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________________ वश्व... 497 व्रश्च...-VIII. ii. 36 देखें-वश्वप्रस्ज.VIII. 1.36 वश्वप्रस्जसजमजयजराजप्राजच्छशाम् - VIII. ii. 36 ओवश्चू, प्रस्ज, सृज, मजूष, यज, राजू, टुभ्राज-इन धातुओं को तथा छकारान्त एवं शकारान्त धातुओं को (भी झल् परे रहते एवं पदान्त में षकारादेश होता है)। ...तश्च्यो : - VII. ii. 55 देखें-जनश्च्यो : VII. ii. 55 वात... -v.ii. 113 देखें-वातच्को : V. iii. 113 वातच्यो : - V. iii. 113 व्रात = शस्त्रोपजीवी लोगों का संघ, तद्वाची प्रातिप- दिकों तथा फञ्-प्रत्ययान्तो से (स्वार्थ में ज्य प्रत्यय होता है,स्त्रीलिङ्ग को छोड़कर)। वातेन -V. 1. 21 तृतीयासमर्थ वात प्रातिपदिक से (जीता है' अर्थ में खञ् प्रत्यय होता है। व्रीहि... -HI. I. 148 देखें-व्रीहिकालयोः III. 1. 148 व्रीहि...-v.ii.2 देखें-व्रीहिशाल्यो: V. ii. 2 व्रीहि...-VI. ii. 38 देखें-बीहपराहण. VI. ii. 38 व्रीहिशाल्यो: - V.ii. 2 (षष्ठीसमर्थ धान्यविशेषवाची) व्रीहि तथा शालि प्रातिपदिकों से (उत्पत्तिस्थान' अभिधेय हो तो ठक् प्रत्यय होता है, यदि वह उत्पत्तिस्थान क्षेत्र हो तो)। व्रीहे: - IV. iii. 145 (षष्ठीसमर्थ) व्रीहि प्रातिपदिक से (पुरोडाशरूप विकार अभिधेय होने पर मयट प्रत्यय होता है)। व्रीहापराहणगृष्टीष्वासजाबालभारभारतहैलिहिलरौरवप्रवधु-VI. II. 38 व्रीहि, अपराण, गष्टि, इष्वास, जाबाल, भार, भारत, हेलिहिल, रौरव, प्रवृद्ध शब्दों के उत्तरपद रहते (पूर्वपद महान् शब्द को प्रकृतिस्वर होता है)। ब्रह्मादिभ्यः - V.ii. 116 ब्रीह्यादि प्रातिपदिकों से (भी 'मत्वर्थ' में इनि तथा ठन् . प्रत्यय होते है, विकल्प से)। ...क्ली... - VII. ii. 36 देखें - अर्तिहीक्ली० VII. iii. 36 ...श... -Iiii.8 देखें- लशकु I. ill.8 श-III. ii. 100 (कृञ् धातु से स्त्रीलिङ्ग में कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में)श प्रत्यय होता है (तथा चकार से क्यप भी होता श् - प्रत्याहारसूत्र x भगवान् पाणिनि द्वारा अपने दशम प्रत्याहारसूत्र में इत्सद्धार्थ पठित वर्ण। श-VI. iv. 19 देखें-शूठ VI. iv. 19 श्... - VIII. iv. 39 देखें - श्चुना VIII. iv. 39 श्... - VIII. iv. 39 देखें - श्चु: VIII. iv. 39 श-प्रत्याहारसूत्र XIII आचार्य पाणिनि द्वारा अपने तेरहवें प्रत्याहारसूत्र में पठित प्रथम वर्ण। ... पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का चालीसवां वर्ण। ...श.. - IV. ii.79 देखें-दुग्छण्कठO IV. 1.79 श.. -V.ii. 100 देखें-शनेलच V. 1. 100 श... -VIII. iv.28 देखें - शयग्लिच VIII. iv. 28 श -III. 1.77 (तुदादि धातुओं से कर्तृवाची सार्वधातुक परे रहने पर) श प्रत्यय होता है।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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