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________________ जन्या : 262 - त) रमजादरा हानाहा जन्याः - IV. iv. 82 ...जय्यौ-VI.1.78 (द्वितीयासमर्थ) जनी (वध) प्रातिपदिक से (संज्ञा गम्य- देखें-क्षय्यजय्यौ VI.1.78 . मान होने पर 'ढोता है' अर्थ में यत् प्रत्यय होता है)। जर... -VI. 1. 116 देखें-जरमरमित्र VI. I. 116 ' ...जप..-III. 1.24 ...जरत् -II. I. 48 देखें-लुपसदचर III. I. 24 देखें-पूर्वकालैकसर्वजरत्० II.1.48 ...जप.. -III. 1. 166 ...जरतीभिः -II.1.66 देखें-यजज्पदशाम् III. 1. 166 देखें-खलतिपलितवलिन० II.1.66 जप.. -VII. iv.86 जरमरमित्रमृताः – VI. ii. 116 देखें-अपजम VII. iv.86 (न से उत्तर) जर,मर,मित्र,मृत- इन उत्तरपद शब्दों.. जपपमदहदशमञ्जपशाम् - VII. iv.86 को (बहुव्रीहि समास में आधुदात्त होता है)। . जप,जभी,दह,दश, भञ्ज पश-इन अङ्गों के (अभ्यास जरस् - VII. II. 101 को भी नुक् आगम होता है)। (जरा शब्द को अजादि विभक्तियों के परे रहते विकल्प' . ...जपोः - III. I. 13 से) जरस आदेश होता है। देखें - रमिजपोः III. II. 13 जरायाः - VII. I. 101 ....जपो: -III. III.61 जरा शब्द को (अजादि विभक्तियों के परे रहते विकल्प देखें-व्यधजयोः III. 11.61 से जरस् आदेश होता है)। ...जभ.. -III.1.24 जल्प.. -III. 1. 155 देखें- लुफ्सदचर० III. 1. 24 देखें-जल्पभिक्ष. III. I. 155 ...जभ... -VII. iv.86 जल्पभिक्षकुट्टलुण्टबङ - III. I. 155 देखें- जपजम VII. iv.86 जल्प,भिक्ष,कुट्ट,लुण्ट,वृक-इन धातुओं से (तच्छी...जभोः -VII.1.61 लादि कर्ता हो तो वर्तमानकाल में पाकन् प्रत्यय होता . देखें- रविवभोः VII.I.61 ...जल्प..-IV. 1.97 .. जम्ब्या : - IV. iii. 162 देखें-करणजल्पकषु V.iv..97 (षष्ठीसमर्थ) जम्ब् प्रातिपदिक से (विकार अर्थ में फल .. अभिधेय हो तो विकल्प से अण् प्रत्यय होता है)। वेग अभिधेय होने पर(पञ् परे रहते ‘स्यद' शब्द निपाजम्मा - V. iv. 125 तन किया जाता है)। (बहव्रीहि समास में स, हरित. तण तथा सोम शब्दों ....जश्... - I. 1.57 से उत्तर) जम्मा शब्द अनिअत्ययान्त निपातन किया __ देखें - पदान्तद्विवचनवरे I. 1.57 जाता है। . जश्.. - VII. I. 20 जम्भा = जबड़ा। जयः -VI. I. 196 देखें-अश्शसो: VII. 1. 20 (करणवाची) जय शब्द (आधुदात्त होता है)। जश्-VIII. iv. 52 जयति - IV. iv.2 (झलों के स्थान में झश् परे रहते) जश् आदेश होता है। (तृतीयासमर्थ प्रातिपदिक से खेलता है', 'खोदता है. जश-VIII. I. 39 'जीतता है',(जीता हुआ- अर्थों में ठक् प्रत्यय होता है)। (पद के अन्त में वर्तमान झलों को)जश् आदेश होता हैं।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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