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________________ लुङ्... लुङ्... II. iv. 37 देखें सुनोः II. Iv. 37 - - लुङ्.. - II. iv. 50 देखें सुलझे 11. Iv. 50 - लुङ् - III. ii. 110 · (सामान्य भूतकाल में वर्तमान धातु से ) तुङ् प्रत्यय होता है। लुङ् - III. ii. 122 (स्मशब्दरहित पुरा शब्द उपपद हो तो अनद्यतन भूतकाल में धातु से लुङ् प्रत्यय (विकल्प से) होता है, (चकार से लट् भी होता है)। लुङ् - III. iii. 175 (माइ शब्द उपपद हो तो धातु से) लुङ, लिङ, लोट्) प्रत्यय भी होते है। लुङ् ... - III. Iv. 7 देखें - लुलिटः III. 1. 7 453 लुङ् ... - VI. iv. 71 देखें - लुडल VI. I. 71 लुड् .. - VI. iv. 87 देखें- लुलिटो VI. iv. 87 ..लुङ् .. VIII. iii. 78 देखें- पीलुलिटाम् VIII. III. 78 लुङि - Iiii 91 (युतादि धातुओं से) लुङ् लकार में (विकल्प से परस्मैपद होता है)। लुङि – II. Iv. 43 (आर्धधातुक) लुङ् परे रहते भी हन् को वध आदेश होता है)। लुङि - II. iv. 45 (आर्धधातुक) लुङ् परे रहते (इण् को गा आदेश होता है) । लुङि - HI. 1. 43 लुङ् परे रहते (धातु से च्लि प्रत्यय होता है)। लुक्लालिट - III. iv. 6 (वेदविषय में धात्वर्थसम्बन्ध होने पर विकल्प से) लुङ, लङ् तथा लिट् प्रत्यय होते हैं। लाल - VI. I. 71 लुङ, लक्ष् तथा लद के परे रहते (अङ्ग को अट् का आगम होता है और वह अट् उदात्त भी होता है)। लुङ्लिङोः - 1. iii. 61 लुङ, लिङ् लकार में (तथा शित् विषय में जो 'मृङ् प्राणत्यागे' धातु उससे आत्मनेपद होता है)। लुलिटो - VI. Iv. 88 (भू अङ्ग को वुक् आगम होता है) लुङ् तथा लिट् (अजादि) प्रत्यय के परे रहते । सुड्डो - IIiv. 50 लुछ और लुङ् परे रहते (इए को गाइ आदेश विकल्प से होता है)। लुप् लुड्सनो - II. iv. 37. सुद्ध और सन् (आर्धधातुक) परे रहते (अद् को घस्लृ आदेश होता है)। ...लुखि...] - 1. II. 24 देखें वचितः I. II. 24 - लुट् - III. 1. 15 (अनद्यतन भविष्यत्काल में धातु से) लुट् प्रत्यय होता है ( और वह आगे होता है) । लुट् - VIII. 1. 29 (पद से उत्तर) लुडन्त ( तिङन्त को अनुदात्त नहीं होता)। लुट - II. iv. 85 लुट् लकार के (प्रथम पुरुष के स्थान में क्रमशः डा, रौ और स् आदेश होते हैं) । लुटि - I. iii. 93 लुट् लकार में (एवं स्य, सन् प्रत्ययों के होने पर भी कृपू धातु से विकल्प से परस्मैपद होता है)। ...लुटोः •III. 1. 33 देखें - लुलुटोः III. 1. 33 - ... लुण्ठ... - III. ii. 155 देखें- जल्पभिक्ष० III. II. 155 लुप् - Iii. 54 लुब्विधायक सूत्र - जनपदे लुप् वरणादिभ्यश्च इत्यादि (भी विहित नहीं किये जा सकते, निवासादि
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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