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________________ 240 च-VII. iii. 21 च-VII. iii. 83 (देवतावाची द्वन्द्व समास में) भी (पूर्वपद तथा उत्तरपद (जुस् प्रत्यय परे रहते) भी (इगन्त अङ्ग को गुण होता के अचों में आदि अच् को जित्, णित् तथा कित् है)। तद्धित परे रहते वृद्धि होती है)। च -VII. iii. 86 च-VII. iii. 23 (पुक् परे रहने पर तत्समीपस्थ अङ्ग के इ८ को तथा (दीर्घ से उत्तर) भी (वरुण शब्द के अचों में आदि अच् लघसज्जक इक उपधा को) भी (सार्वधातुक ताँ आर्ध-. को वृद्धि नहीं होती)। धातुक परे रहते गुण हो जाता है)। च -VII. iii. 29 च-VII. iii.98 (तत् = ढक् प्रत्ययान्त प्रवाहण अङ्गके उत्तरपद के अचों में आदि अच को) भी (वृद्धि होती है, पूर्वपद को तो (रुदिर् इत्यादि पाँच धातुओं से उत्तर) भी (हलादि विकल्प से होती है; जित्,णित.कित.तद्धित परे रहते)। अपृक्त सार्वधातुक को ईट च - VII. iii. 35 च-VII. iii. 102 (जन तथा वध अङ्ग को) भी (चिण तथा जित्, णित् (अकारान्त अङ्ग को यज्ञादि सुप् परे रहते) भी (दीर्घ कृत् परे रहते उपधा को वृद्धि नहीं होती)। होता है)। . च-VII. iii. 48 च-VII. iii. 104 (अभाषितपुंस्क शब्द से विहित प्रत्ययस्थ ककार से पूर्व (ओस परे रहते) भी (अकारान्त अङ्ग को एकारादेश अकार, उसको नपूर्व होने पर) और (अनपूर्व होने पर होता है। भी उदीच्य आचार्यों के मत में इकारादेश नहीं होता है)। च -VII. iii. 105 च-VII. iii. 52 (आबन्त अङ्ग को आङ् = टा परे रहते) तथा (ओस् परे देखें-चजोः -VII. iii. 52 रहते एकारादेश होता है)। च - VII. iii. 53 च-VII. iii. 106 (न्यख-आदि-गणपठित शब्दों के चकार,जकार को) भी (सम्बुद्धि परे रहते) भी (आबन्त अङ्ग को एकारादेश (कवर्ग आदेश होता है)। होता है)। च-VII. iii. 55 (अभ्यास से उत्तर) भी (हन घात के हकार को कवर्गादेश। -च-VII. iii. 109 होता है)। (जस् परे रहते) भी (हस्वान्त अङ्ग को गुण होता है)। च-VII. iii. 58 च - VII. iii. 114 (अभ्यास से उत्तर) चि अङ्ग को विकल्प से कवर्गादेश । (आबन्त सर्वनाम अङ्ग से उत्तर ङित् प्रत्यय को स्याट् होता है,सन् तथा लिट् परे रहते)। आगम होता है) तथा (उस आबन्त सर्वनाम को ह्रस्व भी च -VII. iii.60 हो जाता है)। (अज तथा व्रज धातुओं के जकार को) भी (कवर्गादेश च-VII. iii. 119 नहीं होता)। (इकारान्त, उकारान्त अङ्ग से उत्तर ङि को औकारादेश च - VII. iii. 66 होता है,) तथा (घिसञक को अकारादेश होता है)। (यज, ट्याच,रुच, प्रपूर्वक वच,ऋच-इन अङ्गों के च-VII. iv.4 चकार, जकार को) भी (ण्य प्रत्यय परे रहते कवर्गादेश (पा पाने' अङ्गकी उपधा का चङ्परक णि परे रहते नहीं होता)। लोप होता है) तथा (अभ्यास को ईकारादेश होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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