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________________ अगारान्तात् अगारान्तात् - IV. iv. 70 ( सप्तमीसमर्थ ) अगार अन्तवाले प्रातिपदिकों से नियुक्त' अर्थ में उन् प्रत्यय होता है)। अगारैकदेशे - III. iii. 79 गृह का एकदेश वाच्य हो तो (प्रघण और प्रमाण शब्द पूर्वन् धातु से अप् प्रत्यय और हन को घन आदेश कर्तृभिन्न कारक संज्ञा कर्म में निपातन किये जाते हैं) । अगार्ग्य... - VIII iv. 66 देखें - अगार्ग्यकाश्यपo VIII. Iv. 66 अगार्ग्यकाश्यपगालवानाम् - VIII. iv. 66 " (उदात्त उदय = परे है जिससे एवं स्वरित उदय = परे है जिससे ऐसे अनुदात्त को स्वरित आदेश नहीं होता) गार्ग्य, काश्यप तथा गालव आचार्यों के मत को छोड़कर। अगोत्रात् - IV. 1. 157 गोत्र से भिन्न जो (वृद्धसंज्ञक प्रातिपदिक), उससे (उदीच्य आचार्यों के मत में फिज प्रत्यय होता है)। अगोत्रादौ - VIII. 1. 69 गोत्रादि-गणपठित शब्दों को छोड़कर (निन्दावाची सुबन्तों के परे रहते भी सगतिक एवं अगतिक दोनों तिङन्तों को अनुदात्त होता है)। अगोपुच्छ.... V. i. 19 देखें- अगोपुच्छसंख्या० V. 1. 19 अगोपुच्छसंख्यापरिमाणात् - L. 19 (यहां से आगे 'तदर्हति' पर्यन्त कहे हुए अर्थों में सामान्यतया ठक् प्रत्यय अधिकृत होता है ) गोपुच्छ, संख्या तथा परिमाणवाची शब्दों को छोड़कर। अगौरादयः - VI. ii. 194 (उप उपसर्ग से उत्तर दो अच् वाले शब्दों को तथा अजिन शब्द को तत्पुरुष समास में अन्तोदात होता है), गौरादि शब्दों को छोड़कर । अग्नि ... - IV. 1. 37 देखें वृषाकप्यग्नि० IV. 1. 37 ... अग्नि... - IV. 1. 125 देखें - कच्छाग्निवक्त्रo IV. 1. 125 ...afafarer-III. i. 132 देखें - चित्याग्निचित्ये III. 1. 132 - - ... अग्निभ्यः - VIII. iit. 97 देखें अम्बाम्ब० VIII. III. 97 - 5 अग्राख्यायाम् अग्नीप्रेषणे - VIII. it. 92 अग्नीध् = यज्ञ का ऋत्विग्विशेष के प्रेषण = नियोजन करने में (पद के आदि को प्लुत उदात्त होता है तथा उससे परे को भी होता है, यज्ञकर्म में ) । ... अग्नीषोम ... IV. ii. 31 देखें द्यावापृथिवीशुनासीर० IV. II. 31 अमेIVIL 32 (प्रथमासमर्थ देवतावाची) अग्नि प्रातिपदिक से (षष्ठ्यर्थ में ढक प्रत्यय होता है)। अग्नेः - VI. iii. 26 (देवतावाची द्वन्द्व समास में सोम तथा वरुण शब्द उत्तरपद रहते) अग्नि शब्द को (ईकारादेश होता है)। अग्नेः - VIII. iii. 82 अग्नि शब्द से उत्तर (स्तुत्, स्तोम तथा सोम के सकार को समास में मूर्धन्य आदेश होता है )। अग्नौ - III. 1. 131 - अग्नि अभिधेय होने पर (परिचाय्य, उपचाय्य और समूह्य शब्दों का निपातन किया जाता है ) । अग्नौ - III. 1. 91 'अग्नि' कर्म उपपद रहते ('चिञ्' धातु से क्विप् प्रत्यय होता है, भूतकाल में)। अम्म्याख्यायाम् III. II. 92 अग्नि की आख्या = कथन गम्यमान होने पर (कर्म उपपद रहते 'चिञ्' धातु से कर्म कारक में 'क्विप्' प्रत्यय होता है, भूतकाल में ) । अप्रगामिनि VIII. iii. 92 (प्रष्ठ शब्द में षत्व निपातन है) अग्रगामी आगे चलने वाला अभिधेय हो तो । = - अग्रतस् ... - III. I. 18 .. देखें - पुरोप्रतो० III. ii. 18 319-- I. iii. 75 प्रन्थविषयक प्रयोग न हो तो ( सम्, उत् एवं आङ् उपसर्ग से उत्तर यम् धातु से आत्मनेपद होता है, यदि क्रिया का फल कतो को मिलता हो तो)। अप्राख्यायाम् - V. Iv. 93 प्रधान को कहने में वर्तमान (उरस्- शब्दान्त तत्पुरुष समासान्त टच् प्रत्यय होता है)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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