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________________ विशेषणानाम् विशेषणानाम् 1.11.52 (प्रत्यय के लुप् होने पर उस लुबर्थ के) विशेषणों में (भी लिङ्ग और संख्या प्रकृत्यर्थ के समान हो जाते हैं, जाति के प्रयोग से पूर्व ही ) । ... विशेषणे - II. ii. 35 देखें - सप्तमीविशेषणे 11. 11. 35 विशेषवचने - VIII. 1. 74 विशेषवाची (समानाधिकरण आमन्त्रित) परे रहते (सामान्यवचन आमन्त्रित को विकल्प से अविद्यमानवत् होता है। विशेष्येण 11.1.56 (समानाधिकरण) विशेष्यवाचक (सुबन्त) शब्द के साथ (विशेषणवाची सुबन्त का बहुल करके तत्पुरुष समास होता है। ...fafs... -III. ii. 157 देखें - जिदृक्षि० III. ii. 157 ... विश्व... - VIII. 111 देखें - प्रनपूर्वo Viii. 111 विश्वजन... - VI. 8 देखें आत्मविश्वजन V. 1. 8 ...विश्वदेव्यस्य - VI. iii. 130 देखें सोमाश्वेन्द्रियo VI. III. 130 - विश्वम् - VI.. ii. 107 (बहुव्रीहि समास में सचाविषय में पूर्वपद) विश्व शब्द को (अन्तोदात्त होता है)। - विश्वस्य - VI. iii. 127 (वसु तथा राट् उत्तरपद रहते) विश्व शब्द को (दीर्घ हो जाता है)। विष... ....... - IV. Iv. 91 देखें नौवयोधर्मo IV. Iv. 91 - विषय: - IV. ii. 51 (षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिक से) विषय अर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होता है, यदि वह विषय देश हो । .. विषु - III. 1. 63 देखें समुप० 111. 111. 63 - 487 . विषु - III. iii. 72 देखें - न्यभ्युपविषु III. iii, 72 विष्किरः - VI. 1. 145 विष्किर इस में ककार से पूर्व सुद (विकल्प से) निपातन किया जाता है, (पक्षी को कहा जा रहा हो तो) । विष्टरः - VIII. iii. 93 (वृक्ष तथा आसन वाच्य हो तो) विष्टर शब्द में (षत्व निपातन है)। विष्वक्... - VI. III. 91 देखें विष्वग्देवयो: VI. iii. 91 विष्वग्देवयोः - VI. iii. 91 विष्वग् एवं देव शब्दों के (तथा सर्वनाम शब्दों के टिभाग को अद्रि आदेश होता है, वप्रत्ययान्त अशु धातु के परे रहते ) । ... विसर्जनीय... - VIII. III. 58 देखें विसर्जनीय VIII. I. 58 विसर्जनीयः - VIII. III. 15 (रेफान्त पद को खर् परे रहते तथा अवसान में) विसर्जनीय आदेश होता है, (संहिता में ) । विसर्जनीयः VIII. iii. 35 (शर्पारक खर के परे रहते विसर्जनीय को) विसर्जनीय आदेश होता है। विसर्जनीयस्य VIII. iii. 34 (खर् परे रहते) विसर्जनीय को (सकार आदेश होता है)। विसारिण: विसारिन् प्रातिपदिक से (स्वार्थ में अण् प्रत्यय होता है, मछली अभिधेय हो तो) । - - - - विंशतिकात् V. iv. 16 - विस्तात् - V. 1. 31 (द्वि तथा त्रि शब्द पूर्ववाले) विस्तशब्दान्त द्विगुसक प्रातिपदिक से (भी 'तदर्हति' - पर्यन्त कथित अर्थों में उत्पन्न प्रत्यय का विकल्प से लंक होता है)। विस्पष्टादीनि - VI. ii. 24 गुण को कहने वाले शब्दों के उत्तरपद रहते) विस्पष्टादि पूर्वपद को (तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर होता है)। faryifa... - V. i. 24 देखें विंशतित्रिंशद्भ्याम् V. 1. 24 ...विंशति... - V. 1. 58 देखें पंक्तिविंशतिo V. 1. 58 ....विंशतिक... - V. 1. 27 देखें - शतमानविंशतिक० V. 1. 27 विंशतिकात् - V. 1. 32 (अर्ध्यर्द्ध शब्द पूर्ववाले तथा द्विगुसञ्ज्ञक विंशतिकशब्दान्त प्रातिपदिक से (तदर्हति पर्यन्त कथित अर्थों में खप्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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