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________________ गद... 186 गत्वर = घुमक्कड़, अनित्य गन्यने-I. 1. 15 गद... -III. I. 100 गन्धन = चुगली करने अर्थ में वर्तमान (यम् धातु से देखें-गदमदOIII.. 100. परे सिच् कित्वत् होता है, आत्मनेपदविषय में)। गद... -III. 11.64 गन्धस्य-v.iv. 135 देखें- गदनद III. iii. 64 (उत्.पूति,सु तथा सुरभि शब्दों से उत्तर) गन्ध शब्द को गद... -VIII. iv. 17 (बहुव्रीहि समास में समासान्त इकारादेश होता है)। देखें- गदनद० VIII. iv. 17 ...गम... -III. 1. 154 गदनदपठस्वनः -III. iii. 64 देखें-लक्पत III. II. 154 (नि पूर्वक) मद,नद,पठ तथा स्वन् धातुओं से विकल्प ....गम.. -III. II. 171 से कर्तभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में अच् प्रत्यय होता देखें-आदगम III. 1. 171 है,पक्ष में घञ् होता है)। गम... - VI. iv.98 गदनदपतपदधुमास्यतिहन्तियातिवातिद्रातिप्सातिवपतिवहति । देखें-गमहनजनक VI. iv.98 • शाम्यतिचिनोतिदेग्धिषु-VIII. iv. 17 (उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर नि के नकार कोणकार गम... VII. 1.68 आदेश होता है); गद.नद.पत,पद,घुसंज्ञक,मा, षो,हन, देखें-गमहन VII. 1.68 या.वा.द्रा,प्सा,वप,वह,शम,चि एवं दिह धातुओं के परे गमः -I. 1. 13 रहते (भी)। . 'गम्ल गतौ' धातु से परे (झलादि लिङ्ग,सिच् आत्मनेपद गदमदचरयम -III. 1. 100 विषय में विकल्प से कित्वत् होते है)। (उपसर्गरहित) गद, मद, चर, यम् धातुओं से (भी यत् गमः -III. II. 46 प्रत्यय होता है)। (संज्ञा गम्यमान होने पर कर्म उपपद्र रहते) गम् धातु से गन्तव्य..-VI. II. 13 (भी खच प्रत्यय होता है)। देखें-गन्तव्यपण्यम् VI. II. 13 ...गमः -III. 1.67 गन्तव्यपण्यम् -VI. I. 13 देखें-जनसन III. 1.67 (वाणिज शब्द उत्तरपद रहते तत्पुरुष समास में) गन्तव्य- ...गमः-III. 1.58 वाची = जाने योग्य स्थानवाची तथा पण्यवाची = औ देखें-ग्रहदा सत III. II.58 क्रयविक्रययोग्य वस्तुवाची पूर्वपद को (प्रकृतिस्वर हो गमः -VI. iv. 40 जाता है)। (क्वि परे रहते) गम् के (अनुनासिक का लोप होता है)। गन्थन.. - I. il. 32 गमहनजनखनघसाम् -VI.IN.98 देखें- गन्धनावक्षेपणसेवनसाहO I. III. 32 गम,हन, जन,खन,घस्-इन अङ्गों की (उपधा का गन्थनावक्षेपणसेवनसाहसिक्यप्रतियत्मप्रकथनोपयोगेषु लोप हो जाता है। अभिन्न अजादि कित.डित् प्रत्यय I. iil. 32 परे हो तो)। गन्धन = चुगली करना,अवक्षेपण = धमकाना.सेवन = सेवा करना,साहसिक्य = जबरदस्ती करना,प्रतियल गमहनविदविशाम् - VII. I. 68 = किसी गुण को भिन्न गुण में बदलना.प्रकथन = बढ़ा गम्ल, हन, विद्ल, विश् - इन अङ्गों से उत्तर (वसु चढ़ाकर कहना तथा उपयोग = चर्मादि कार्य में को विकल्प से इट् का आगम होता है)। लगाना-इन अर्थों में वर्तमान (कृज धातु से आत्मनेपद ...गमाम् -VI. iv. 16 होता है)। देखें-अज्झनगमाम् VI. iv. 16 .
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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