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________________ यञ्... यञ्... - IV. ii. 47 देखें- यच्छौ IV. II. 47 यज् - IV. iii. 10 (समुद्र के समीप अर्थ में वर्तमान जो द्वीप प्रातिपदिक, उससे) शैषिक यन् प्रत्यय होता है। . यञ्... - IV. iii. 126 देखें - अभ्याम् IV. III. 126 यञ्... - IV. iii. 165 देखें यजी IV. 1. 165 - यञ् – Viii. 118 - (अभिजित् विदभृत्, शालावत्, शिखावत्, शमीवत्, ऊर्णावत् तथा श्रुमत् सम्बन्धी जो अणु प्रत्ययान्त शब्द, उनसे स्वार्थ में) यञ् प्रत्यय होता है। 425 यत्र: - IV. i. 16 (अनुपसर्जन) यजन्त प्रातिपदिक से भी स्त्रीलिङ्ग में डीप प्रत्यय होता है)। यत्रञोः II. iv. 64 (गोत्र में विहित ) यञ् और अञ् प्रत्ययों का (भी तत्कृत बहुत्व में लुक् होता है, स्त्रीलिङ्ग को छोड़कर) । यञञौ - IV. iii. 165 - (षष्ठीसमर्थ कंसीय, परशव्य प्रातिपदिकों से विकार अर्थ में यथासङ्ख्य करके) यञ् और अम् प्रत्यय होते हैं, ((तथा प्रत्यय के साथ-साथ कंसीय और परशव्य का लुक् भी होता है)। यत्रि - VII. iii. 101 (अकारान्त अङ्ग को दीर्घ होता है), यञ् प्रत्याहार आदि वाले (सार्वधातुक प्रत्यय) के परे रहते। यत्रित्रोः IV. i. 101 " (गोत्र में विहित जो ) यञ् और इन् प्रत्यय, तदन्त से (भी 'तस्यापत्यम्' अर्थ में फक् प्रत्यय होता है)। यच्छौ - IV. ii. 47 (समूहार्थ में षष्ठीसमर्थ केश, अश्व प्रातिपदिकों से यथासङ्घ) यत्र और छ प्रत्यय होते हैं, (पक्ष में विकल्प से ढक् होता है। - यडुकञ – IV. 1. 140 - (अविद्यमान पूर्वपद वाले कुल शब्द से विकल्प से) यत् और ढञ् प्रत्यय होते हैं, (पक्ष में ख) । यड़कौ - IV. iv. 77 (द्वितीयासमर्थ धुर् प्रातिपदिक से 'ढोता है' अर्थ में) यत् और ढक् प्रत्यय होते हैं। यण् - VI. 1. 74. = (इक इ, उ, ऋ, लृ के स्थान में यथासङ्ख्य करके) यण्य्व्रल् आदेश होते हैं; (अच् परे रहते, संहिताविषय में) । यण - VI. Iv. 81 (इक् अङ्ग को) यणादेश होता है, (अच् परे रहते)। - ... यण्... - VII. iv. 77 देखें पुजि VII. Iv. 77 QUE - I. i. 44 यण् = य् र् ल् व् के स्थान में हुआ या होने वाला इक् = इ, उ, ऋ, लृ उसकी सम्प्रसारणसंज्ञा होती है)। यणः - VIII. ii. 4 - .. यत्... ... (उदात्त तथा स्वरित के स्थान में वर्तमान) यण से उत्तर (अनुदात्त के स्थान में स्वरित आदेश होता है)। यणादिपरम् - VI. I. 156 (स्थूल, दूर, युव, ह्रस्व, क्षित्र, क्षुद्र इन अों का) जो यणादि भाग, उसका (लोप होता है; इष्ठन् इमनिच् तथा ईयसुन परे रहते तथा उस यणादि से पूर्व को गुण होता है) । - - यण्वतः VIII. ii. 43 (संयोग आदि वाले आकारान्त एवं) यण्वान् धातु से उत्तर (निष्ठा के तकार को नकारादेश होता है)। यत्... - III. 1. 97 (अजन्त धातुओं से) यत् प्रत्यय होता है। .. यत्... III. ii. 21 देखें - दिवाविभा० III. I. 21 -I. iii. 67 (अण्यन्तावस्था में) जो (कर्म वही यदि ण्यन्तावस्था में कर्ता बन रहा हो तो ऐसी ण्यन्त धातु से आत्मनेपद होता है आध्यान उत्कण्ठापूर्वक स्मरण अर्थ को छोड़कर)। =
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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