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________________ च - VI. iv. 62 (भाव तथा कर्मविषयक स्य, सिच, सीयुट् और तास् के परे रहते उपदेश में अजन्त धातुओं तथा हन्, ग्रह एवं दृश् धातुओं को चिण् के समान विकल्प से कार्य होता है), तथा (इट् आगम भी होता है)। च - VI. iv. 64 ' (इडादि आर्धधातुक) तथा (अजादि प्रत्ययों के परे रहते आकारान्त अङ्ग का लोप होता है)। च - VI. iv. 98 (इस्, मन्, त्रन् तथा क्वि प्रत्ययों के परे रहते) भी (छादि अङ्ग की उपधा को ह्रस्व होता है) 1 च - VI. iv. 100 (घस् तथा-भस् अङ्ग की उपधा का वेद-विषय में लोप होता है; हलादि) तथा (अजादि कित्, डित् प्रत्यय परे रहते) । च - VI. iv. 103 (अङित् हि को) भी (धि आदेश होता है, वेद-विषय में) । 237 च - VI. Iv. 84 ( वर्षाभू इस अङ्ग को ) भी ( अजादि सुप् परे रहते में यकारादेश तथा अभ्यास का लोप होता है)। यणादेश होता है)। च - VI. iv. 122 (तृ, फल, भज, त्रप – इन अङ्गों के अकार के स्थान में) भी (एकारादेश तथा अभ्यासलोप होता है; कित्, ङित्, लिट् तथा सेट् थल् परे रहते ) । च - VI. iv. 106 - (संयोग पूर्व में नहीं है जिससे ऐसा जो उकार, तदन्त - जो प्रत्यय, तदन्त अङ्ग से उत्तर) भी (हि का लुक् हो जाता है)। च - VI. iv. 107 (असंयोगपूर्व जो उकार, तदन्त इस प्रत्यय का विकल्प से लोप) भी होता है, मकारादि तथा वकारादि प्रत्ययों . के परे रहते)। च - VI. iv. 109 ( यकारादि प्रत्यय परे रहते) भी (कु अङ्ग से उत्तर उकार प्रत्यय का नित्य ही लोप होता है)। 1 - VI. iv. 116 ( ओहाक् त्यागे' अङ्ग को भी (इकारादेश विकल्प से होता है; हलादि कि, त् सार्वधातुक परे रहते) " च - VI. iv. 117 (ओहा अङ्गको विकल्प से आकारादेश होता है) तथा (इकार आदेश भी, हि के परे रहते) । च - VI. iv. 119 (घु-सञ्ज्ञक अङ्ग एवं अस् को एकारादेश) तथा (अभ्यास का लोप होता है; कित्, ङित् परे रहते) । च - VI. Iv. 121 (सेट् थल परे रहते) भी (अनादेशादि अङ्ग के दो असहाय हलों के मध्य में वर्त्तमान जो अकार, उसके स्थान च - VI. iv. 125 (फण् आदि सात धातुओं के अवर्ण के स्थान में) भी (विकल्प से एत्त्व तथा अभ्यासलोप होता है; कित्, ङित्, लिट् तथा सेट् थल परे रहते ) । च - VI. iv. 148 (भसञ्ज्ञक इवर्णान्त तथा अवर्णान्त अङ्ग का लोप होता है; ईकार) तथा (तद्धित के परे रहते) । च - VI. iv. 151 (हल से उत्तर भसञ्ज्ञक अङ्ग के अपत्यसम्बन्धी यकार का) भी (अनाकारादि तद्धित परे रहते लोप होता है)। च - VI. iv. 152 (हल से उत्तर अङ्ग के अपत्य सम्बन्धी यकार का क्य तथा च्चि परे रहते) भी (लोप होता है)। च - VI. iv. 156 (स्थूल, दूर, युव, ह्रस्व, क्षिप्र, क्षुद्र – इन अङ्गका पर जो यणादि भाग, उसका लोप होता है; इष्ठन्, इमनिच् और ईयसुन परे रहते) तथा (उस यणादि से पूर्व को गुण होता है)। च - VI. iv. 158 ( बहु शब्द से उत्तर इष्ठन्, इमनिच् तथा ईयसुन् का लोप होता है, और उस बहु के स्थान में भू आदेश) भी (होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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