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________________ ऊर्वष्ठीय, ... ऊर्वष्ठीव... - V. iv. 77 देखें - अचतुरo Viv. 77 ऊलोफ - III. iv. 32 (वर्षा का प्रमाण गम्यमान हो तो कर्म उपपद रहते ण्यन्त पूरी धातु से णमुल् प्रत्यय होता है, तथा इस पूरी धातु के ) ऊकार का लोप (विकल्प से) होता है। ऊ... - V. 1. 107 देखें - वसुषिमुष्कमध V. II. 107 ऊवसुषिमुष्कमध: - V. ii. 107 ऊ, सुषि, मुष्क तथा मधु प्रातिपदिकों से (मत्वर्थ' में र प्रत्यय होता है)। ऋ - प्रत्याहार सूत्र II - भगवान् पाणिनि द्वारा अपने द्वितीय प्रत्याहार सूत्र में पठित प्रथम वर्ण जो अपने सम्पूर्ण अठारह भेदों का ग्राहक होता है । - - पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का चौथा वर्ण । ऋ... - III. 1. 125 देखें - ऋहलो: III. 1. 125 .. ऋ... - III. it. 171 देखें - आदृगम० III. I. 171 ....... - VII. 1. 74 देखें स्मिपू० VII. li. 74 - ... ऋ... - VII. iv. 11 देखें ऋच्छत्कृताम् VII. I. 11 ऋ... - VII. iv. 16 देखें ऋ VII. Iv. 16 - ऋलृक् - प्रत्याहार सूत्र II पाणिनीय अष्टाध्यायी का द्वितीय प्रत्याहार सूत्र । इस सूत्र के ककार से तीन- अक्, इक् और उक् प्रत्याहार बनते हैं। ऋ से 18 प्रकार के और लृ से 12 प्रकार के भेदों का महण होता है। IV. iii. 72 देखें - ऋक्... - Viv. 73 देखें - ऋक्पूरब्यूo Viv. 73 ब्राह्मणo IV. lii. 72 128 .. ऊष्मभ्याम् - III. 1. 16 落 देखें उन्हते: - वायोव्यभ्याम् III. 1. 16 - - VII. iv. 23 (उपसर्ग से उत्तर) 'उह वितकें' अङ्ग को (यकारादि कित् हित् प्रत्यय परे रहते ह्रस्व होता है)। ॐ – I. 1. 16 - उञ् को ऊँ आदेश (प्रगृह्य सञ्ज्ञक होता है, शाकल्य के अनुसार)। उ३... - I. ii. 27 देखें - ऊकालः I. ii. 27 - ऋक्पूरव्यूः पथाम् V. Iv. 74 - ऋचि ऋक्, पुर, अप, धुर तथा पथिन् शब्द अन्त में है जिस (समास) के, तदन्त से (समासान्त अ प्रत्यय होता है, यदि वह पुर् अक्षसम्बन्धी न हो तो)। ऋक्षु - VIII. iii. 8 (नकारान्त पद को अम्परक छव् प्रत्याहार परे रहते ) पादयुक्त मन्त्रों में (दोनों प्रकार से होता है, अर्थात् एक पक्ष मेंरु एवं दूसरे पक्ष में नकार ही रहता है)। ... ऋक्साम्... - V. iv. 77 देखें अचतुरo Viv. 77 ऋगयनादिभ्यः - IV. iii. 73 (षष्ठीसमर्थ तथा सप्तमीसमर्थ व्याख्यातव्यनाम्) ऋगयनादि प्रातिपदिकों से (भव और व्याख्यान अर्थों में अण् प्रत्यय होता है)। - .. ऋग्यजुष... - Viv. 77 देखें - अचतुरo Viv. 77 ऋचः - VI. iii. 54 ऋचा सम्बन्धी (पाद शब्द को श परे रहते पद् आदेश होता है। - ... ऋचः VII. 1. 66 देखें - यजयाच० VII. 1. 66 ऋचि - IV. 1.9 (पादन्त प्रातिपदिक से स्त्रीलिङ्ग में टाप् प्रत्यय होता है), ऋचा वाच्य हो तो। fa-VI. iii. 132 (तु, नु, घ, मधु, तह, कु, त्र, उरुष्य इन शब्दों को) ऋचा विषय में (दीर्घ हो जाता है)। -
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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