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________________ ताभ्याम् 298 ताभ्याम् -III. iv.75 तासस्त्योः -VII. iv. 50 (उणादि प्रत्यय) सम्प्रदान तथा अपादान कारकों से तासु तथा अस् धातु के (सकार का सकारादि आर्ध(अन्यत्र कर्मादि कारकों से भी होते है)। धातुक परे रहते लोप होता है)। ताभ्याम् -VII. iii.3 तासि... -VI.I. 180 (पदान्त यकार तथा वकार से उत्तर जित्, णित, कित् तद्धित परे रहते अङ्ग के अचों में आदि अच को वद्धि तासि-VII. 1.66 नहीं होती, किन्तु) उन यकार वकार से (पूर्व तो क्रमशः (कृपू सामर्थ्य' धातु से उत्तर) तास् (तथा सकारादि ऐच = ऐ, औ आगम होता है)। आर्धधातुक को इट् आगम नहीं होता, परस्मैपद परे रहते)। ताम्.. - III. iv. 101 ...तासिषु-VI. iv. 62 देखें-तान्तन्तामः III. iv. 101 . देखें-स्यसि VI. iv.62 ... तायनेषु -I. iii. 38 ...तासी-III. 1. 33 देखें-वृत्तिसर्गतायनेषु I. il. 38 देखें - स्यतासी III. 1. 33 ...तायि..-III. 1. 61 तास्यनुदात्तेन्दुिपदेशात् - VI. 1. 180 देखें-दीपजन III. 1.61 तासि प्रत्यय, अनुदात्तेत् धातु, डित् धातु तथा उपदेश तारकादिभ्यः -V.ii.36 में जो अवर्णान्त इनसे उत्तर (लकार के स्थान में जो (प्रथमासमर्थ संजात समानाधिकरण वाले) तारकादि सार्वधातुक प्रत्यय, वे अनुदात्त होते हैं, हुङ् तथा इङ् धातु प्रातिपदिकों से (षष्ठ्यर्थ में इतच प्रत्यय होता है)। को छोड़कर)। तार्य.. - IV. iv. 91 . . तास्वत् - VII. ii. 61 देखें - तार्यतुल्य० IV. iv. 91 (उपदेश में जो अजन्त धातु, तास् के परे रहते नित्य, तार्यतुल्यप्राप्यवध्यानाप्यसमसमितसम्मितेषु-IV. iv.91 अनिट्, उससे उत्तर) तास् के समान ही (थल को इट् आगम नहीं होता)। (तृतीयासमर्थ नौ, वयस्, धर्म, विष, मूल, मूल-सीता, -ति-II. 1. 36 तुला-इन आठ प्रातिपदिकों से यथासंख्य करके) तार्य. तुल्य, प्राप्य, वध्य, आनाम्य, सम, समित, सम्मित-इन (ल्यप् तथा) तकारादि (कित् आर्धधातुक) परे रहते (अद् आठ अर्थों में (यत् प्रत्यय होता है)। को जग्थ् आदेश होता है)। तालादिभ्यः - IV. iii. 149 ति... - III. iv. 107 (षष्ठीसमर्थ) तालादि प्रातिपदिकों से (विकार और अक्- देखें-तियोः III. iv. 107 . यव अर्थों में अण् प्रत्यय होता है)। ...ति... -V. 1. 138 देखें-बमयुसov.ii. 138 तावतिथम् - V. 1.77 (ग्रहण क्रिया के समानाधिकरणवाची) पूरणप्रत्ययान्त ....ति... - VI.1.66 प्रातिपदिक से (स्वार्थ में कन् प्रत्यय होता है तथा पूरण देखें-सुतिसि VI. 1.66 प्रत्यय का विकल्प से लुक भी होता है)। ति-VI. 1. 123 तास... - VII. iv. 50 (दा के स्थान में हुआ) जो तकारादि आदेश,उसके परे रहते (इगन्त उपसर्ग को दीर्घ होता है)। देखें - तासस्त्योः VII. 17.50 .
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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