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________________ 370 पूर्व: - Viv. 133 (तृतीयासमर्थ) पूर्व प्रातिपदिक से (किया हुआ' अर्थ में इन और य प्रत्यय होते हैं)। पूर्वी - VII. iii. 3 (पदान्त यकार तथा वकार से उत्तर जित.णित. कित तद्धित परे रहते अङ्ग के अचों में आदि अच् को वृद्धि नहीं होती, किन्तु उन यकार, वकार से) पूर्व (तो क्रमशः ऐच = ऐ और औ आगम होता है)। पूल्योः -III. iii. 28 (निर, अभि पूर्वक क्रमशः) पू.लू धातुओं से (कर्तृभिन्न कारक संज्ञाविषय तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। ...पूर्व.. - VI. ii. 142 देखें- अपृथिवीरुद्र ०VI. ii. 142 ...पूषन्... - VI. iv. 12 देखें-इन्हन्यूषार्यम्णाम् VI. iv. 12 ...पृ... -VI. iv. 102 देखें- शृणु VI. iv. 102 ...पृच्छति... -VI.i. 16 देखें- अहिज्याo VI... 16 पृतनाभ्याम् - VIII. iii. 109 पृतना तथा ऋत शब्द से उत्तर (भी सह धातु के सकार को वेद-विषय में मूर्धन्य आदेश होता है)। ...प्रतनस्य-VII. iv. 39 देखें-कव्यध्वर VII. iv.39 पृतना... -VIII. 1. 109 देखें-पृतनाभ्याम् VIII. ii. 109 पृथक्... -II. ii. 32 देखें- पृथग्विनानानाभि II. 11. 32 पृथग्विनानानाभि-II. 11. 32 पृथक, विना, नाना-इन शब्दों के योग में (ततीया म (तृताया विभक्ति विकल्प से होती है.पक्ष में पञ्चमी भी होती है)। ...पृथिवीभ्याम् - V. 1. 40 देखें-सर्वभूमिपृथिवीभ्याम् V. 1. 40 पृथिव्याम्-VI. iii. 29 पृथिवी शब्द उत्तरपद रहते (देवताद्वन्द्व में दिव शब्द को दिवस् आदेश होता है तथा चकार से द्यावा आदेश भी हो जाता है)। ....पृथु... - VI. ii. 168 देखें - अव्ययदिक्शब्द० VI. ii. 168 पृथ्वादिभ्यः - V.i. 121 (षष्ठीसमर्थ) पृथु आदि प्रातिपदिकों से (भाव' अर्थ में विकल्प से इमनिच् प्रत्यय होता है)। पृषोदरादीनि-VI. iii. 108 पृषोदर इत्यादि शब्दरूप शिष्टों के द्वारा जिस प्रकार उच्चरित है, वैसे ही साधु माने जाते हैं)। पृष्टप्रतिक्चने - III. ii. 120 पृष्टप्रतिवचन अर्थात् पूछे जाने पर जो उत्तर दिया जाये, . उस अर्थ में (ननु शब्द उपपद रहते सामान्य भूतकाल में . लट् प्रत्यय होता है)। पृष्टप्रतिवचने - VIII. ii. 93 पूछे गये प्रश्न के प्रत्युत्तर वाक्य में (वर्तमान हि शब्द को विकल्प करके प्लुत उदात होता है)। ....पृष्ठ.. -VI. ii. 114 देखें-कण्ठपृष्ठ. VI. ii. 114 ...पृष्ठ.. -VIII. iii. 53 . देखें-पतिपुत्र० VIII. iii. 53 ...पृ... -III. 1. 177 देखें- प्राजभास III. ii. 177 ....... - VIII. ii. 57 देखें- ध्याख्या VIII. ii. 57 पे-VIII. iii. 10 (नन शब्द के नकार को) प परे रहते (रु होता है)। पेषम् - VI. iii. 57 देखें-पेवासवाहन VI. iii. 57 पेषवासवाहनधिषु -VI. iii. 57 पेष, वास, वाहन तथा धि शब्द के उत्तरपद रहते (भी उदक शब्द को उद आदेश होता है)। - पेषम् = पीसना, चूरा करना। पैलादिभ्यः -II. iv. 59 पैल आदि शब्दों से भी (युवापत्य विहित प्रत्यय का लुक होता है)। पो: -III.1.98 (अकार उपधावाली) पवर्गान्त धातु से (यत् प्रत्यय होता
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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