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________________ इनी ... इनी - V. ii. 102 देखें - विनीनी Vii. 102 इनुण् - III. iii. 44 (अभिव्याप्ति गम्यमान हो तो धातु से भाव में) इनुण् प्रत्यय होता है। इनुण: - Viv. 15 इनुण् प्रत्ययान्त प्रातिपदिक से ( स्वार्थ में अण् प्रत्यय होता है। ...इनो - II. iii. 70 देखें - अकेनोः II. iii. 70 इन्द्र... - IV. 1. 48 देखें - इन्द्रवरुणभवo IV. 1. 48 .... इन्द्रजननादिभ्यः - IV. iii. 88 देखें - शिशुक्रन्दयमसभo IV. iii. 88 105 इन्द्रजुष्टम् - Vii. 93 'जीवात्मा के द्वारा सेवित' अर्थ में (इन्द्रियम् शब्द का निपातन किया जाता है)। इन्द्रदत्तम् - V. ii. 93 'ईश्वर के द्वारा दिया गया' अर्थ में (इन्द्रियम् शब्द का निपातन किया जाता है)। इन्द्रदृष्टम् -V. ii. 93 'जीवात्मा के द्वारा देखा गया' अर्थ में (इन्द्रियम् शब्द का निपातन किया जाता है)। इन्द्रलिङ्गम् - V. ii. 93 'जीवात्मा का चिह्न' अर्थ में (इन्द्रियम् शब्द का निपातन किया जाता है)। • इन्द्रवरुणभवशर्वरुद्रमृडहिमारण्ययवयवनमातुलाचार्याणाम् – IV. 1. 48 इन्द्र, वरुण, भव, शर्व, रुद्र, मृड, हिम, अरण्य, यव, यवन, मातुल तथा आचार्य प्रातिपदिक, (पुल्लिंग के हेतु से स्त्रीत्व में वर्तमान हों तो उन) से (ङीप् प्रत्यय तथा आनुकू का आगम होता है)। इन्द्रसृष्टम् - V. ii. 93 'जीवात्मा के द्वारा सृजन किया गया' अर्थ में (इन्द्रियम् शब्द का निपातन किया जाता है)। इन्द्रस्य - VII. lii. 22 (परन्तु देवताद्वन्द्व में उत्तरपद के रूप में प्रयुक्त) इन्द्र शब्द (अचों में आदि अच् को वृद्धि नहीं होती)। ... इन्द्रिय... - VI. iii. 130 देखें - सोमाश्वेo VI. iii. 130 इन्द्रियम् - Vit. 93 इन्द्रियम् शब्द का ( विकल्प से) निपातन किया जाता है, (जीवात्मा का चिह्न, जीवात्मा के द्वारा देखा गया, जीवात्मा के द्वारा सृजन किया गया, जीवात्मा के द्वारा सेवित तथा ईश्वर के द्वारा दिया गया अर्थों में)। इन्द्रे - VI. 1. 120 इन्द्र शब्द में स्थित (अच् के परे रहते भी गो को अवङ् आदेश होता है)। ... इन्यानयोः - VI. i. 209 देखें - वेण्विन्यानयो: VI. 1. 209 fa... - I. ii. 6 • देखें - इन्धिभवतिभ्याम् I. 1. 6 इन्धिभवतिभ्याम् - I. ii. 6 'ञिइन्धी दीप्त' तथा 'भू सत्तायाम्' धातुओं से परे (भी लिट् प्रत्यय कित्वत् होता है) । इन्सिद्धबध्नातिषु - VI. iii. 18 इनन्त, सिद्ध तथा बध्नाति उत्तरपद रहते ( भी सप्तमी का अलुक् नहीं होता है) । इय: इन्हन्यूषार्यणाम् - VI. iv. 12 इन्प्रत्ययान्त, हन्, पूषन् तथा अर्यमन् अङ्ग की (उपधा को शिविभक्ति के परे रहते ही दीर्घ होता है)। इम् - VII. lil. 92 (तह हिंसायाम् ' अङ्ग को हलादि पित् सार्वधातुक परे रहते) इम् आगम होता है। इमनिच् - - V. 1. 121 (षष्ठीसमर्थ पृथ्वादि प्रातिपदिकों से 'भाव' अर्थ में विकल्प से) इमनिच् प्रत्यय होता है। ... इमा... - VI. Iv. 154 देखें - इष्ठेमेयस्सु VI. iv. 154 ... इमात्... - V. lil. 111 देखें - प्रनपूर्वo Vill. 111 ... इय: - VII. 1. 2 देखें - आयनेयी० VII. 1. 2 इय: - VII. 1. 80 (अकारान्त अङ्ग से उत्तर सार्वधातुक-संज्ञक 'या' के स्थान में) इय् आदेश होता है।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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