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________________ वृद्ध... ... 491 वृद्ध्यायलाभशुल्कोपदाः वृद्ध... -IV. iii. 141 देखें-वृद्धशरादिभ्यः IV. iii. 141 ...वृद्ध... - VI. iv. 157 देखें-प्रियस्थिर० VI. iv. 157 वृद्ध -I. ii. 65 वृद्ध = गोत्रप्रत्ययान्त शब्द (युवा प्रत्ययान्त शब्द के साथ शेष रह जाता है, यदि वृद्ध-युवप्रत्ययनिमित्तक ही भेद हो तो)। वृद्धम् -1.1.72 (जिस समुदाय के अचों) में आदि अच् वृद्धिसंज्ञक हो, उस समुदाय की) वृद्ध संज्ञा होती है। वृद्धशरादिभ्यः - IV. iii. 141 (भक्ष्य और आच्छादनवर्जित विकार और अवयव अर्थों में षष्ठीसमर्थ) वृद्धसंज्ञक तथा शरादि प्रातिपदिकों से (लौकिक प्रयोगविषय में नित्य ही मयट प्रत्यय होता है)। वृद्धस्य-v.ii. 62 . वृद्ध शब्द के स्थान में (भी अजादि अर्थात् इष्ठन्, ईयसुन् प्रत्यय परे रहते ज्य आदेश होता है)। वृद्धात - IV.i. 148 (सौवीर गोत्र में वर्तमान) वृद्धसंज्ञक प्रातिपदिकों से (अपत्य अर्थ में बहल करके तक प्रत्यय होता है कसन गम्यमान होने पर)। . वृद्धात् - IV.i. 157 (गोत्र से भिन्न जो) वृद्धसंज्ञक प्रातिपदिक, उससे (उदीच्य आचार्यों के मत में फि प्रत्यय होता है)। वृद्धात् - IV.ii. 113 वृद्धसंज्ञक प्रातिपदिक से (शैषिक छ प्रत्यय होता है)। वृद्धात् - IV. ii. 119 (उवर्णान्त) वृद्धसंज्ञक (प्राग्देशवाची) प्रातिपदिकों से (शैषिक ठञ् प्रत्यय होता है)। वृद्धात् -IV. ii. 140 - (अक,इक अन्त वाले तथा खकार उपधावाले जो देशवाची) वृद्धसंज्ञक प्रातिपदिक, उनसे (शैषिक छ प्रत्यय होता है)। वृद्धि... -v.i.46 देखें-वृद्ध्यायलाभ V.i. 46 वृद्धि -I.i.1 (आ, ऐ, औ की) वृद्धि संज्ञा होती है। वृद्धि -I.i.72 (जिस समुदाय के अचों में आदि अच) वृद्धिसंज्ञक = आ,ऐ, औ में से कोई हो, (उस समुदाय की वृद्ध संज्ञा होती है)। वृद्धि -VI.i. 85 (अवर्ण से उत्तर जो एच तथा एच परे रहते जो अवर्ण, इन दोनों पूर्व-पर के स्थान में) वृद्धि (एकादेश) होता है। वृद्धि - VII. ii.1 (परस्मैपदपरक सिच के परे रहते इगन्त अङग को) वद्धि होती है। वृद्धि -VII. iii. 89 (उकारान्त अङ्ग को लुक हो जाने पर हलादि पित् सार्वधातुक परे रहते) वृद्धि होती है। वृद्धि - VII. iii. 114 (मृज् अङ्ग के इक् के स्थान में) वृद्धि होती है। वृद्धिनिमित्तस्य-VI. iii. 38 वृद्धि का कारण है जिस तद्धित में, ऐसा तद्धित यदि रक्त तथा विकार अर्थ में विहित न हो तो तदन्त स्त्री शब्द को भी पुंवद्भाव नहीं होता। ..वृद्धी -I.i.3 देखें - गुणवृद्धी I.1.3 वृद्धत्कोसलाजादात् - Vi. 169 (क्षत्रियाभिधायी, जनपदवाची), वृद्धसंज्ञक, इकारान्त तथा कोसल और अजाद प्रातिपदिकों से (अपत्य अर्थ में ज्यङ् प्रत्यय होता है)। ...वृद्धोक्ष... - V. iv.77 देखें - अचतुर० V. iv.77 वृद्धौ... - VI. iii. 27 (देवताद्वन्द्व में) वृद्धि किया गया शब्द उत्तरपद में हो. तो (अग्नि शब्द को ईकारादेश होता है)। वृद्ध्यायलाभशुल्कोपदा: -v.i.46 (प्रथमासमर्थ प्रातिपदिकों से सप्तम्यर्थ में यथाविहित प्रत्यय होते हैं) यदि 'वृद्धि' = ब्याज के रूप में दिया
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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