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________________ पितुः 361 पुक् पितुः - IV. iii. 79 पिषः - III. iv. 38 (पञ्चमीसमर्थ) पितृ प्रातिपदिक से (आगत' अर्थ में यत् (स्नेहवाची करण उपपद हो तो) पिष् धातु से (णमुल् प्रत्यय होता है तथा चकार से ठञ् प्रत्यय होता है)। प्रत्यय होता है)। ..पितुर्थ्याम् - VIII. iii. 85 ...पिषाम् -II. iii. 56 देखें - मातुःपितुर्ध्याम् VIII. Iii. 85 देखें-जासिनिग्रहण II. iii. 56 ...पितृ... - IV. 1. 30 पिष्टात् - IV. iii. 143 देखें-वाय्यतुफिशुक्स: IV. 1. 30 (षष्ठीसमर्थ) पिष्ट प्रातिपदिक से (भी विकार अर्थ में ...पितृभ्याम् -VIII. Iii. 84 मयट् प्रत्यय होता है)। देखें-मातृपितृभ्याम् VIII. iii. 84 ...पिस... - III. ii. 175 पितृव्य..-IV. 1. 35 . देखें-स्थेशभास III..ii. 175 देखें-पितृव्यमातुल० IV. ii. 35 पी-VI.i. 28 पितृव्यमातुलमातामहपितामहाः -IV. ii. 35 (ओप्यायी धातु को निष्ठा के परे रहते विकल्प से) पी पितव्य. मातुल, मातामह और पितामह शब्द निपातन आदेश होता है। किये जाते है। ...पीड.. - III. iv. 49 पितृष्वसुः - IV. 1. 132 देखें-उपपीडरुधकर्षः III. iv. 49 पितृष्वस शब्द से (अपत्य अर्थ में छण् प्रत्यय होता ...पीडाम् -VIL. iv.3 देखें- प्राजभास0 VII. iv. 3 ...पितौ-III. 1. 4 ...पीयूक्षाभ्यः -VIII. iv.5 देखें - सुप्पितौ III. 1.4 देखें-प्रनिरन्त:o VIII. iv.5 ...पिपयों:-VII. iv.77 पीलायाः -IV.i. 118 :- देखें - अतिपिपयो: VII. iv.77 षष्ठीसमर्थ पीला प्रातिपदिक से (अपत्य अर्थ में ...पिपासा... -VII. iv. 34. विकल्प से अण् प्रत्यय होता है)। देखें-अशनायोदन्यः VII. iv. 34 पील्वादि... -V.ii. 24 पिब... -VII. Ili.78 देखें - पील्वादिकर्णादिभ्यः V. 1. 24 • देखें-पिबजिन VII. iii. 78 पील्वादिकर्णादिभ्यः -V.ii. 24. पिबजिघ्रधमतिष्ठमनयच्छपश्य धौशीयसीदा:-VII. (षष्ठीसमर्थ) पील्वादि तथा कर्णादि प्रातिपदिकों से iii. 78 (यथासङ्ख्य करके 'पाक' तथा 'मूल' अर्थ अभिधेय हो (पा.घा,ध्मा,ष्ठा,म्ना,दाण, दृशिर,ऋ,स,शद्ल,षद्ल तो कणप तथा जाहच प्रत्यय होते है)। -इन अङ्गों को शित् प्रत्यय परे रहते यथासङ्ख्य करके) पिब,जिघ्र,धम,तिष्ठ,मन,यच्छ,पश्य,ऋच्छ,धौ, पु... -VII. iv.80 शीय,सीद आदेश होते हैं। देखें-पुयण्ज्य परे VII. iv. 80 पिबते: - VII. iv. 4 ...पु... - VIII. iv.2 पा पाने अङ्ग की (उपधा का चङ्परक णि परे रहते । ही देखें - अट्कुप्वा VIII. iv.2 लोप होता है. तथा अभ्यास को ईकारादेश होता है)। पुक्-VII. lil..36 पिषः - III. iv. 35 (ऋ, ह्री, व्ली, री, क्नूयी, क्ष्मायी अङ्ग को तथा (शुष्क,चूर्ण तथा रूक्ष कर्म उपपद रहते) पिष धात से आकारान्त अङ्ग को णिच् परे रहते) पुक् आगम होता • (णमुल् प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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