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________________ जीत 271 जीतः - III. 11.156 ज्य: -IV. iv.90 जिजिसका इत्संज्ञक हो, ऐसी धातु से (वर्तमानकाल में (तृतीयासमर्थ गृहपति शब्द से संयुक्त अर्थ में) ज्य क्त प्रत्यय होता है)। प्रत्यय होता है, (सज्ञा विषय में)। जे-VI. 1.70 ज्य - V.1.14 (श्येन तथा तिल शब्द को पात शब्द के उत्तरपद रहते (चतुर्थीसमर्थ विकृतिवाची ऋषभ और उपानह प्रातिपतथा) व प्रत्यय के परे रहते (मुम् आगम होता है)। दिकों से उसकी विकृति के लिए प्रकृति' अभिधेय होने परे 'हित' अर्थ में) ज्य प्रत्यय होता है। ... đ – V . 105 • देखें- अध्यौ ... 105 ज्यः -V.III. 112 ष्णिति - VII. I. 115 (प्रामणी यदि पूर्व अवयव न हो जिसके ऐसे पूगवाची (अजन्त अजों को) जित, णित् प्रत्यय परे रहते (वृद्धि प्रातिपदिकों से) ज्य प्रत्यय होता है, (स्वार्थ में)। होती है)। ज्य -V.iv.23 मिति - VI.. 191 (अनन्त, आवसथ, इतिह तथा मेषज् प्रातिपदिकों से स्वार्थ में) ज्य प्रत्यय होता है। बकार इत्सज्जक तथा नकार इत्सजक प्रत्ययों के परे । रहते (नित्य ही आदि को उदात्त होता है)। .. ज्य-V.iv. 26 जिनेषु - VIL ill.54 (अतिथि प्रातिपदिक से 'उसके लिये यह अर्थ में) ज्य (हन् धातु के हकार के स्थान में कवर्गादेश होता है) प्रत्यय होता है। जित्, णित् प्रत्यय तथा नकार परे रहते। ज्यङ्-IV. 1. 169 ..ज्य....-IV.1.79 . (क्षत्रियाभिधायी,जनपदवाची,वृद्धसंज्ञक,इकारान्त तथा -देख-दुष्छण्कठ० IV.ii.79 कोसल और अजाद प्रातिपदिकों से अपत्य अर्थ में) व्यङ् ज्य - IV. iii. 58 प्रत्यय होता है। (सप्तमीसमर्थ गम्भीर प्रातिपदिक से भव अर्थ में) ज्य ज्यट-v.i प्रत्यय होता है। (वाहीक देशविशेष में शस्त्र से जीविका कमाने वाले ज्य-IVili.84 पुरुषों के समूहवाची प्रातिपदिकों से स्वार्थ में)ज्युट् प्रत्यय (पञ्चमीसमर्थ विदुर शब्द से 'प्रभवति' अर्थ में) ज्य होता है.(बाह्मण और राजन्य शब्द को छोड़कर)। प्रत्यय होता है। ज्यादयः-v.iii. 119 ज्यः - IV. 1.92 (प्रथमासमर्थ शुण्डिकादि प्रातिपदिकों से 'इसका अभि ज्यादि प्रत्ययों की (तद्राजसंज्ञा होती है)। जन' इस अर्थ में) ज्य प्रत्यय होता है। ज्युट -III. ii, 65 ज्य: - IV. iii. 128 (वह' धातु से कव्य, पुरीष और पुरीष्य (सुबन्त उपपद (षष्ठीसमर्थ छन्दोग, औक्थिक याज्ञिक,बहुच तथा नट रहते वेदविषय में) ज्युट प्रत्यय होता है । प्रातिपदिकों से 'इदम्' अर्थ में) ज्य प्रत्यय होता है।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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