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________________ यत् यत् - IV. 1. 137 (राजन् तथा श्वशुर प्रातिपदिकों से अपत्यार्थ में) यत् प्रत्यय होता है। यत्... देखें IV. i. 140 - - यड्डुकञी IV. 1. 140 यत् - IV. 1. 16 (सप्तमीसमर्थ शूल तथा उखा प्रातिपदिकों से 'सस्कृतं भक्षा' अर्थ में यत् प्रत्यय होता है। यत् - IV. ii. 30 (प्रथमासमर्थ देवतावाची वायु, ऋतु, पितृ तथा उषस् प्रातिपदिकों से षष्ठ्यर्थ में) यत् प्रत्यय होता है। यत् - IV. ii. 100 (दिव, प्राच अपा, उदच प्रतीच्― इन प्रातिपदिकों से शैषिक) यत् प्रत्यय होता है। यत् IV. 4 (अर्थ प्रातिपदिक से) शैषिक यत् प्रत्यय होता हैं। यत् - IV. iii. 54 (सप्तमीसमर्थ दिगादि प्रातिपदिकों से भव अर्थ में) यत् प्रत्यय होता है)। यत्... IV. iii. 64 देखें- यत्खौ IV. III. 64 — 426 यत् ... - IV. iii. 71 देखें- यदणौ IV. III. 71 यत् - IV. iii. 79 (पञ्चमीसमर्थ पितृ प्रातिपदिक से 'आगत' अर्थ में) यत् प्रत्यय होता है (तथा चकार से ढञ् प्रत्यय होता है)। यत् - IV. iii. 114 (तृतीयासमर्थ उरस् शब्द से एकदिक् अर्थ में) यत् प्रत्यय (तथा चकार से तसि प्रत्यय भी होता है। यत् - IV. iii. 120 (षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिक से 'इदम्' अर्थ में) यत् प्रत्यय होता है। -IV. iii. 157 (षष्ठीसमर्थ गो तथा पयस् शब्दों से विकार तथा अवयव अर्थों में) यत् प्रत्यय होता है। यत् - IV. iv. 75 (यहाँ से लेकर 'तस्मै हितम्' के पहले कहे जाने वाले अर्थों में सामान्येन यत् प्रत्यय का अधिकार रहेगा। यत् यत्... IV. iv. 77 देखें – यडुकौ IV. iv. 77 यत् - IV. iv. 116 (सप्तमीसमर्थ अग्र प्रातिपदिक से वेदविषयक भवार्थ में) यत् प्रत्यय होता है। यत् .... IV. iv. 130 देखें- यत्खौ IV. iv. 130 यत् - V. 1. 2 (उवर्णान्त तथा गवादिगण पठित प्रातिपदिकों से 'क्रीत' अर्थ से पहले पहले कहे हुये अर्थों में) यत् प्रत्यय होता है। यत् - V. 1. 6 (चतुर्थीसमर्थ शरीर के अवयववाची प्रातिपदिकों से 'हित' अर्थ में) यत् प्रत्यय होता है। यत् - V. 1.34 (अध्यर्द्ध शब्द पूर्ववाले तथा द्विगुसञ्ज्ञक पण, पाद, माष और शतशब्दान्त प्रातिपदिकों से 'तदर्हति' पर्यन्त कथित अर्थों में यत् प्रत्यय होता है। यत् - V. 1. 38 1 (सङ्ख्यावाची परिमाणवाची तथा अश्वादि प्रातिपदिकों को छोड़कर षष्ठीसमर्थ गो शब्द तथा दो अच् वाले प्रातिपदिकों से 'कारण' अर्थ में) यत् प्रत्यय होता है, (यदि वह कारण संयोग अथवा उत्पात हो तो)। यत् - V. 1. 48 = (प्रथमासमर्थ भाग प्रातिपदिक से सप्तम्यर्थ में) यत् प्रत्यय (तथा उन् प्रत्यय होते हैं, यदि 'वृद्धि' व्याज के रूप में दिया जाने वाला द्रव्य, 'आय' जमींदारों का भाग, 'लाभ' मूल द्रव्य के अतिरिक्त प्राप्य द्रव्य, 'शुल्क' = राजा का भाग तथा 'उपदा' 'दिया जाता है' क्रिया के कर्म हों तो) । यत् - V. 1. 64 = घूस - ये (द्वितीयासमर्थ शीर्षच्छेद प्रातिपदिक से 'नित्य ही समर्थ है' अर्थ में) यत् प्रत्यय (भी) होता है, (यथाविहित ढक् भी)। =
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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