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________________ झलि 270 झलि - VIII. iii. 24 (अपदान्त नकार को तथा चकार से मकार को भी) झल् परे रहते (अनुस्वार आदेश होता है)। ...झलो: -VI. iv. 15 देखें- क्विझलो: VI. iv. 15 ...झलो: -VI. iv. 42 देखें-सज्झलो: VI. iv. 42 ...झल्ल्यः - VI. iv. 101 देखें-हुझल्थ्य: VI. iv. 101 झशि -VIII. iv. 51 . (झलों के स्थान में)झश् परे रहते (जश् आदेश होता है)। झस्य -III. iv. 105 (लिङादेश) झ के स्थान में रन आदेश होता है)। झव:-VIII. ii.40 झष से उत्तर (तकार तथा थकार को धकारादेश होता है किन्तु डुधाञ् धातु से उत्तर धकारादेश नहीं होता)। झपन्तस्य - VIII. ii. 37 (धातु का अवयव) जो (एक अच् वाला तथा) झपन्त, उसके (अवयव वश् के स्थान में भष् आदेश होता है, झलादि सकार तथा झलादि ध्व शब्द के परे रहते एवं पदान्त में)। ...झि... - III. iv. 78 देखें- तिप्तस्झि० III. iv. 78 'झे: - III. iv. 108 लिङादेश) झि को (जुस आदेश हो जाता है)। ञ्-प्रत्याहारसूत्र VIII अ: -IV. ii.57 (प्रथमासमर्थ क्रियावाची घजन्त प्रातिपदिक से आचार्य पाणिनि द्वारा अपने अष्टम प्रत्याहारसूत्र में । म्यर्थ में) ब प्रत्यय होता है। . इत्सज्ञार्थ पठित वर्ण। जः - IV. 1. 106 ... -VI. i. 191 (असंज्ञा में वर्तमान दिशावाची शब्द पूर्वपद में है जिस देखें-जिति VI.i. 191 प्रातिपदिक के.ऐसे दिक्पूर्वपद प्रातिपदिक से शैषिक)ब अ... -VII. ii. 115 प्रत्यय होता है। देखें-णिति VII. ii. 115 जि.... -I. iii.5 देखें-जिटुडक: I. iii.s . ज्.. - VII. ii. 54 जिटुडवः - I. iii.5 देखें-णिन्नेषु VII. iii. 54 (उपदेश के आदि में वर्तमान) जि,टु और डु (इत्सज्ज्ञक ज-प्रत्याहारसूत्र VII होते हैं। भगवान् पाणिनि द्वारा अपने सप्तम प्रत्याहारसूत्र में ...विठौ-IV.ii. 115 पठित प्रथम वर्ण। देखें - ठबिठौ IV. ii. 115 . पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला ...जितः -I.iii.72 का पन्द्रहवां वर्ण। देखें- स्वरितजितः I. iii. 72 अ-IV. iv. 129 ...जितः -II. iv.58 (प्रथमासमर्थ मघ प्रातिपदिक से मत्वर्थ में मास औरतन देखें- ण्यक्षत्रियार्ष० II. iv. 58 ले लिया. . प्रत्ययार्थ विशेषण हों तो)ज (और यत्) प्रत्यय (होते है)। जित - IV. ii. 152 ज-v.ili. 50 (विकार और अवयव अर्थों में विहित) जो जित् प्रत्यय, .. (भाग अर्थ में वर्तमान षष्ठ और अष्टम शब्दों से) ब तदन्त (षष्ठीसमर्थ) प्रातिपदिकों से (भी विकार और अवप्रत्यय (तथा अन् प्रत्यय होते हैं,वेदविषय को छोड़कर)। यव अर्थों में ही अञ् प्रत्यय होता है)। ।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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