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________________ विधूनने 479 विप्रलापे विधूनने - VII. iii. 38 ...विन्द.. - III. 1. 138 'कंपाना' अर्थ में (वर्तमान वा धातु को णि परे रहते तोमरते देखें-लिम्पविन्द III. I. 138 जुक् आगम होता है)। . विन्द.. - III. iv. 30 देखें-विन्दजीवोः III. iv. 30 विध्यति - IV. iv. 83 विन्दजीवोः -III. iv. 30 (द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिक से) 'बींधता है' अर्थ में (यदि । (यावत् शब्द उपपद रहते) विदल (लाभे) तथा जीव धनुष करण न हो तो यत् प्रत्यय होता है)। (प्राणधारणे) धातुओं से (णमुल प्रत्यय होता है)। विध्वरुषोः - III. ii. 35 विन्दुः -in. ii. 1691 विधु और अरुस् (कर्म) उपपद हों तो (तुद धातु से खश् । विद् धातु से तच्छीलादि अर्थों में वर्तमान काल में उ प्रत्यय होता है)। प्रत्यय तथा विद् को नुम् का आगम करके विन्दु शब्द विन... -V. 1.65 का निपातन किया जाता है। देखें-विन्मतो: V.ii.65 विन्मतो: - V.ii.65 विनश्याम् - v.ii. 27 विन और मतुप प्रत्ययों का (लक होता है, अजादि वि तथा नज प्रातिपदिकों से (प्रथम भाव' अर्थ में अर्थात इष्ठन.ईयसुन प्रत्यय परे रहते)। यथासङ्ख्य करके ना तथा नञ् प्रत्यय होते हैं)। विपराभ्याम् -I. iii. 19 विनयादिभ्यः -V.iv.34 वि एवं परा उपसर्ग से उत्तर (जि' धातु से आत्मनेपद विनयादि प्रातिपदिकों से (स्वार्थ में ढक् प्रत्यय होता होता है। है)। विपाश:-IVil.73 ...विना...-II. ill. 32 विपाट् नदी के किनारे पर जो कुएँ है, उनके अभिधेय देखें-पृथग्विनानानाभिः II. iii. 32 होने पर भी अब प्रत्यय होता है)। ....विनाश.. -III. ii. 146 विपूय.. -III. 1. 117 . देखें -निन्दहिस० III. ii. 146 देखें-विपूयविनीय III. I. 117 विनि... -v.ii. 102 देखें-विनीनी v.ii. 102 . विपूयविनीयजित्या: - III. 1. 117 विपय विनीय और जित्य शब्दों का निपातन किया विनिः-V. 1. 121 जाता है; (यथासंख्यं करके मुञ्ज = मूंज, कल्क = (अस् अन्तवाले एवं माया,मेधा तथा स्रज् प्रातिपदिकों ओषधि की पीठी और हलि = बड़ा हल अर्थों में)। से 'मत्वर्थ में) विनि प्रत्यय होता है। विप्रतिषिद्धम् - II. iv. 13 विनीनी-v.ii. 102 र परस्पर विरुद्धार्थक (अद्रव्यवाची) शब्दों का (द्वन्द्व भी (तपस तथा सहस्त्र प्रातिपदिकों से 'मत्वर्थ' में विकल्प से एकवद् होता है)। यथासङ्ख्य करके) विनि तथा इनि प्रत्यय होते है)। विप्रतिषेधे-I.iv.2 विनियोगे - VIII. I. 61 " (अह' इससे युक्त प्रथम तिङन्त को) विनियोग = . विप्रतिषेध = तुल्यबलविरोध होने पर (क्रम में बाद अनेक प्रयोजन के लिये प्रैष = प्रेरणा (तथा चकार से वाला सूत्र कार्य करता है)। क्षिया = धर्मोल्लंघन) गम्यमान होने पर अनुदात्त नहीं विप्रलापे -I. iii. 50 होता। परस्पर-विरुद्ध कथन रूप (स्पष्टवाणी वालों के सह ...विनीय.. -III.i. 117. उच्चारण) अर्थ में (वर्तमान वद् धातु से विकल्प से आत्म. देखें-विपूयविनीय III. 1. 117 नेपद होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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