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________________ 342 ने-VIII. 1.3 ...नेषु - VII. III. 54 ना परे रहते (मुभाव असिद्ध नहीं होता)। -णिन्ने VII.11.54 ... . ने-I. iii. 17 ...नेष्ट... - VI. iv. 11 नि उपसर्ग से उत्तर (विम् धातु से आत्मनेपद होता है)। देखें - अप्तृन्त VI. in.11 . ने: - V. 1. 32 नोपधात् -I. 1. 23 नि उपसर्ग प्रातिपदिक से (नासिकासम्बन्धी झुकाव को (थकारान्त एवं फकारान्त) नकारोपध धातुओं से परे (जो कहना हो तो समाविषय में बिडच् तथा बिरीसच् प्रत्यय सेट कत्वा प्रत्यय,वह विकल्प करके कित नहीं होता है)। होते है)। नौ - III. ii. 48 ने: - VI. 1. 192 नि पूर्वक (वृ धातु से धान्यविशेष को कहना हो तो नि उपसर्ग से उत्तर (उत्तरपद को अन्तोदात्त होता है, कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ्प्रत्यय होता है)। अप्रधान अर्थ में)। नौ-III. III.60 ने: - VIII. iv. 17 नि पूर्वक (अद् धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव। (उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर) नि के (नकार को में ण प्रत्यय भी होता है तथा अप् भी)। णकार आदेश होता है; गद, नद, पत, पद, घुसज्ञक,मा, नौ-III.LA . .. षो,हन,या,वा,द्रा,प्सा,वप,वह,शम,चि एवं दिह धातुओं के परे रहते भी)। नि पूर्वक (गद, नद,पठ तथा स्वन् धातुओं से विकल्प : से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में अप् प्रत्यय होता ...नेत्.. - VIII. 1. 30 है, पक्ष में घञ् होता है)। देखें - यद्यदि० VIII. 1. 30 नौ... - IV. 1.7 नेद... - V. 11.63 देखें-नौपच IV. iv.7 देखें- नेदसाधौ v. ii. 63 नौ... -IV.IN.91 नेदसाधौ-v.ii.3 देखें-नौवयोधर्मः M.iv.91 (अन्तिक तथा बाढ शब्दों को यथासङ्ख्य करके) नेद तथा साध आदेश होते हैं.(अजादि अर्थात इच्छन.ईयसन नाच-IN..7 प्रत्यय परे रहते)। (तृतीयासमर्थ) नौ तथा दो अच् वाले प्रातिपदिकों से ...नेदीयस्सु - VI. 1.21 (तरति' अर्थ में ठन् प्रत्यय होता है)। देखें-आकाशाबाधO VI. 1. 21 नौवयोधर्मविवमूलमूलसीतातुलाभ्यः - IV. iv. 91 ...नेभ्यः - IV.i.5 (तृतीयासमीनौ,वयस,धर्म,विष,मूल,मूल,सीता तुला -इन आठ प्रातिपदिकों से (यथासङ्ख्य करके तार्य तुल्य, देखें-ऋनेथ्य V.1.5 प्राप्य, वध्य, आनाम्य, सम,समित, सम्मित- इन आठ नेमधित -VII. iv. 45 अर्थों में यत् प्रत्यय होता है)। नेमधित शब्द वेदविषय में निपातन किया जाता है। च-VII.1.87 ...नेमा-1.1.32 (पथिन् तथा मथिन् अङ्ग के थकार के स्थान में) 'न्थ' देखें - प्रथमचरमतयाल्पार्थकतिपयनेमाः I. 1. 32 . __ आदेश होता है)। ...नेयेषु-v.i.9 . न्द्राः -VI.1.3 देखें-बाभक्षयति Vii.9 (अजादि के द्वितीय एकाच समुदाय के संयोग आदि में स्थित) न.द् तथार को द्वित्व नहीं होता)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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