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________________ ...वैकृत... 494 व्यक्तिक्चने ...वैकृत... - VI.i. 134 ...वो: - VII.i.1 देखें - प्रतियत्नवैकृत० VI. 1. 134 देखें-युवो: VII.i.1 वैयाकरणाख्यायाम् - VI. iii.7 ...वो: - VIII. ii. 65 जिस सज्जा से वैयाकरण ही व्यवहार करते हैं उसको देखें - म्यो: VIL 65 कहने में (पर शब्द तथा चकार से आत्मन् शब्द से उत्तर ...वो: -VIII. ii.76 चतुर्थी विभक्ति का अलुक होता है)। देखें-वो: VIII. 1.76 ...वैयाघ्रात् -IV.ii. 12 वौ-III. ii. 143 देखें-द्वैपवैयाघात् IV. ii. 12 वि पूर्वक (कष, लस, कत्थ, सम्भ् -इन धातुओं से वैयात्ये - VII. ii. 19 तच्छीलादि कर्ता हो तो वर्तमान काल में घिनुण प्रत्यय (जिधृषा प्रागल्भ्ये' तथा 'शसुओं हिंसायाम्' धातु से होता है)। निष्ठापरे रहते) अविनीतता गम्यमान होने पर (इट् आगम के नहीं होता)। विपूर्वक (क्षु तथा श्रु धातुओं से कर्तृभिन्न कास्क संज्ञा , ...वैर... -III. I. 17 तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। देखें- शब्दवैरकलहा0 III. I. 17 ...वैर... - III. ii. 23 वौ-III. iii. 33 देखें- शब्दश्लोक III. ii. 23 वि पूर्वक (स्तृञ् धातु से अशब्दविषयक विस्तार कहना वैर... - IV. iii. 124 हो तो कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय देखें - वैरमैथुनिकयो: IV. iii. 124 होता है)। वैरमैथुनिकयो: - IV. iii. 124 ...वौ-VIII. ii. 108 (षष्ठीसमर्थ द्वन्द्वसंज्ञक प्रातिपदिक से 'इदम' अर्थ में) देखें- यो VIII. ii. 108 वैर, मैथुनिक अभिधेय हो (तो वन प्रत्यय होता है)। ...वौषट्... - VIII. ii.91 देखें- ब्रूहिप्रेष्य वैवाव-VIII.1.64 VIII. ii. 91 - वै तथा वाव से युक्त (प्रथम तिडन्त को भी विकल्प व्यः - VI.i. 42 . से वेदविषय में अनुदात्त नहीं होता)। 'व्येञ् धातु को (भी ल्यप् परे रहते सम्प्रसारण नहीं होता ...वैशम्पायनान्तेवासिभ्यः - IV. iii. 104 देखें - कलापिवैशम्पा० IV. iii. 104 व्यः - VI. I. 45 ...वैश्ययो: -III. . 103 (उपदेश में एजन्त) व्येञ् धातु को लिट् लकार के परे देखें -स्वामिवैश्ययोः III. I. 103 रहते आकारादेश नहीं होता है)। वैश्वदेवे - VI. ii. 39 व्यक्तवाचाम् -I. iii. 48 वैश्वदेव शब्द उत्तरपद रहते (पूर्वपदस्थित क्षुल्लक तथा स्पष्टवाणी वालों के (सहोच्चारण अर्थ में वर्तमान वद् महान् शब्द को प्रकृतिस्वर होता है)। धातु से आत्मनेपद हो जाता है)। क्षुल्लक = नीच व्यक्ति ... -I. 1.51 ...वो: -VI. iv. 19 देखें- व्यक्तिवचने I. ii. 51 देखें-च्छ्वो : VI. iv. 19 व्यक्तिवचने -I. ii. 51 ...वो: -VI. iv.77 (प्रत्यय के लुप हो जाने पर उस प्रत्यय के अर्थ में) देखें - वो: VI. iv.77 व्यक्ति = लिङ्ग तथा वचन = संख्या (प्रकृत्यर्थ में ...वो: - VI. iv. 107 समान हों)। देखें-म्वोः VI. iv. 107
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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