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________________ षष्ठ्याः षष्ठ्याः VIII. iii. 53 (पति, पुत्र, पृष्ठ, पार, पद, पयस, पोष इन शब्दों के परे रहते वेदविषय में) षष्ठी विभक्ति के (विसर्जनीय को सकारादेश होता है)। - घाकन् - III. ii. 155 (जल्प, भिक्ष, कुट्ट, लुण्ठ, वृड् इन धातुओं से तच्छीलादि कर्ता हों तो वर्तमान काल में) षाकन् प्रत्यय होता है। घात् - VIII. iv. 34 (पदान्त) षकार से उत्तर ( नकार को णकार आदेश नहीं होता)। वान्तस्य षकारान्त (नश् धातु) के (नकार को णकारादेश नहीं होता) । - • VIII. iv. 35. ... .. षाभ्याम् - VIII. iv. 1 देखें - वाभ्याम् VIII. iv. 1 वि. - VIII. iv. 42 (तवर्ग को) षकार परे रहते (ष्टुत्व नहीं होता) । विद III.104 देखें विभिदादिभ्यः 111. II. 104 - 517 विट्. - IV. L. 40 देखें - विद्वौरादिभ्यः IV. 1. 40 षिौरादिभ्यः - IV. 1. 40 पित् प्रातिपदिकों से तथा गौरादि प्रातिपदिकों से भी स्त्रीलिङ्ग में ङीष प्रत्यय होता है)। विभिदादिभ्यः - IIIIII. 104 पकार इत्संज्ञक है जिनका ऐसी धातुओं से तथा भिदादिगणपठित धातुओं से (स्त्रीलिङ्ग में अङ् प्रत्यय होता है, कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में)। .. षीध्वम्... - VIIi. iii. 78 देखें - षीध्वंलुलिटाम् VIII. iii. 78 षीध्वं लुलिटाम् - VIII. iii. 78 षुक् - IV. 1. 161 (मनु शब्द से जाति को कहना हो तो अन् तथा यत् प्रत्यय होते हैं तथा मनु शब्द को) षुक् आगम भी हो जाता है । षुक् - IV. iii. 135 (षष्ठीसमर्थ त्रपु और जतु प्रातिपदिकों से अणू प्रत्यय होता है तथा इन दोनों को) धुक् आगम भी होता है। धुक् - VII. iii. 40 (जिभी भये' अङ्ग को हेतुभय अर्थ में णि परे रहते) बुक् आगम होता है। ... पुञ्... - III. iii. 99 देखें - समजनिषद० III. iii. 99 ष्ठन् ... षुभ्यः - VIII. iv. 26 देखें - धातुस्योरुयुभ्यः VIII. . 26 - (इन् प्रत्याहार अन्तवाले अङ्ग से उत्तर) षीध्वम्, लुङतथा लिट् के (धकार को मूर्धन्य आदेश होता है) । -V. L. 74 (द्वितीयासमर्थ पथिन् प्रातिपदिक से 'जाता है' अर्थ में) कन् प्रत्यय होता है। ष्टरच् - V. lii. 90 (छोटा' अर्थ गम्यमान हो तो कासू तथा गोणी प्रातिपदिकों से) ष्टरच् प्रत्यय होता है । g:-VIII. iv. 40 (पकार और टवर्ग के योग में सकार और तवर्ग के • स्थान में) षकार और टवर्ग आदेश होते हैं। ष्ट्रन् - III. 1. 181 (घा धातु से कर्मकारक में) ष्ट्न् प्रत्यय होता है, (वर्तमान काल में) । .... ष्ठचौ - IV. iv. 31 देखें ष्टष्ठवौ IV. Iv. 31 - ष्ठन् - IV. iii. 70 (षष्ठीसप्तमीसमर्थ पौरोडाश, पुरोडाश व्याख्यातव्यनाम प्रातिपदिकों से 'भव' और 'व्याख्यान' अर्थों में) ष्ठन् प्रत्यय होता है)। ष्ठन् - IV. iv. 10 (तृतीयासमर्थ पर्णादि प्रातिपदिकों से 'चरति' अर्थ में) ष्ठन् प्रत्यय होता है।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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