SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 238 च - VI. iv. 159 (बहु शब्द से उत्तर इष्ठन् को यिट् आगम होता है) तथा (बहु शब्द को भू आदेश भी होता है)। च - VI. iv. 165 (गाथिन्, विदथिन्, केशिन्, गणिन्, पणिन् — इन अ को) भी (अण् परे रहते प्रकृतिभाव हो जाता है)। च - VI. iv. 166 (संयोग आदि में है, जिस 'इन्' के, उसको) भी (अण् परे रहते प्रकृतिभाव हो जाता है)। च - VI. iv. 168 (भाव तथा कर्म से भिन्न अर्थ में वर्तमान यकारादि तति के परे रहते) भी (अन् अन्त वाले भसञ्ज्ञक अङ्ग को प्रकृतिभाव हो जाता है) । च - VII. 1. 19 (नपुंसक अङ्ग से उत्तर) भी ( औ = औ तथा औट् के स्थान में शी आदेश होता है)। च - VII. 1. 32 (युष्मद्, अस्मद् अङ्ग से उत्तर पञ्चमी विभक्ति के एकवचन के स्थान में) भी (अत् आदेश होता है)। च - VII. 1. 43 (वेद-विषय में 'यजध्वैनम्' यह शब्द ) भी ( निपातन किया जाता है)। च - VII. 1. 45 (त के स्थान में तप्, तनपू, तन, थन आदेश) भी (होते हैं, वेद-विषय में)। च - VII. 1. 48 (वेद - विषय में 'इष्ट्वीनम्' यह शब्द) भी (निपातन किया जाता है। च - VII. 1. 49 (स्नात्वी इत्यादि शब्द) भी (वेद-विषय में निपातन किये जाते हैं। च - VIII. 1. 51 (पूङ - धातु से उत्तर) भी (त्क्वा तथा निण्ठा को इट् आगम विकल्प से होता है। च - VII. 1. 55 (षट्-सव्ाक तथा चतुर् शब्द से उत्तर) भी (आम् को नुट् का आगम होता है)। च - VII. 1. 64 (शप् तथा लिट्वर्जित अजादि प्रत्ययों के परे रहते 'डुलभष् प्राप्तौ' अङ्ग को) भी (नुम् आगम होता है)। च - VII. 1. 77 (द्विवचन विभक्ति परे रहते वेद-विषय में अस्थि, दधि, सक्थि अङ्गों को ईकारादेश होता है), और (वह उदात्त होता है। च - VII. 1. 94 (ऋकारान्त अङ्ग तथा उशनस्, पुरुदंसस्, अनेहस् अ को) भी ( सम्बुद्धि-भिन्न सु परे रहते अन आदेश होता है)। च - VII. 1. 96 (स्त्रीलिङ्ग में वर्तमान क्रोष्टु शब्द को) भी (तुजन्त शब्द के समान अतिदेश हो जाता है। च - VII. 1. 101 (धातु अङ्ग की उपधा ऋकार के स्थान में) भी (इकारादेश होता है। च - VII. 1. 9 - (ति, तु, त्र, थ, सि, सु, सर, क, स प्रत्ययों के परे रहते) भी (इट् आगम नहीं होता) । इन कृत्सञ्ज्ञक च - VII. 1. 12 (मह, गुह) तथा (उगन्त अनों को सन् प्रत्यय परे रहते इट् का आगम नहीं होता) । च - VII. 1. 16 (आकार-इत्सञ्ज्ञक धातुओं को) भी (निष्ठा परे रहते इट् आगम नहीं होता) । च - VII. 1. 25 (अभि उपसर्ग से उत्तर) भी (सन्निकट अर्थ में अर्द धातु से निष्ठा परे रहते इट् आगम नहीं होता) । च - VII. 1. 30 (अपचित शब्द) भी (विकल्प से निपातन किया जाता है)। च - VII. 11. 32 (वेद-विषय में अपरिहृताः शब्द) भी (बहुवचनान्त निपातन किया जाता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy