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________________ 299 तिशित् ति-VI. iv. 142 (भसञक विंशति अङ्गके) ति को (डित् प्रत्यय परे रहते लोप होता है)। ति... - VII. ii.9 देखें-तितुत्र० VII. ii.9 ति-VII. ii. 48 (इषु,षह,लुभ,रुष,रिष्-इन धातुओं से उत्तर) तकारादि (आर्धधातुक) को विकल्प से इट् आगम होता है)। ति... - VII. I. 104 देखें-तिहो: VII. 1. 104 ति-VII. iv. 40 (दो,षो,मा तथा स्था अङ्गों को) तकारादि (कित) प्रत्यय के परे रहते (इकारादेश होता है)। ति - VII. iv.89 तकारादि प्रत्यय परे रहते (भी चर तथा फल के अभ्यासोत्तरवर्ती अकार के स्थान में उकारादेश होता है)। ति - IV.1.77 . (युवन् प्रातिपदिक से स्त्रीलिङ्ग में) ति प्रत्यय होता है (और वह तद्धितसंज्ञक होता है)। ति: - V.ii. 25 (षष्ठीसमर्थ पक्ष प्रातिपदिक से 'मूल' वाच्य हो तो) ति प्रत्यय होता है। तिककितवादिभ्यः - II. iv. 68 तिकादियों से तथा कितवादियों से उत्तर (द्वन्द्व-समास में गोत्र प्रत्यय का लुक् होता है,बहुत्व की विवक्षा होने पर)। तिकन् - V. iv. 39 (मृद् प्रातिपदिक से स्वार्थ में) तिकन् प्रत्यय होता है। तिकादिभ्यः - IV. 1. 154 तिकादि प्रातिपदिकों से (अपत्य अर्थ में फिञ् प्रत्यय होता है)। तिङ्.. - III. iv. 113 देखें-तिशित् III. iv. 113 ...तिक..-v.iv. 11 देखें-किमेत्तिड V. iv. 11 तिङ्- VIII. 1. 28 (अतिङ् पद से उत्तर) तिङ् पद को (अनुदात्त होता है)। तिङ्-VIII.i.68 (पूजनवाचियों से उत्तर गतिसहित तिङन्त को तथा गतिभिन्न) तिङन्त को (भी अनुदात्त होता है)। तिङ्- VIII. ii. 96 (अङ्ग शब्द से युक्त आकांक्षा वाले) तिङन्त को (प्लुत होता है)। तिङ्-VIII. 1. 104 (क्षिया, आशीः तथा प्रैष गम्यमान हो तो साकाङ्क्षा) तिङन्त (की टि को स्वरित प्लुत होता है)। तिङ:-I. iv. 100 तिङ् प्रत्ययों के (तीन-तीन के समूह क्रम से प्रथम, मध्यम और उत्तमसंज्ञक होते है)। तिङ-v.iil. 56 . (अत्यन्त प्रकर्ष' अर्थ में) तिङन्त से (भी तमप प्रत्यय होता है)। तिङ-VI. iii. 134 (दो अच वाले) तिङन्त के (आकार के स्थान में ऋचाविषय में दीर्घ होता है, संहिता में)। तिङः - VIII. 1. 27 तिङन्त पद से उत्तर (निन्दा तथा पौन:पुन्य अर्थ में वर्तमान गोत्रादिगण-पठित पदों को अनुदात्त होता है)। ...तिङन्तम् -I.iv. 14 देखें - सुप्तिडन्तम् I. iv. 14 fals: – VII. iii. 88 (भू तथा पूङ् अङ्ग को) तिङ् (पित् सार्वधातुक) परे रहते (गुण नहीं होता)। तिङि -VIII.i. 71 (उदात्तवान) तिङन्त के परे रहते (भी गतिसज्ञक को अनुदात्त होता है)। तिशित् -III. iv. 113 (घात से विहित) तिङ तथा शित प्रत्ययों की (सार्वधातुक संज्ञा होती है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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