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________________ तस्मात् 296 तस्मात् -VI.1.99 तस्य-IV. 1.68 उस 'प्रथमयोः पूर्वसवर्णः सूत्र से दीर्घ किये हुये पूर्व- षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिकों से (निवास अर्थ में देश का सवर्ण दीर्घ से उत्तर (शस के अवयव सकार को नकार' नाम गम्यमान होने पर यथाविहित प्रत्यय होता है)। आदेश होता है, पुंल्लिङ्ग में)। . तस्य - IV. iii.66 तस्मात् - VI. iii. 73 षष्ठीसमर्थ (व्याख्यान किये जाने योग्य) जो प्रातिपदिक, उस लुप्त (नज) वाले नकार से उत्तर (नुट् का आगम उनसे (व्याख्यान अभिधेय होने पर तथा सप्तमीसमर्थ होता है, अजादि शब्द के उत्तरपद रहते)। व्याख्यातव्यनामवाची शब्दों से भी भवार्थ में यथाविहित तस्मात् - VII. iv.1 प्रत्यय होते है)। अभ्यास के दीर्घ हुये आकार से उत्तर (दो हल् वाले तस्य- IV. iii. 119 अङ्ग को नुट आगम होता है)। षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिक से (यह अर्थ में यथाविहित तस्मिन् - I. 1.65 प्रत्यय होता है)। सप्तमी विभक्ति (से निर्देश किया हुआ जो शब्द,उससे तस्य-Vii. 131 अव्यवहित पूर्व को ही कार्य होता है)। षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिक से विकार अर्थ में यथाविहित तस्मिन् - IV. ill.2 प्रत्यय होता है)। उस खब(तथा अण प्रत्ययो के परे रहते (यष्मद.अस्मद के स्थान में यथासङ्ख्य करके युष्माक, अस्माक आदेश षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिक से (धर्म्य अर्थ में ठक् प्रत्यय होते है)। होता है)। तस्मै -V..5 तस्य -V.i.37 चतर्थीसमर्थ प्रातिपदिक से (हित' अर्थ में यथाविहित षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिकों से (कारण अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है)। प्रत्यय होते हैं, यदि वह कारण संयोग वा उत्पात हो तस्मै -V.1. 100 तो)। चतुर्थीसमर्थ (सन्तापादि) प्रातिपादिकों से (शक्त है' तस्य -V.1.41 अर्थ में यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है)। षष्ठीसमर्थ (सर्वभूमि तथा पृथिवी प्रातिपदिकों से तस्य-I. ii. 32 'स्वामी' अर्थ में यथासङ्ख्य अण् तथा अञ् प्रत्यय होते उस स्वरित अच के (आदि की आधी मात्रा उदात्त और है)। शेष अनुदात्त होती है)। तस्य - V.i. 44 तस्य-I. iii.9 षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिकों से (खेत' अर्थ वाच्य होने पर उस इत्सज्ञक वर्ण का (लोप होता है)। यथाविहित प्रत्यय होते है)। तस्य-IV. 1. 92 तस्य-v.i. 94 षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिकों से (अपत्य अर्थ को कहना हो षष्ठीसमर्थ (यज्ञ की आख्या वाले) प्रातिपदिकों से (भी तो यथाविहित प्रत्यय होता है)। 'दक्षिणा' अर्थ में यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है)। तस्य - IV. ii. 36 तस्य-v.i. 115 (समथों में) जो (प्रथम) षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिक, उससे (सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिक से तथा) षष्ठीसमर्थ प्रातिप(समूह अर्थ को कहना हो तो यथाविहित प्रत्यय होता है)। दिक से (समान' अर्थ में वति प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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