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________________ व्याख्याने 496 व्याख्याने -IV.ii.66 व्युष्टादिभ्यः -V.i. 96 (षष्ठीसमर्थ व्याख्यान किये जाने योग्य जो प्रातिपदिक (सप्तमीसमर्थ) व्युष्टादि प्रातिपदिकों से (दिया जाता है' हैं,उनसे) व्याख्यान अभिधेय होने पर (यथाविहित प्रत्यय और 'कार्य' अर्थों में अण् प्रत्यय होता है)। होता है तथा सप्तमीसमर्थ व्याख्यातव्यनामवाची शब्दों ..व्यद्धि:.-II.1.7 से भवार्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है)। देखें-विभक्तिस्मीपसमृद्धिo II.i.7 व्याघ्रादिभिः -II.1.55 ...व्येबाम् - VI.i. 19 (साधारणधर्मवाची शब्द के प्रयोग न होने पर उपमेय- देखें - स्वपिस्यमि० VI.i. 19 वाची सुबन्त का समानाधिकरण) व्याघ्र आदि (सुबन्त) व्योः - VI.1.64 शब्दों के साथ (विकल्प से समास होता है और वह ___ वकार और यकार का (वल् परे रहते लोप हो जाता तत्पुरुष समास होता है)। व्याङ्परिभ्यः - 1. ii. 83 व्योः - VIII. iii. 18 वि,आएवं परि उपसर्ग से उत्तर (रम् धातु से परस्मैपद होता है)। (भो, भगो,तथा अवर्ण पूर्ववाले पदान्त के) वकार तथा . . यकार को (लघु प्रयलतर आदेश होता है अश् परे रहते, व्याप्नोति-v.ii.7 शोकटायन आचार्य के मत में)। (सर्व शब्द आदि में है जिनके,ऐसे द्वितीयासमर्थ पथिन्, अङ्ग, कर्म,पत्र तथा पात्र प्रातिपदिकों से) 'व्याप्त होता व्रज... - III. iii. 94 देखें-वजयजोः III. iii. 94 है' अर्थ में (ख प्रत्यय होता है)। ...व्रज... - III. iii. 119 व्याप्यमान...-III. iv.56 देखें - गोचरसञ्चर III. iii. 119 देखें-व्याप्यमानासेव्यमा० III. iv.56 ....वज... - VII. ii.3 व्याश्रये-V.iv. 48 देखें-क्दव्रज VII. ii.3 'भिन्न भिन्न पक्षों का आश्रयण' गम्यमान हो तो (षष्ठीविभक्त्यन्त प्रातिपदिक से विकल्प से तसि प्रत्यय होता व्रजयजो: -III. iii. 98 व्रज तथा यज् धातुओं से (स्त्रीलिङ्ग भाव में क्यप् प्रत्यय व्याहरति-IV. iii. 51 होता है और वह उदात्त होता है)। (सप्तमीसमर्थ कालवाची प्रातिपदिकों से 'मृग) शब्द ...व्रज्योः - VII. iii. 60 करता है' अर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होता है)। देखें - अजिव्रज्यो: VII. iii. 60 व्याहतार्थायाम् -V.iv. 35 ...व्रत-III. I. 21 "प्रकाशित वाणी' अर्थ में (वर्तमान वाच् प्रातिपदिक से देखें - मुण्डमिश्र III.i. 21 स्वार्थ में ठक् प्रत्यय होता है)। . व्रते-III. ii. 40 ...व्युत्क्रमण.. - VIII. it 15 व्रत गम्यमान होने पर (वाक कर्म उपपद रहते यम् धातु देखें- रहस्यमर्यादा० VIII. I. 15 से खच प्रत्यय होता है)। व्युपधात् -I.ii. 26 व्रते -III. ii. 80 (रलन्त एवं हलादि) धातुओं से परे (सेट् सन् और सेट व्रत = शास्त्र से नियम गम्यमान हो तो (सुबन्त उपपद क्त्वा प्रत्यय विकल्प से कित् नहीं होते हैं)। रहते धातु से णिनि प्रत्यय होता है)। व्युपयोः -III. 11.39 व्रते-IV. 1. 14 वि तथा उप पूर्वक (शी धातु से पर्याय गम्यमान होने (सप्तमीसमर्थ स्थण्डिल प्रातिपदिक से सोनेवाला पर कर्तभिन्न कारक संज्ञाविषय तथा भाव में घञ् प्रत्यय अभिधेय हो तो) व्रत गम्यमान होने पर (यथाविहित प्रत्यय होता है)। होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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