SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 479
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वत्सभरद्वाजात्रिषु वत्सभरद्वाजात्रिषु – IV. 1. 117 ( विकर्ण, शुङ्ग, छगल शब्दों से यथासङ्ख्य करके) वत्स, भरद्वाज और अत्रि अपत्यविशेष को कहना हो (तो अण् प्रत्यय होता है)। वत्सरान्तात् - V. 1. 90 वत्सर शब्दान्त ( द्वितीयासमर्थ) प्रातिपदिकों से (सत्कारपूर्वक व्यापार', 'खरीदा हुआ', 'हो चुका' तथा 'होने वाला' अर्थों में छ प्रत्यय होता है. वेदविषय में)। वत्सशाल... - IV. iii. 36 देखें - वत्सशालाभिजिo IV. iii. 36 वत्सशालाभिजिदश्वयुक्शतभिषज IV. ill. 36 वत्सशाल, अभिजित् अश्वयुज्, शतभिषज् प्रातिपदिकों से (जातार्थ में उत्पन्न प्रत्यय का विकल्प से लुक् होता है) । वत्सांसाभ्याम् - VII. 98 वत्स और अंस प्रातिपदिकों से (मत्वर्थ' में यथासङ्ख्य करके काम तथा बल अर्थ गम्यमान हो तो लच् प्रत्यय होता है)। अंस = भाग, कन्धा । ... वत्सेभ्यः - VI. ii. 168 देखें - अव्ययदिक्शब्द० VI. II. 168 वत्सोक्षाश्वर्षभेभ्यः - V. iii. 90 वत्स, उक्षन्, अश्व, ऋषभ इन प्रातिपदिकों से (अल्पता' द्योतित हो रही हो तो ष्टरच् प्रत्यय होता है)। ऋषभ सांह, श्रेष्ठ, संगीत का स्वर, सूअर या मगरमच्छ की पूंछ । .. वद... - I. ii. 7 देखें 461 मृडमृदगुधकुषक्लिशवदवसः III. 7 .. वद... - I. iii. 89 देखें पादभ्याइयमायस० 1 lii. 89 ... वद... - III. ii. 145 देखें - प० III. 145 - वद... VII. ii. 3 देखें - वदंब्रज० VII. I. 3 वदः - I. iii. 47 ( भासन, उपसम्भाषा, ज्ञान, यल, विमति तथा उपमन्त्रण अर्थों में) वद धातु से (आत्मनेपद होता है)। भासन = चमकना, छुतिमान । उपसम्भाषा = - वार्त्तालाप, मैत्रीपूर्ण अनुरोध । । विमति = मूर्ख, असहमति, अरुचि । उपमन्त्रण = सम्बोधित करना, उकसाना । वदः - I. iii. 73 (अप उपसर्ग से उत्तर) वद् धातु से (आत्मनेपद होता है, क्रियाफल के कर्ता को मिलने पर - III. i. 106 वदः वद् धातु से (उपसर्गरहित होने पर सुबन्त उपपद रहते क्यप् प्रत्यय होता है; चकार से यत् प्रत्यय भी होता है)। - - वदः -III. ii. 38 वद् धातु से (प्रिय और वश कर्म उपपद रहते 'खच्' प्रत्यय होता है)। ... वदयोः - VI. III. 101 देखें- रचक्दयोः VI. III. 101 वदव्रजहलन्तस्य - VII. ii. 3 वद, व्रज तथा हलन्त अगों के (अच् के स्थान में वृद्धि होती है, परस्मैपदपरक सिच् के परे रहते)। ... मंदि... - III. iv. 16 देखें स्वेण्कृञ्o III. iv. 16 .... वदेषु - I. Iv. 68 देखें - गत्यर्थवदेषु I. Iv. 68 वध - II. iv. 42 (हन् धातु को) वध आदेश होता है, (आर्धधातुक लिङ् परे रहते) । वध: - III. iii. 76 (अनुपसर्ग हन् धातु से भाव में अप् प्रत्यय होता है तथा प्रत्यय के साथ ही हन् को) वध आदेश भी हो जाता है । वन... - IV. iv. 91 - तार्यतुल्यo IV. iv. 91 - ..वध्य... देखें ...वध्योः VII. iii. 35 देखें - जनिवध्योः VII. iii. 35 III. 1. 27 - वन... देखें - वनसन० III. 1. 27 --
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy