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________________ ...जन... 261 ...जन्य... ...जन.. -VI. iv.98 ...जनपदैकदेशात् - IV. 1.7 देखें-गमहन०VI. iv.98 देखें - प्रामजनपदैकदेशात् M. iii.7 ...जनः -III. ii. 171 जनसनखनक्रमगमः -III. 1.67 देखें- आद्गम III. I. 171 जन, सन, खन,क्रम, गम्-इन धातुओं से (सुबन्त जनपद... -IV. ii. 124 उपपद रहते वेदविषय में विट प्रत्यय होता है)। देखें-जनपदतदवध्योश्च IV. 1. 124 ...जनपद... -VI. iii. 84 जनसनखनाम् -VI. iv.42 देखें-ज्योतिर्जनपदO VI. II. 84 जन.सन.खन -इन अङ्गी को (आकारादेश हो जाता जनपदतदवथ्योः - IV.ii. 123 है. झलादि सन तथा झलादि कित,डित परे रहते)। जनपद तथा जनपद अवधि के कहने वाले (वृद्धसंज्ञक ...जनिष्यः -II. iv. 80 प्रातिपदिकों से भी शैषिक वुञ् प्रत्यय होता है)। देखें-घसरणशo II. iv.80 जनपदवत् -IV. iii. 100 जनि.. -VII. iill. 35 (बहवचन-विषय में वर्तमान जो जनपद के समान ही देखें-जनिवध्यो: VII. iii. 35 क्षत्रियवाची प्रातिपदिक,उनको) जनपद की भांति (ही सारे जनिक -I. iv. 30 कार्य हो जाते है। जन्यर्थ = जन्म का जो कर्ता = उत्पन्न होने वाला, जनपदशब्दात् -V.1.166 उसकी (जो प्रकृति = उपादानकारण, उस कारक की जनपद को कहने वाले (क्षत्रिय अभिधायक) प्रातिपदिक ___ अपादान संज्ञा होती है)। से (अपत्य अर्थ में अञ् प्रत्यय होता है)। जनिता-VI.4,53 जनपदस्य - VII. Hi. 12 (मन्त्र-विषय में) इडादि तच परे रहते 'जनिता' शब्द (स.सर्व तथा अर्द्ध शब्द से उत्तर) जनपदवाची उत्तरपद निपातित होता है। शब्द के (अचों में आदि अच् को तद्धित बित् णित् तथा ...जनिभ्यः -II. iv. 80 कित् प्रत्यय परे रहते वृद्धि होती है)। देखें-घसरण II.iv.80 ...जनपदाख्यान... - VI. ii. 103 ...जनिभ्यः -III. iv. 16 देखें-स्थे त III. iv. 16 देखें - ग्रामजनपदा० VI. ii. 103 जनिवथ्यो: -VII. I. 35 जनपदिनाम् - IV. iii. 100 (जन तथा वध अङ्ग को भी चिण तथा वित्, णित् कृत् (बहवचन विषय में वर्तमान जो जनपद के समान ही) परे रहते जो कहा गया, वह नहीं होता)। क्षत्रियवाची प्रातिपदिक, उनको (जनपद की भांति ही सारे जन-III. 1.97 कार्य हो जाते है)। 'जन्' धातु से (सप्तम्यन्त उपपद रहते 'ड' प्रत्यय होता जनपदेन -IV.lii. 100 है), भूतकाल में। (बहुवचन-विषय में वर्तमान जो) जनपद के समान (ही क्षत्रियवाची प्रातिपदिक,उनको जनपद की भांति ही सारे ...जनो: - VII. ii. 78 कार्य हो जाते हैं)। देखें-ईडजनो: VII. 1.78 जनपदे-IV. ii. 80 ...जनो: - VII. III. 79 देखें-शनो : VII. III. 79 (ड्यन्त, आबन्त प्रातिपदिक से देश-सामान्य में जो चातुरर्थिक प्रत्यय उसका) प्रान्तविशेष को कहना हो तो ...जन्य.. -III. iv. 68 (लुप हो जाता है)। देखें- भव्यगेय III. iv. 68
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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