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________________ प्रधान... 378 प्रमाणे -III. iv. 51 आयाम = लम्बाई गम्यमान हो तो भी सप्तम्यन्त तथा तृतीयान्त उपपद रहते धातु से णमुल् प्रत्यय होता है)। प्रमाणे -IV.i. 24 प्रमाण = लम्बाई अर्थ में वर्तमान (जो पुरुष शब्द,तदन्त अनुपसर्जन द्विगुसंज्ञक प्रातिपदिक से तद्धित का लुक होने पर स्त्रीलिङ्ग में विकल्प से ङीप प्रत्यय नहीं होता)। प्रमाणे-v.ii.37 (प्रथमासमर्थ) प्रमाण समानाधिकरणवाची (प्रातिपदिकों से षष्ठ्यर्थ में द्वयसच, दनच् और मात्र प्रत्यय होते प्रधान... -I.ii.56 देखें - प्रधानप्रत्ययार्थवचनम् I. I. 56 प्रधानप्रत्ययार्थवचनम् -1. ii. 56 . प्रधानार्थवचन एवं प्रत्ययार्थवचन (अशिष्य होते हैं, अर्थ में लोक के अधीन होने से)। प्रनिरन्तःशरेक्षुप्लक्षाप्रकार्घ्यखदिरपीयूचाभ्यः - VIII. iv.5 प्र, निर्, अन्तर, शर, इक्षु, प्लक्ष, आम्र, कार्घ्य, खदिर, पीयूक्षा-इन से उत्तर (वन शब्द के नकार को असक्षाविषय में भी तथा अपि-ग्रहण से सजा-विषय में भी णकार आदेश होता है)। प्रपूर्वस्य - VI. I. 23 प्र पूर्ववाले (स्त्यै धातु) को निष्ठा परे रहते सम्प्रसारण हो जाता है)। प्रभवः -I. iv. 31 (भू धातु के कर्ता का) जो प्रभव= उत्पत्ति स्थान, वह (कारक अपादान संज्ञक होता है)। प्रभवति-VII.83 (पञ्चमीसमर्थ प्रातिपदिक से)'प्रभवति' अर्थ में (यथाविहित प्रत्यय होता है)। प्रभवति = प्रथमतः उपलब्धि या निकास। प्रभवति-V.1. 100 (चतुर्थीसमर्थ सन्तापादि प्रातिपदिकों से) समर्थ है' = शक्त है अर्थ में (यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है)। ...प्रभा.. -III. 1. 21 देखें-दिवाविभा० III. ii. 21 ...प्रभृति... - VI. iii. 83 देखें-अमूर्धप्रभृत्य VI. I. 3. प्रभो -VII. 1. 21 , (परिवृढ शब्द निष्ठा परे रहते) स्वामी अर्थ को कहने में (निपातन किया जाता है)। प्रमद... -III. 11.68 देखें-प्रमदसम्मदौ III. iii. 68 प्रमदसम्मदौ-III. Ili. 68 (हर्ष अभिधेय होने पर) प्रमद और सम्मद (ये अप- प्रत्ययान्त शब्द निपातित किये जाते हैं, कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में)। प्रमाणे - VI. 1.4 प्रमाणवाची (तत्पुरुष समास) में (गाध तथा लवण शब्दों के उत्तरपद रहते पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है)। गाध = तरणीय,उथला। प्रमाणे -VI. ii. 12 प्रमाणवाची (तत्पुरुष समास) में (द्विगु उत्तरपद रहते पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है)। ....प्रमाणेषु - VI. 1. 140 देखें-सेवितासेवित VI.I. 140 ...प्रमाण्यो: -v.iv. 116 देखें-पूरणीप्रमाण्यो: V.iv. 116 प्रयच्छति - IV. iv. 30 . (द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिक से) 'देता है' अर्थ में (ढक प्रत्यय होता है, यदि देय पदार्थ निन्दित हो)। प्रयाज.. -VII. iii. 62 . देखें-प्रयाजानुयाजी VII. 1.62 प्रयाजानुयाजौ - VII. iii. 62 . प्रयाज तथा अनुयाज शब्द (यज्ञ का अङ्ग हो तो निपातन किये जाते है)। प्रयुज्यमाने-VIII. ii. 101 (चित् यह निपात भी जब उपमा के अर्थ में) प्रयुक्त हो, तो (वाक्य के टि को अनुदात्त प्लुत होता है)। प्रयै-III. iv. 10 प्रय,(रोहिष्य, अव्यथिष्य) शब्द (वेदविषय में तुमर्थ में - निपातन किये जाते हैं)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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