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________________ 249 चिण... - VII. I. 69 चित: -VI. i. 157 देखें -चिण्णमुलो: VII I. 69 . चकार इत् वाले समुटित शब्द को (अन्तोदात्त होता है)। चिण...-VII: iii. 33 चिततूलभारिषु - VI. iii. 64 देखें-चिण्कृतो: VII. iii. 33 (इष्टका, इषीका,माला-इन शब्दों को) चित,तूल तथा ..चिण... - VII. iii. 85 भारिन् शब्दों के उत्तरपद रहते (यथासङ्ख्य करके हस्व देखें-अविचिण VII. iii. 85 हो जाता है)। चिण: -VI. iv. 104 ...चिति... -III. iii. 41 चिण से उत्तर (प्रत्यय का लुक् हो जाता है)। देखें-निवासचिति III. iii. 41 चिणि - VI. iv. 33 चिते: - VI. iii. 126 (भङ्ग अङ्ग के नकार का लोप भी विकल्प से होता है) (कप् परे रहते) चिति शब्द को (दीर्घ हो जाता है,संहिताचिण् प्रत्यय परे रहते। विषय में)। ...चिणौ -III.i. 89 चितवति -v.i.88 देखें-यक्विणौ III. 1.89 चित्तवान् = चेतन प्रत्ययार्थ के अभिधेय होने पर (द्वितीचिण्कृतो: - VII. iii: 33 यासमर्थ वर्षशब्दान्त द्विगुसज्ञक प्रातिपदिकों से 'सत्का(आकारान्त अङ्गको)चिण् तथा (जित,णित) कृत् प्रत्यय रपूर्वक व्यापार', 'खरीदा हुआ', 'हो चुका' तथा 'होने परे रहते (युक् आगम होता है)। वाला'- इन अर्थों में उत्पन्न प्रत्यय का नित्य ही लुक चिण्णमुलो: - VI. iv. 93 होता है)। (मित अज की उपधा को) चिणपरक तथा णमुलपरक चित्तवत्कर्तृकात्-I. iii. 88 . (णि परे रहते विकल्प से दीर्घ होता है)। (अण्यन्तावस्था में अकर्मक तथा) चेतन कर्ता वाले धात विण्णमुलो: - VII. I. 69 से (ण्यन्तावस्था में परस्मैपद होता है)। . (लम् अङ्ग को) चिण् तथा णमुल् प्रत्यय परे रहते चित्तविरागे - VI. iv. 91 (विकल्प से नुम् आगम होता है)। चित्त के विकार अर्थ में (दोष अङ्ग की उपधा को णि चिण्वत् - VI. iv. 62 परे रहते विकल्प से ऊकारादेश होता है)। (भाव तथा कर्मविषयक स्य, सिच, सीयुट् और तास् चित्य... - III. 1. 132 के परे रहते उपदेश में अजन्त धातुओं तथा हन.ग्रह एवं देखें-चित्याग्निचित्ये III. I. 132 दृश धातुओं को) चिण के समान (विकल्प से कार्य होता चित्याग्निचित्ये-III. 1. 132 है, तथा इट् आगम भी होता है)। (अग्नि अभिधेय है तो) चित्य तथा अग्निचित्या शब्द ...चित्... - VI. ii. 19 भी निपातन किये जाते हैं। देखें-भूवाक् VI. ii. 19 .. . ...चित्र..-III. ii. 21 ..चित्... - VIII. 1.57 देखें-दिवाविभा० III. ii. 21 देखें-चनचिदिव० VIII. 1.57 ....चित्रडा -III. I. 19 देखें- नमोवरिवश्चित्रहः III. 1. 19 वित् - VIII. ii. 101 चित्रीकरणे- III. Iii. 150 'चित् (यह निपात भी जब उपमा के अर्थ में प्रयुक्त हो आश्चर्य गम्यमान हो तो (भी यच्च, यत्र उपपद रहते तो वाक्य के टि को अनुदात्त प्लुत होता है)। धातु से लिङ् प्रत्यय होता है)। चित... -VI. iii.64 ...चिद्.. -VIII. 1.57 देखें-चिततूलभारिषु VI.ili.64 देखें-चनचिदिवगोत्रादिO VIII. 1.57 परस्मैपद होतानकर्ता वाले की वित्तविराम
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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