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________________ अपात् । अपात् - IV. iv. 116 (सप्तमीसमर्थ) अग्र प्रातिपदिक से (वेद-विषयक भवार्थ में यत् प्रत्यय होता है)। . अग्रान्त.. -V. iv. 145 देखें- अप्रान्तशुद्ध. V. iv. 145 अग्रान्तशुद्धशुभवृषवराहेभ्य: - V. iv. 145, अग्रशब्दान्त तथा शुद्ध,शुभ्र,वृष और वराह शब्दों से उत्तर (भी दन्त शब्द को विकल्प से समासान्त दत आदेश होता है,बहुव्रीहि समास में)। अग्रामणीपूर्वात् - V.III. 112 . ग्रामणी = गाँव का मुखिया पूर्व अवयव न हो जिसके ऐसे (पूगवाची) प्रातिपदिकों से (ज्य प्रत्यय होता है.स्वार्थ ....अघस्य-VII. iv.37 देखें- अश्वाघस्य VII. iv. 37 अघो: - VI. iv. 113 (श्नान्त अङ्ग एवं) घुसंज्ञक को छोड़कर (जो अभ्यस्तसज्ज्ञक अङ्ग,उसके आकार के स्थान में ईकारादेश होता है हलादि कित्, ङित् सार्वधातुक परे रहते)। . ...अघोस्... - VIII. 11.17 देखें-भोभगो० VIII. iii. 17 अङ्-III.i. 52 (असु, वच और ख्या धातु से उत्तर कर्तृवाची लुङ् परे रहने पर चिल के स्थान में) अङ् आदेश होता है। अङ्-III. 1.86 (धातु से आशीर्वादार्थक लिङ् परे रहते वेद विषय में) अप्रत्यय होता है। अङ्-III. iii. 104 . (षकार इत्संज्ञक है जिनका, ऐसी धातुओं से स्त्रीलिङ्ग में) अप्रत्यय होता है,(कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में)। ...अङ्.. VI. 1. 176 देखें-गोश्वन VI. 1. 176 अङ्... VI. iv. 34 देखें- अइहलो: VI. iv.34 अङि-VII. iv. 16 (ऋवर्णान्त तथा दृशिर् अङ्ग को) अङ् प्रत्यय परे रहते (गुण होता है)। अडित:-VI. iv. 103 डिद-भिन्न हि) को (भी धि आदेश होता है,वेद विषय अग्रामाः-II. iv.7 (नदीवाची एवं) ग्रामवर्जित (देशवाची भिन्नलिङ्ग वाले) शब्दों का (द्वन्द्व एकवत् होता है)। अग्रे... -III. iv. 24 देखें- अप्रथमपूर्वेषु III. iv. 24 अप्रथमपूर्वेषु-III. iv. 24 अग्रे,प्रथम,पूर्व उपपद हों तो (समानकर्तृक पूर्वकालिक पातु से विकल्प से क्त्वा और णमुल प्रत्यय होते हैं.पक्ष में लडादि लकार होते हैं)। ...अग्रेभ्यः - VIII. iv. 4 देखें-पुरगामिश्रका VIII. iv. 4 ...अग्रेषु-III. 1. 18 देखें -पुरोऽग्रतो III. I. 18 अग्लोपि... - VII. iv.2 देखें-अग्लोपिशास्वृदिताम् VII. iv.2 अग्लोपिशास्वदिताम् - VII. iv.2 अक प्रत्याहार के किसी अक्षर का लोप हआ है जिस अङ्ग में,उसके तथा शासु अनुशिष्टौ एवं ऋदित अगों की (उपधा को चपरक णि परे रहते हस्व नहीं होता है)। अघष्....-II. iv.56 देखें-अघषपोः II. iv.56 अघषपोः -II. iv.56 घञ् और अप वर्जित (आर्धधातुक) परे रहते (अज् को वी आदेश होता है)। में)। ..अ... IV. iii. 126 देखें - सकाङ्कलक्षणेषु IV. iii. 126 ...अङ्कयो: -VIII. ii. 22 देखें-घाइयो: VIII. 1. 22 अश्वत् -IV. iii. 80 पञ्चमीसमर्थ गोत्रवाची प्रातिपदिकों से 'आगत' अर्थ में) अङ्ग अर्थ में होने वाले प्रत्ययों की तरह प्रत्ययविधि होती है। ...अन.. V. 1.7 देखें- पथ्यङ्ग V. 1.7 . .
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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