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________________ 327 ...नटात - न -II. 1.6 नन्दुःसुभ्य:-V.iv. 121 'नज्' इस अव्यय का (सुबन्त के साथ समास होता है नज.दुस तथा सु शब्दों से उत्तर (जो हलि तथा सक्थि और वह तत्पुरुष समास होता है)। शब्द,तदन्त बहुव्रीहि से समासान्त अच प्रत्यय विकल्प से होता है)। ...न.-IV.1.57 देखें-सहनविद्यमान० V..57 नपूर्वाणाम् - VII. iii. 47 (भस्वा, एषा,अजा,ज्ञा,दा,स्वा- ये शब्द) नञ् पूर्व वाले ना.. - IV. 1.87 हों तो (भी,न हों तो भी इनके आकार के स्थान में जो अकार, देखें - नानौ IV. 1.87 उसको उदीच्य आचार्यों के मत में इत्त्व नहीं होता)। ना.. - V. iv. 121 नव्यूर्वात् - V.i. 120 देखें- नदुःसुभ्य: V. iv. 121 (यहां से आगे जो भाव प्रत्यय कहे जायेंगे. वे प्रत्यय) ना... - VI. II, 172 नञ् पूर्ववाले (तत्पुरुष समासयुक्त प्रातिपदिकों से नहीं होंगे; चतुर, संगत, लवण, वट, युध, कत, रस तथा लस देखें - नसुभ्याम् VI. ii. 172 शब्दों को छोड़कर)। नषः-V.iv.71 ...नश्याम् -V. 1.27 . न से परे ( जो शब्द, तदन्त तत्पुरुष से समासान्त देखें-विनश्याम् V. 1. 27 प्रत्यय नहीं होते)। नक-VI. 1. 116 नव्वत् - VI. II. 174 (उत्तरपदार्थ के बहुत्व को कहने में वर्तमान बहु शब्द नब से उत्तर (जर,मर, मित्र.मत- इन उत्तरपद शब्दों को बहुव्रीहि समास में आधुदात्त होता है)। से) नञ् के समान (स्वर होता है)! नविशिष्टेन -II.1.59 नक -VI. 1. 154 (अनक्तान्त सुबन्त) नञ्चिशिष्ट = जिस शब्द में नब (गुण के प्रतिषेध अर्थ में वर्तमान) नञ् से उत्तर (संपादि, ही विशेष हो, अन्य सब प्रकृति प्रत्यय आदि द्वितीय पद अर्ह, हित, अलम अर्थ वाले तद्धितप्रत्ययान्त उत्तरपद को के तुल्य हों, (समानाधिकरण क्तान्त सुबन्त) के साथ अन्तोदात्त होता है)। (विकल्प से समास को प्राप्त होता है और वह तत्पुरुष नक - VI. III. 72 समास होता है)। न के (नकार का लोप हो जाता है, उत्तरपद के परे। नसुभ्याम् -VI. 1. 172 रहते)। (बहुव्रीहि समास में) नञ् तथा सु से परे (उत्तरपद को नर-VII. 11. 30 अन्तोदात्त होता है)। नञ् से उत्तर (शुचि, ईश्वर, क्षेत्रज्ञ, कुशल,निपुण - इन ननौ -IV.1.87 शब्दों के अचों में आदि अच को वृद्धि होती है तथा (धान्यानां भवने.'v.ii.1 तक जिन अर्थों में प्रत्यय पूर्वपद को विकल्प से होती है; जित,णित,कित् तद्धित कहे हैं. उन सब अर्थों में स्त्री तथा पुंस शब्दों से परे रहते)। यथासङ्ख्य करके) नञ् तथा स्नञ् प्रत्यय होते हैं। नषि-II: III. 112 ...नटसूत्रयोः - IV. ii. 110 (क्रोधपूर्वक चिल्लाना गम्यमान हो तो) नब् उपपद रहते देखें - भिक्षुनटसूत्रयोः M. II. 110 (धातु से स्त्रीलिङ्ग कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में इनि ...नटात् - IV.III. 128 प्रत्यय होता है)। देखें -छन्दोगौन्धिक० N. II. 128
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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