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________________ लिटि fafe-III. i. 35 लिट् परे रहते (कास् धातु और प्रत्ययान्त धातुओं से आम् प्रत्यय होता है, अमन्त्रविषय में) । लिटि - III. 1.40 450 लिट् परे रहते (आम् प्रत्यय के बाद कृञ् = कृ तथा भू, अस् का भी अनुप्रयोग होता है)। लिटि - VI. 1. 8 लिट् लकार के परे रहते (धातु के अवयव अनभ्यास प्रथम एकाच् एवं अजादि के द्वितीय एकाच् को द्वित्व होता है। लिटि - VI. 1. 17 (दोनों के अर्थात् वचि स्वपि यजादि तथा महिज्यादियों के अभ्यास को सम्प्रसारण हो जाता है, ) लिट् लकार के परे रहते । लिटि - VI. 1. 37 लिट् लकार के परे रहते (वय् धातु के यकार को सम्प्रसारण नहीं होता है। लिटि - VI. 1. 45 (उपदेश में एजन्त व्येञ् धातु को आकारादेश नहीं होता है) लिट् लकार के परे रहते। लिटि - VI. iv. 12 (लिट् परे रहते जिस अब के आदि को आदेश नहीं हुआ है, उसके असहाय हलों के बीच में वर्तमान जो अकार, उसको एकारादेश तथा अभ्यासलोप हो जाता है; कित्, ङित्) लिट् परे रहते । लिटि - VII. ii. 13 (कृ.सू. भू, वृ. स्तु. . सु श्रुइन अगों को) लिट् प्रत्यय परे रहते (इट् आगम नहीं होता) । faf-VIL. iv. 9 (देह रक्षणे' धातु को) लिट् लकार परे रहते (दिगि आदेश होता है)। लिटि - VII. iv. 68 (व्यथ् अङ्ग के अभ्यास को) लिट् परे रहते (सम्प्रसारण होता है। लिटि - VIII. iii. 118 लिट् परे रहते (षद् धातु के सकार को मूर्धन्य आदेश नहीं होता) । ... लिटो : - VI. iv. 88 देखें - लुलिटो: VI. Iv. 88 ... लिटो : - VII. 1. 63 देखें- अशब्लिटो VII. 1. 63 ... लिटो : - VII. iii. 57 देखें - सन्लिटो: VII. III. 57 लिड्यो : - VI. 1. 29 लिवि..... लिट् तथा यङ् के परे रहते (भी ओप्यायी धातु को पी आदेश होता है)। लिति - VI. 1. 187 लित् प्रत्यय के परे रहते (प्रत्यय से पूर्व को उदात्त होता है)। लिपि... - 111. 1. 53 देखें - लिपिसिचिह्नः III. 1. 53 ... लिपि ... - III. ii. 21 देखें - दिवाविभा०] III. I. 21 लिपिसिचिह्न - III. 1. 53 लिप, सिच तथा ह्वेञ्ं से (भी चिल के स्थान में अ आदेश होता है, कर्तृवाची लुङ् परे रहने पर ) । लिप्सायाम् - III. iii. 6 प्राप्त करने की इच्छा या प्रार्थना की अभिलाषा गम्यमान होने पर (किंवृत्त उपपद हो तो भविष्यत्काल में धातु से विकल्प से लट् प्रत्यय होता है)। लिप्सायाम् - III. 1. 46 प्राप्त करने की इच्छा गम्यमान हो तो न पूर्वक मह धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। लिप्स्यमानसिद्धौ - III. iii.7 चाहे जाते हुए अभीष्ट पदार्थ से सिद्धि गम्यमान हो तो (भी भविष्यत्काल में धातु से विकल्प से लट् प्रत्यय होता है) । ... लिब... - III. ii. 21 देखें - दिवाविभा० III. ii. 21
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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