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________________ विप्रश्न 480 विभाषा विप्रश्न: -I.iv.39 (राध और ईक्ष धात् के प्रयोग में जिसके विषय में विविध प्रश्न हों.वह (कारक सम्प्रदान-संज्ञक होता है)। विप्रसम्भ्यः -III. ii. 180 (संज्ञा गम्यमान न हो, तो) वि,प्र तथा सम्पूर्वक (भूधातु से डु प्रत्यय होता है, वर्तमानकाल में)। विभक्ति ... -II.i.6 देखें - विभक्तिसमीपसमृद्धि II. 1.6 विभक्तिः -I. iv. 103 (तिडों व सुपों के तीन-तीन की) विभक्ति संज्ञा (भी) हो जाती है। विभक्ति -V.iti.1 (यहाँ से आगे 'दिक्शब्देभ्यः सप्तमीपञ्चमी.' v. iii. 27 सत्र से पहले पहले जितने प्रत्यय कहे हैं, उन सबकी) विभक्ति सज्जा होती है। विभक्तिः -VI.i. 162 (सप्तमीबहुवचन सुप के परे रहते एक अच् वाले शब्द से उत्तर तृतीया विभक्ति से लेकर आगे की) विभक्तियों को (उदात्त होता है)। ...विभक्तिषु-VIII. iv. 11. देखें-प्रातिपदिकान्तनुम्विभक्तिषु VIII. iv. 11 विभक्ते -II. iii. 42 जिस (निर्धारण) में विभाग किया जाये, उसमें (पञ्चमी विभक्ति हो जाती है)। विभक्तौ -. iii.8 विभक्ति में (वर्तमान अन्तिम तवर्ग,सकार और मकार की इत्सजा नहीं होती)। विभक्तौ - VII. i. 73. (इक अन्त वाले नपुंसक अङ्ग को अजादि) विभक्ति परे रहते (नुम् आगम होता है)। विभक्तौ - VII. ii. A (अष्टन् अङ्ग को) विभक्ति परे रहते (आकारादेश हो जाता है)। ...विभज्योपपदे -V. iii. 57 देखें - द्विवचनविभज्यो० V. iii. 57 ...विभा... - III. ii. 21 देखें-दिवाविभा० III. 1.21 विभाषा-1.1.26 (दिशावाची बहुव्रीहि समास में सर्वादियों की सर्वनाम संज्ञा) विकल्प से होती है)। विभाषा -I.i. 31 (द्वन्द्व समास में सर्वादियों की सर्वनामसंज्ञा जस्सम्बन्धी कार्य में) विकल्प से (नहीं होती)। विभाषा -1.1.43 (निषेध और विकल्प की) विभाषा संज्ञा (होती है)। विभाषा -I. ii.3 .(ऊर्गुज् आच्छादने' धातु से परे इडादि प्रत्यय) विकल्प' करके (ङित्वत् होता है)। विभाषा -1.1.16 - (उपयमन अर्थ में वर्तमान यम् धातु से परे आत्मनेपद विषय में सिच् प्रत्यय) विकल्प करके (कित्वत् होता है)। विभाषा-1. ii. 26 . (वेदविषय में तीनों स्वरों को) विकल्प से (एकश्रुति हो जाती है)। विभाषा -1. iii. 50 (परस्परविरुद्ध कथन रूप व्यक्तवाणी वालों के सह उच्चारण अर्थ में वर्तमान वद् धातु से) विकल्प से (आत्मनेपद होता है)। विभाषा-I.ii.77 (समीपोच्चरित पद के द्वारा कर्चभिप्राय क्रियाफल के प्रतीत होने पर विकल्प करके (धातु से आत्मनेपद होता विभाषा -I. iii. 85 (अकर्मक उपपूर्वक रम धात से) विकल्प करके (परस्मैपद होता है)। विभाषा -I.iv.69 (छिपने अर्थ में तिरः शब्द की कृञ् धातु के योग में) विकल्प से (गति और निपात संज्ञा होती है)। विभाषा-I. iv.97 (अधि शब्द की कृज के परे) विकल्प से (कर्मप्रवचनीय और निपात संज्ञा होती है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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