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________________ ...भिस्.. . . 403 ...भिस्... - IV.i.2 भुज.. -VII. iii.61 देखें - स्वौजसमौट IV. 1.2 देखें - भुजन्युजौ VII. iii. 60 भिस: - VII. 1.9 भुजः -I. iii. 66 (अकारान्त अङ्ग से उत्तर) भिस् के स्थान में (ऐस् आदेश भुज् धातु से (आत्मनेपद होता है; अनवन = पालन होता है)। करने से भिन्न अर्थ में)। भी... -I.ili. 38 भुजन्युजौ - VII. iii. 61 देखें- भीम्यो : I. iii. 38 भुज तथा न्युब्ज शब्द (क्रमशः हाथ और रोग अर्थ में भी... -I.iv. 25 देखें- भीत्रार्थानाम् I. iv. 25 निपातन किये जाते हैं)। भी... -III. 1.39 भुवः - I. iv. 31 देखें- भीहीभृहुवाम् III. i. 39 'भू' धातु के (कर्ता का जो प्रभव = उत्पत्तिस्थान है, भी... -VI. 1. 186 उस कारक की अपादान संज्ञा होती है)। देखें- भीहीभृ० VI.i. 186 भुवः - III. 1. 107 भीत्रार्थानाम् -I. iv. 25 (अनुपसर्ग) भू धातु से (सुबन्त उपपद रहते क्यप् प्रत्यय भय तथा रक्षा अर्थ वाली धातुओं के (प्रयोग में जो होता है भाव अर्थ में। भय का हेतु, उस कारक की अपादान संज्ञा होती है)। भुवः - III. ii. 45 भीमादयः - III. iv. 74 . 'भू' धातु से (आशित सुबन्त उपपद रहते करण और भीमादि उणादिप्रत्ययान्त शब्द (अपादान कारक में भाव में 'खच्' प्रत्यय होता है)। निपातन किये जाते हैं)। भुवः - III. ii. 56 भीरो: - VIII. iii. 81 (व्यर्थ में वर्तमान अच्यन्त आढ्य, सुभग, स्थूल, भीरु शब्द से उत्तर (स्थान शब्द के सकार को मूर्धन्य पलित, नग्न, अन्ध, प्रिय-ये सुबन्त उपपद रहते कर्तृ आदेश होता है)। कारक में) भू धातु से (खिष्णुच् तथा खुकञ् प्रत्यय होते भीस्म्योः -1. iii. 68 (ण्यन्त) भी तथा स्मि धातुओं से (हेत = प्रयोजक कर्त्ता भुवः -III. ii. 138 से भय होने पर आत्मनेपद होता है)। भू धातु से (भी वेदविषय में तच्छीलादि कर्ता हो, तो भीहीभृहुमदजनधनदरिद्राजागराम् - VI.i. 186 । वर्तमान काल में इष्णुच् प्रत्यय होता है)। - भी, ह्री, भू, हु, मद,जन, धन, दरिद्रा तथा जागृ धातु के भुवः -III. ii. 179 (अभ्यस्त को पित् लसावर्धातुक परे रहते प्रत्यय से पूर्व को उदात्त होता है)। भू धातु से (संज्ञा तथा अन्तर = मध्य गम्यमान हो तो । वर्तमानकाल में क्विप् प्रत्यय होता है)। भीहीभृहुवाम् - III. 1. 39 भी, ही, भू, हु-इन धातुओं से (अमन्त्रविषयक लिट् । ...भुव: - III. iii. 24 परे रहते विकल्प से आम् प्रत्यय होता है तथा इनको देखें- श्रिणीभुवः III. iii. 24 श्लुवत् कार्य होता है)। भुवः -III. iii.55 भुक्तम् -V.ii. 85 तिरस्कार अर्थ में वर्तमान परिपर्वको भ धात से (कर्त___ 'भुक्त क्रिया के समानाधिकरण वाले (प्रथमासमर्थ श्राद्ध भिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में विकल्प से घञ् प्रत्यय प्रातिपदिक से 'इसके द्वारा' अर्थ में इनि और ठन् प्रत्यय होता है.पक्ष में अप होता है)। होते हैं)। हैं)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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