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________________ 490 ...... - II. iv.80 ....वृङ-HI. ii. 155 देखें - घसरणश II. iv. 80 देखें-जल्पभिक्ष० III. ii. 155 ....... -III. 1. 109 ...वृच्-II. iv. 80 देखें- एतिस्तु III. 1. 109 देखें - घसहरणशo II. iv. 80 व... -III. ii. 46 ...वृज्योः - IV.ii. 130 देखें-भृतवृ० III. ii. 46 देखें- मद्रवृज्यो: IV. ii. 130 वृ-III. iii. 48 वृणोते: -III. iii. 54 (नि पूर्वक) वृ धातु से (धान्यविशेष को कहना हो तो (आच्छादन अर्थ में प्र पूर्वक) वृञ् धातु से (कर्तृभिन्न कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। ___ कारक संज्ञा तथा भाव में विकल्प से घञ् प्रत्यय होता है, ...... -III. iii. 58 पक्ष में अप् होता है)। देखें- ग्रहवृद० III. iii. 58 ..वृति... - VI. iii. 115 ....... - VII. ii. 13 देखें- नहिवृति० VI. iii. 115 देखें- कृसभृ० VII. ii. 13 वृ... - VII. ii. 38 ...वृतु... -III. ii. 136 देखें-वृत: VII.ii. 38 देखें - अलंकृञ् III. 1. 136 . वृक... - V. iv. 41 वृत्तम् - IV. iv. 63 देखें-वृकज्येष्ठाभ्याम् V. iv.41 (अध्ययन में) वर्तमान (कर्म समानाधिकरणवाची प्रथवृकज्येष्ठाभ्याम् - V.iv.41 मासमर्थ प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में ठक प्रत्यय होता है)। (प्रशंसाविशिष्ट' अर्थ में वर्तमान) वक तथा ज्येष्ठ वृत्तम् - VII. ii. 26 प्रातिपदिकों से (यथासंख्य करके तिल तथा तातिल प्रत्यय भी होते हैं, वेदविषय में)। (अध्ययन को कहने में निष्ठा के विषय में) ण्यन्त वृति धातु का वृत्त शब्द निपातन किया जाता है। वकात् -V. iii. 115 (अस्त्रों से जीविका कमाने वाले पुरुषों के समूहवाची, वृत्ति... -I. ill. 38 देखें - वत्तिसर्गतायनेषु I. iii. 38 वृक प्रातिपदिक से (स्वार्थ में टेण्यण् प्रत्यय होता है)। वृत्ति... - IV. 1. 42 वृक्ष.. -II. iv. 12 देखें - वृत्यमत्रावपना IV. 1. 42 देखें-वृक्षमृगतृणधान्य II. iv. 12 वृत्तिसर्गतायनेषु -I. iii. 38 वृक्ष..- VIII. Iii. 93 वृत्ति = अनुरोध = विना रुकावट के चलना.सर्ग= देखें-वृक्षासनयो: VIII. iii. 93 उत्साह, तायन = विस्तार - इन अर्थों में (वर्तमान क्रम वृक्षमृगतृणधान्यव्यञ्जनपशुशकुन्यश्ववडवपूर्वापराघरोत्त- धात से आत्मनेपद होता है)। राणाम् -II. iv. 12 कृत्यमत्रावपनाकृत्रिमात्राणास्थौल्यवर्णानाच्छादनायोवि- . वृक्ष, मृग, तृण, धान्य, व्यञ्जन, पश.शकुनि और वडव. कारमैथुनेच्छाकेशवेशेषु - IV. 1. 42 पूर्वापर, अधरोत्तरवाची शब्दों का (द्वन्द्व विकल्प से एक (जानपद इत्यादि 11 प्रातिपदिकों से यथासंख्य करके) वभाव को प्राप्त होता है)। वृत्ति, अमत्रादि ग्यारह अर्थों में (स्त्रीलिङ्ग में ङीष प्रत्यय वृक्षासनयो: -VIII. iii.93 होता है)। वृक्ष तथा आसन वाच्य हो तो (विष्टर शब्द में षत्व ....कत्रेषु-III. 1.87 निपातन है)। देखें-ब्रह्मभ्रूण III. II. 87 ...वृक्षेभ्यः -IVill. 132 वृद्ध...-IV.i. 169 देखें-प्राण्योपधिवक्षेभ्यः IV. 1. 132 देखें - वृद्धत्कोसला• IV. 1. 169 .
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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