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________________ ठन् 277 ठन्-IV. iv.42 (द्वितीयासमर्थ प्रतिपथ प्रातिपदिक से 'जाता है' अर्थ में) ठन् (तथा ठक्) प्रत्यय (होते हैं)। ठन् - IV. iv.70 (सप्तमीसमर्थ अगार अन्त वाले प्रातिपदिकों से 'नियुक्त' अर्थ में) ठन् प्रत्यय होता है। ठन्... - V.1.21 देखें- ठन्यतौ v.1.21 ठन् - V. 1.47 (प्रथमासमर्थ पूरणवाची प्रातिपदिकों से तथा अर्ध प्रातिपदिक से) सप्तम्यर्थ में ठन् प्रत्यय होता है, (यदि 'वृद्धि' = के रूप में दिया जाने वाला द्रव्य, 'आय' = जमींदारों का भाग, 'लाभ' = मूल द्रव्य के अतिरिक्त प्राप्य द्रव्य, शुल्क' = राजा का भाग तथा 'उपदा' = घूस 'दिया जाता है' क्रिया के कर्मवाच्य हों तो)। ठन्.. --V.1.50 देखें - ठन्कनौ V. 1. 50 ठन् -V.I. 83. (षण्मास प्रातिपदिक से अवस्था अभिधेय न हो तो) ठन् प्रत्यय (तथा ण्यत् प्रत्यय होते हैं, हो चुका' अर्थ में)। ...ठनौ-v.ii. 85 देखें - इनिठनौ v. ii. 85 ...ठनौ-V.II. 115 देखें - इनिठनौ V. 1. 115 ठन्कनौ-v.1.50 (द्वितीयासमर्थ वस्न और द्रव्य प्रातिपदिकों से 'हरण करता है','वहन करता है' और 'उत्पन्न करता है' अर्थों में यथासङ्ख्य) ठन् और कन् प्रत्यय होते हैं। ठन्यतौ -V.1.21 (शत प्रातिपदिक से भी आीय अर्थों में) ठन और यत् प्रत्यय होते हैं.(यदि सौ अभिधेय न हो तो)। ठप - IV. iii. 26 (सप्तमीसमर्थ प्रावष प्रातिपदिक से 'उत्पन्न हुआ' अर्थ में) ठप् प्रत्यय होता है। ठस्य - VII. Ill. 50 . (अङ्ग के निमित्त) ठ को (इक आदेश होता है)। ठाजादौ - V. iii.83 (इस प्रकरण में कथित) ठ तथा अजादि प्रत्ययों के परे रहते द्वितीय अच से बाद के शब्दरूप का लोप हो जाता है। 3-प्रत्याहारसूत्र x भगवान् पाणिनि द्वारा अपने दशम प्रत्याहार सूत्र में पठितं चतुर्थ वर्ण। पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का अट्ठाइसवां वर्ण। P-III. I. 48 (अन्त, अत्यन्त, अध्व, दूर, पार. सर्व. अनन्त कर्मों के उपपद रहते गम् धातु से) ड प्रत्यय होता है। P-III. 1.97 (जन् धातु से सप्तम्यन्त उपपद रहते) भूतकाल में ड प्रत्यय होता है। -V.ii.45 . (प्रथमासमर्थ दशन् शब्द अन्तवाले प्रातिपदिक से सप्तम्यर्थ में) ड प्रत्यय होता है, (यदि वह प्रथमासमर्थ अधिक समानाधिकरण वाला हो तो)। R-VIII. iii. 29 डकारान्त पद से उत्तर (सकारादि पद को विकल्प से धु का आगम होता है)। -III. 1. 97 (सप्तम्यन्त उपपद हो तो जन् धातु से) ड प्रत्यय होता है। उच् -V.iv.73 (बहु तथा गण शब्द अन्त में नहीं है जिसके, ऐसे सङ्ख्येय अर्थ में वर्तमान बहुव्रीहिसमासयुक्त प्रातिपदिक से) डच् प्रत्यय होता है। छट् - V.II. 48 (षष्ठीसमर्थ सङ्ख्यावाची प्रातिपदिकों से 'पूरण' अर्थ में) डट् प्रत्यय होता है।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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