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________________ परस्मैपदेषु 351 परावरयोगे परस्मैपदेषु - III. iv.97 परस्मैपदविषय में (लेट्-लकार-सम्बन्धी इकार का भी विकल्प से लोप हो जाता है)। परस्मैपदेषु - III. iv. 103 परस्मैपदविषयक (लिङ लकार को यासट का आगम होता है और वह उदात्त तथा द्वित् भी होता है)। परस्मैपदेषु - VII.1.1 परस्मैपदपरक (सिच के परे रहते इगन्त अङ्गों को वृद्धि होती है)। परस्मैपदेषु - VII. ii. 40 परस्मैपदपरक सिच् परे रहते भी वृ तथा ऋकारान्त धातुओं से उत्तर इट् को दीर्घ नहीं होता)। परस्मैपदेषु-VII. 1.58 (गम्ल धातु से उत्तर सकारादि आर्धधातुक को) परस्मैपद परे रहते (इट् का आगम होता है)। परस्मैपदेषु - VII. 1.71 . (ष्टुज.पुञ् तथा धूज् से उत्तर) परस्मैपद परे रहते (सिच् को इटु का आगम होता है)। परस्मैपदेषु - VII. iii. 76 (क्रमु अों को) परस्मैपदपरक (शित्) प्रत्यय परे रहते (दीर्घ होता है)। परस्य -I. 1. 33 __पर को कहा गया कार्य (उस पर वाले के आदि अल् के स्थान में होवे)। परस्य-VI. 1. 108 (ख्य् और त्य् से) परे (सि तथा ङस्) के (अकार के स्थान में उकार आदेश होता है, संहिता के विषय में)। परस्य - VI. iii.7 (जिस सज्ञा से वैयाकरण ही व्यवहार करते हैं,उसको कहने में) पर शब्द (तथा चकार से आत्मन शब्द) से उत्तर (भी चतुर्थी विभक्ति का अलुक् होता है)। परस्य-VII. iii. 22 पर (इन्द्र शब्द) के (अचों में आदि अच को वृद्धि नहीं होती)। परस्य-VII. iii. 27 (अर्ध शब्द से) परे (परिमाणवाची शब्द के अचों में आदि अकार को वृद्धि नहीं होती,पूर्वपद को तो विकल्प से होती है; जित, णित् तथा कित् तद्धित परे रहते)। परस्य-VII. iv.88 (चर् तथा फल् धातुओं से) पर के (अकार के स्थान में उकारादेश होता है; यङ् तथा यङ्लुक् परे रहते)। परस्य - VIII. ii. 92 (अग्नीध् के प्रेषण में पद के आदि को प्लुत होता है, तथा उससे) परे को (भी होता है.यज्ञकर्म में)। परस्य-VIII. iii. 118 (लिट् परे रहते षद् धातु के परवाले सकार को मूर्धन्य आदेश नहीं होता)। पराङ्गवत् - II.1.2 (आमन्त्रितसंज्ञक पद के परे रहते पूर्व के सुबन्त पद को) पर के अङ्ग के समान कार्य होता है,(स्वरविषय में)। पराजे: -I. iv. 26 परापूर्वक 'जि' धातु के (प्रयोग में जो सहन नहीं किया जा सकता, ऐसे कारक की अपादान संज्ञा होती है)। परादिः - VI. ii. 199 (वेदविषय में) उत्तरपद सक्थ शब्द के आदि को (बहुल करके अन्तोदात्त होता है)। ....पराभ्याम् -I. iii. 19 देखें-विपराभ्याम् I. iii. 19 ...पराभ्याम् -I. iii. 39 देखें - उपपराभ्याम् I. iii. 39 ....पराभ्याम् -1. iii.79 देखें-अनुपराभ्याम् I. iii. 79 ....पसार...-.iii. 32 देखें - सद्य:परुत्० V. iii. 32 परावरयोगे -III. iv. 20 जब पर का अवर के साथ या पूर्व का पर के साथ योग गम्यमान हो तो भी धातु से क्त्वा प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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